बांटकर ही काटने की साजिश रचने वाले सावरकर के चेले अब ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ का नारा क्यों लगा रहे हैं?

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Veer Savarkar

Vinod kochar

— विनोद कोचर —

वीर सावरकर: द मैन हू कुड हैव प्रिवेंटेड पार्टिशन’ या ‘वीर सावरकर: वह शख्स जो बंटवारे को रोक सकते थे’ को उदय माहुरकर और चिरायु पंडित ने लिखा है. उदय माहुरकर पत्रकार रह चुके हैं और फ़िलहाल भारत सरकार में सूचना आयुक्त के पद पर आसीन हैं. इस किताब का विमोचन 12 अक्टूबर 2021 को, आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत, रक्षामंत्री राजनाथ सिंह और लेखक उदय माहुरकर की उपस्थिति में किया गया था।

सावरकर के चरित्र पर लगे तीन प्रमुख दागों–(1)-अंग्रेज सरकार से बार बार माफी मांगकर उन्हें यह यकीन दिलाने का दाग,कि अब वे अपने देश की बजाय देश को गुलाम बनाने वाली अंग्रेजी हुकूमत के प्रति वफादार रहेंगे,(2)-गांधीजी के हत्यारे गोडसे के प्रेरक होने का दाग और(3)-भारत के हिंदुओं में मुसलमानों के खिलाफ नफरत के वैचारिक बीज बोने का दाग-में से तीसरे दाग को धोने के लिए किए जाने वाले आरएसएस के प्रयासों को गति देने की दुर्भावना से ही यह किताब लिखी गई है जिसे आरएसएस/भाजपा का खुला समर्थन मिला है।

जबकि सच तो ये है कि भारत के विभाजन में भयावह हिंदू-मुस्लिम दंगों की बड़ी भूमिका थी. भारत का बँटवारा हिंदू-मुस्लिम एकता से ही रुक सकता था जिसकी कोशिश गांधी कर रहे थे, लेकिन हिन्दुओं और मुसलमानों को, बुनियादी तौर पर एक दूसरे से अलग साबित करने में सावरकर ने बड़ी भूमिका निभाई थी.

आरएसएस के दोगलेपन और पाखंड की पोल तो, 2021 में इस किताब के विमोचन के बाद से लेकर अब तक देश में घटी मुस्लिम द्रोही साम्प्रदायिकता की अनेक घटनाएँ ही खोल रही हैं।

याद कीजिये दिल्ली के दंगे, केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर की, ‘देश के गद्दारों को( संघी मंतव्य के मुताबिक-मुसलमानोको–गोली मारो… को) जैसी नफरत उपजाऊ ललकार, नूह के दंगे और चुनचुनकर सिर्फ मुसलमानों के घरों को बुल्डोज़री न्याय से नेस्तनाबूद करने वाली घटनाएं, भाजपा सांसद रमेश विधूड़ी द्वारा लोकसभा में बसपा के मुस्लिम सांसद को , गालीनुमा शैली में, मजहबी और नस्लीय संबोधन से अपमानित करने के बाद, रमेश विधूड़ी को राजस्थान के एक जिले का चुनाव प्रभारी बनाकर पुरस्कृत किये जाने की शर्मनाक घटना जैसी ही और भी न जाने कितनी ही घटनाएं!!!

देश के साथ गद्दारी और भारत में अंग्रेजी राज से वफादारी तथा भारत में हिंदुओं के दिलोदिमाग में मुसलमानों के खिलाफ नफरत के बीज बोने वाले जो दाग, सावरकर के दामन पर लगे हैं, उन दागों को धोने का नाटक करना एक बात है और तहेदिल से अपने जघन्य अपराधों के लिए देशवासियों से क्षमा मांगते हुए न्यायोचित प्रायश्चित करना एक अलग बात है जिस पर अमल करने के लिए जिस चरित्र और जमीर की जरूरत है, उसका, आरएसएस के नेताओं में अभाव है।

बकौल दुष्यंत-

तन तनके बहुत चलते हो मगर
कदमों पे यकीं है भी कि नहीं?
कदमों के तले सरकार जरा,
देखो तो जमीं है भी कि नहीं?

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