— विनोद कोचर —
मधुजी के बारे में आपलोगों के विचार आपके घोर अज्ञान का परिचय दे रहे हैं। क्या जानते हैं आप मधु लिमये के बारे में? उनके द्वारा हिंदी, मराठी और अंग्रेजी में लिखी और देश विदेश के प्रबुध्द वर्ग द्वारा पढ़ी जाने वाली ढेरों किताबों में से एकाध किताब भी आपने अगर पढ़ी होती तो उनके बारे में ऐसे कूपमंडूकी अज्ञान,और ‘ज्ञानी’होने के अंधाभिमान के शिकार होने से आप बच गए होते।
आपको तो ये तक मालूम नहीं होगा कि भारत सरकार, उनकी स्मृति में डाक टिकिट भी जारी कर चुकी है। जनतापार्टी की टूटन के लिए आरएसएस/जनसंघ परिवार का दोमुंहा चरित्र जिम्मेदार रहा है। मधु लिमये से आरएसएस मुख्य रूप से दो कारणों से नफरत करता है।एक तो व्यक्तिगत रूप से मुझसे जुड़ा हुआ है, जिसके बारे में आप जैसे कई संघभक्त लिखते ही रहते हैं।आपका मुखपत्र ‘पांचजन्य’भी इस बारे में 1977-78 के दौरान लिखता रहा है और मेरे खिलाफ कीचड़ उछाल चुका है।
और दूसरा तथा सबसे बड़ा कारण है, मधु लिमये के द्वारा सितंबर-अक्टूबर77 में, लोकनायक जयप्रकाश नारायण की इच्छानुसार, जनतापार्टी की कार्यसमिति के समक्ष पेश किया गया वह नोट, जिसका आशय था कि सम्पूर्ण क्रांति के आंदोलन से सैद्धांतिक सहमति रखने वाले सभी स्वयंसेवी-सांस्कृतिक संगठनों को एक हो जाना चाहिए ताकि सत्ता की राजनीति से दूर रहते हुए, संपूर्ण क्रांति की दिशा में आगे बढ़ने के लिए एक सशक्त मंच कायम हो।
इस बारे में मधु लिमये ने मई 77 में आरएसएस चीफ बाळासाहेब देवरस और सरकार्यवाह माधवराव मुळे से बातचीत भी की थी।कार्यसमिति के समक्ष पेश नोट में मधुजी ने इस बातचीत का भी जिक्र किया था।
क्या बुराई थी इस नोट में?क्या गलत था इस नोट में? लेकिन आरएसएस/जनसंघ की नीयत में खोट के चलते ये नोट आरएसएस को हजम नहीं हो सका और इस नोट के खिलाफ कोई तर्कसम्मत जवाब नहीं दे पाने के कारण, ‘खौराई बिल्ली खंभा नोचे’ की तर्ज पर मधुजी के खिलाफ आरएसएस के खुफिया निर्देशों के तहत मधुजी के खिलाफ तर्कहीन निंदा का जहर आप जैसों के मुंह से फ़ैलाने का काम प्रारम्भ हो गया।
जब तक ये निंदा अभियान चलता रहेगा तब तक मैं आश्वस्त हूँ कि सम्पूर्ण क्रांति की आंच में आरएसएस के प्रतिगामी, निरर्थक और घृणा फैलाऊ साम्प्रदायिक विचार व व्यवहार जलकर भस्म हो जाने के भय से आरएसएस अभी भी भयभीत है।
सत्ता में आ जाना, सही होने का प्रमाण नहीं होता।आपको नेक परामर्श दे रहा हूं, पढ़ा लिखा करिये आरएसएस रूपी कुंए के बाहर की दुनिया को भी, अपने देश के उन मधुजी जैसे विचारकों को भी जो आपकी विचारधारा के विरोधी हैं।
अगर नहीं, तो फिर बकते रहिये जो बकना है।