क्या समाज ने राजनीति को अत्यधिक महत्त्व दे रखा है?

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Parichay Das

— परिचय दास —

।। एक।।

राजनीति का समाज में महत्त्व एक जटिल और गहराई से जुड़ा हुआ मुद्दा है, जो सदियों से हमारे सामाजिक ढांचे और संस्कृति का हिस्सा रहा है। राजनीति केवल सत्ता और शासन का साधन नहीं है, बल्कि यह समाज के मूलभूत सिद्धांतों, नैतिकता, और संगठन की दिशा को निर्धारित करती है। हालांकि, यह सवाल उठता है कि क्या हमने राजनीति को समाज में उसकी अपेक्षित सीमा से अधिक महत्त्व दे दिया है?

राजनीति का इतिहास दर्शाता है कि इसका मूल उद्देश्य समाज को संगठित करना और नागरिकों के जीवन को बेहतर बनाना था। लेकिन समय के साथ, राजनीति ने समाज में विभिन्न प्रकार के विभाजन पैदा किए हैं। जाति, धर्म, भाषा, और क्षेत्रीयता के आधार पर राजनीति ने समाज को न केवल विभाजित किया, बल्कि इसे कई स्तरों पर प्रभावित भी किया। यह प्रभाव इतना व्यापक हो गया है कि समाज के हर पहलू में राजनीति की छाप दिखने लगी है।

एक साधारण नागरिक से लेकर बड़े व्यापारियों तक, राजनीति ने हर किसी के जीवन को नियंत्रित किया है। स्कूलों और विश्वविद्यालयों में राजनीति का प्रवेश, धार्मिक संस्थानों में राजनीतिक हस्तक्षेप, और यहाँ तक कि व्यक्तिगत रिश्तों में भी राजनीति का प्रभाव देखा गया है। यह स्थिति समाज को उस बिंदु पर ले आई है, जहाँ नैतिक मूल्यों और समाज की भलाई की जगह राजनीतिक लाभ प्राथमिकता बन गए हैं।

राजनीति के बढ़ते प्रभाव ने कई बार समाज में नैतिक पतन और भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया है। जब राजनीतिक महत्वाकांक्षा सामाजिक मूल्यों से अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाती है, तो यह समाज को कमजोर करती है। उदाहरण के तौर पर, वोट बैंक की राजनीति ने लोगों को जाति और धर्म के आधार पर बाँटा है। यह विभाजन समाज की एकता को प्रभावित करता है और आपसी भरोसे को कम करता है।

इसके अलावा, राजनीति ने समाज के संसाधनों और अवसरों के वितरण को भी प्रभावित किया है। राजनीतिक प्राथमिकताएँ अक्सर उन क्षेत्रों और वर्गों को नजरअंदाज कर देती हैं, जो आर्थिक या सामाजिक रूप से कमजोर हैं। परिणामस्वरूप, समाज में असमानता बढ़ती है।

यह कहना भी गलत नहीं होगा कि समाज में राजनीति के प्रति बढ़ती ललक ने आम नागरिकों की सोच और प्राथमिकताओं को भी बदल दिया है। लोग अब किसी मुद्दे को सामाजिक दृष्टिकोण से देखने के बजाय राजनीतिक चश्मे से देखने लगे हैं। इससे समाज में न केवल परस्पर विरोध बढ़ा है, बल्कि इसका प्रभाव शिक्षा, स्वास्थ्य, और रोजगार जैसे मूलभूत क्षेत्रों पर भी पड़ा है।

राजनीति के इस अति-महत्त्व ने समाज में ऐसा माहौल तैयार किया है, जहाँ हर मुद्दा राजनीतिक रंग ले लेता है। चाहे वह किसी प्राकृतिक आपदा का मुद्दा हो या फिर किसी सांस्कृतिक आयोजन का, राजनीति हर जगह हावी हो जाती है। यह स्थिति समाज के लिए हानिकारक है, क्योंकि यह लोगों के बीच सामंजस्य और सहयोग की भावना को खत्म करती है।

हालांकि, यह भी सच है कि राजनीति का पूरी तरह से नकारात्मक प्रभाव नहीं होता। सही दृष्टिकोण और नेतृत्व के साथ, राजनीति समाज में सकारात्मक बदलाव ला सकती है। स्वतंत्रता संग्राम और सामाजिक सुधार आंदोलनों में राजनीति की भूमिका को अनदेखा नहीं किया जा सकता। लेकिन वर्तमान समय में, राजनीति का स्वरूप और इसकी प्राथमिकताएँ बदल गई हैं। आज की राजनीति व्यक्तिगत लाभ और सत्ता की भूख पर आधारित होती दिखती है, जो समाज के व्यापक हितों को नजरअंदाज करती है।

समाज में राजनीति के अति-महत्त्व का एक और उदाहरण मीडिया और सोशल मीडिया के माध्यम से दिखता है। आज की मीडिया ने राजनीति को अपने कंटेंट का मुख्य हिस्सा बना लिया है। हर छोटी-बड़ी घटना को राजनीतिक दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया जाता है, जिससे समाज में भ्रम और असंतोष बढ़ता है।

इसके अलावा, राजनीति का शिक्षा और युवाओं पर भी गहरा प्रभाव पड़ा है। छात्र राजनीति, जो कभी सामाजिक सुधार और राष्ट्रीय हितों के लिए जानी जाती थी, अब सत्ता के खेल का हिस्सा बन गई है। इससे छात्रों के करियर और व्यक्तित्व पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

समाज में राजनीति के अति-महत्त्व ने यह भी सुनिश्चित किया है कि लोग अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति उदासीन हो जाएँ। राजनीतिक नेताओं के वादों पर निर्भरता ने नागरिकों को आलसी बना दिया है। लोग अब समस्याओं का समाधान खुद खोजने के बजाय राजनीतिक दलों से उम्मीद करते हैं।

इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि राजनीति का समाज में महत्त्व अत्यधिक बढ़ गया है। इसका परिणाम यह हुआ है कि समाज अपने मूलभूत मूल्यों और सिद्धांतों को भूलने लगा है। राजनीति को समाज में एक साधन के रूप में देखा जाना चाहिए, न कि एक लक्ष्य के रूप में। हमें राजनीति को उसकी सीमाओं में रखना होगा और इसे समाज के हर पहलू पर हावी होने से रोकना होगा।

समाज को यह समझने की आवश्यकता है कि राजनीति समाज का हिस्सा है, न कि समाज का संपूर्ण स्वरूप। जब तक हम राजनीति को उसके उचित दायरे में नहीं रखेंगे, तब तक समाज में सच्ची प्रगति और शांति संभव नहीं होगी। राजनीति का सही उपयोग समाज को मजबूत और संगठित बना सकता है, लेकिन इसका दुरुपयोग समाज को कमजोर और विभाजित कर सकता है।

अतः, यह समय की माँग है कि हम राजनीति के प्रभाव को पहचानें और इसे समाज में उसकी सीमाओं के भीतर रखें। समाज को राजनीति से ऊपर उठकर अपने नैतिक मूल्यों, सहिष्णुता, और सहयोग की भावना को पुनः स्थापित करना होगा। तभी हम एक सशक्त और समरस समाज का निर्माण कर सकेंगे।

।। दो ।।

राजनीति को अत्यधिक महत्त्व देने की प्रवृत्ति से परे सोचने और कार्य करने के लिए आवश्यक है कि हम समाज, व्यक्ति, और सामूहिक चेतना को नए दृष्टिकोणों से समझें और उन पर आधारित कदम उठाएँ। इसका मुख्य उद्देश्य राजनीति के बाहरी और आंतरिक प्रभावों से स्वतंत्र होकर समाज को नैतिक, रचनात्मक, और सहयोगी दिशा में ले जाना होना चाहिए।

राजनीति के इतर सोचने का सबसे बड़ा कदम यह है कि हम समाज में नैतिकता और मानवीय मूल्यों को केंद्र में रखें। यह हर व्यक्ति की जिम्मेदारी होनी चाहिए कि वे समाज में ईमानदारी, सहिष्णुता, और आपसी सहयोग को बढ़ावा दें।

व्यक्तिगत स्तर पर नैतिकता का पालन करें।

समाज में समानता और न्याय के लिए व्यक्तिगत प्रयास करें।

दूसरों की मदद के लिए छोटे-छोटे कदम उठाएँ, चाहे वह शिक्षा हो, स्वास्थ्य हो, या रोजगार।

शिक्षा को राजनीति से स्वतंत्र बनाकर एक सशक्त और रचनात्मक समाज का निर्माण किया जा सकता है।

बच्चों और युवाओं को व्यावहारिक, नैतिक, और समग्र शिक्षा प्रदान करें।

शिक्षा को जीवन-निर्माण का साधन बनाएँ, न कि केवल सत्ता या पद प्राप्त करने का।

पाठ्यक्रमों में नैतिक शिक्षा, पर्यावरण संरक्षण, और रचनात्मकता को प्राथमिकता दें।

राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त रहकर अपने समुदाय के विकास में सक्रिय भूमिका निभाएँ।

स्थानीय समस्याओं का समाधान सामूहिक प्रयासों से खोजें।

स्वच्छता, जल संरक्षण, और ऊर्जा बचत जैसे अभियानों में भाग लें।

ग्राम और शहरी स्तर पर छोटे-छोटे समूह बनाकर विकास कार्य करें।

राजनीतिक विवादों से परे, कला और रचनात्मकता समाज को नई दिशा देने का प्रभावी माध्यम है।

साहित्य, संगीत, नाटक, और चित्रकला को बढ़ावा दें।

सांस्कृतिक कार्यक्रमों और उत्सवों के माध्यम से सामूहिकता का भाव बढ़ाएँ।

स्थानीय प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करें और उन्हें अपनी कला के माध्यम से योगदान देने के लिए प्रेरित करें।

सामाजिक बदलाव के लिए जरूरी है कि हर व्यक्ति अपनी जिम्मेदारियों को समझे।

सामाजिक कार्यों में भागीदारी करें।

मतदान और अन्य लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में भाग लें, लेकिन उनकी सीमाओं को समझें।

अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक रहें।

धर्म और अध्यात्म समाज में नैतिकता और सद्भावना को बढ़ावा देने का एक सशक्त माध्यम हो सकते हैं, यदि उन्हें राजनीति से अलग रखा जाए।

धर्म को व्यक्तिगत और नैतिक सुधार का माध्यम बनाएँ।

सामूहिक पूजा, ध्यान, और सामाजिक सेवा के माध्यम से सामूहिकता का विकास करें।

राजनीति से परे, समाज को पर्यावरण संरक्षण के मुद्दों पर एकजुट होना चाहिए।

वृक्षारोपण, प्लास्टिक मुक्त अभियान, और जल संरक्षण को प्राथमिकता दें।

प्राकृतिक संसाधनों का सतत और संतुलित उपयोग करें।

पर्यावरण से जुड़े विषयों पर जन जागरूकता बढ़ाएँ।

राजनीति पर निर्भरता कम करने के लिए स्वावलंबन और उद्यमशीलता को प्रोत्साहित करें।

छोटे और मध्यम उद्योगों को बढ़ावा दें।

युवाओं को रोजगार सृजन के लिए प्रशिक्षित करें।

कृषि, हस्तशिल्प, और अन्य पारंपरिक कार्यों को पुनर्जीवित करें।

राजनीति के विभाजनकारी प्रभाव से बचने के लिए लोगों के बीच संवाद और आपसी समझ को बढ़ावा देना आवश्यक है।

परिवार और समाज में संवाद का वातावरण बनाएँ।

किसी भी विषय पर चर्चा में तटस्थ और रचनात्मक दृष्टिकोण अपनाएँ।

सोशल मीडिया पर रचनात्मक और सकारात्मक चर्चाओं को बढ़ावा दें।

राजनीतिक तंत्र पर निर्भरता घटाने के लिए सामाजिक आंदोलनों और स्वयंसेवी संगठनों की भूमिका अहम हो सकती है।

सामाजिक न्याय और पर्यावरण से जुड़े आंदोलनों में भाग लें।

स्वयंसेवी संगठनों के माध्यम से जरूरतमंदों की मदद करें।

युवाओं को राजनीति के इतर समाज निर्माण में योगदान देने के लिए प्रेरित करें।

उन्हें यह सिखाएँ कि राजनीति जीवन का हिस्सा है, लेकिन उसका केंद्र नहीं।

उन्हें नवाचार और रचनात्मकता के लिए प्रेरित करें।

स्थानीय समस्याओं से परे, वैश्विक मुद्दों को समझना और उनका समाधान ढूँढ़ना आवश्यक है।

जलवायु परिवर्तन, वैश्विक गरीबी, और मानवाधिकार जैसे मुद्दों पर ध्यान दें।

अंतरराष्ट्रीय संगठनों और अभियानों में भागीदारी करें।

राजनीति को अत्यधिक महत्त्व से परे सोचने और कार्य करने के लिए समाज को अपने मूलभूत मूल्यों की ओर लौटना होगा। यह तभी संभव है जब हम राजनीति के बजाय नैतिकता, शिक्षा, और रचनात्मकता को प्राथमिकता दें। एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाकर हम राजनीति के दायरे से बाहर जाकर समाज को वास्तविक प्रगति और शांति की दिशा में ले जा सकते हैं।

अत्यधिक राजनीति के प्रभाव से हटकर विचारों की दिशा में सोचना आज के समय की महती आवश्यकता है। जब समाज में हर क्षेत्र राजनीति से प्रभावित हो रहा है, तब यह जरूरी हो जाता है कि व्यक्ति और समाज अपने अस्तित्व, मानवीय मूल्यों और सह-अस्तित्व के नए रास्तों की खोज करें। अत्यधिक राजनीतिक हस्तक्षेप केवल समाज की दिशा को भटकाता ही नहीं, बल्कि व्यक्ति की स्वतंत्रता, रचनात्मकता और सामुदायिकता को भी बाधित करता है। आज हमें राजनीति के परे जाकर ऐसे विचार विकसित करने चाहिए, जो व्यक्तिगत और सामूहिक चेतना को नई ऊंचाइयों तक ले जाएं।

सबसे पहली बात यह है कि राजनीति की सीमाओं से परे जाकर समाज के उन मूलभूत सवालों पर ध्यान दिया जाए, जो हमारे अस्तित्व को प्रभावित करते हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण, और संस्कृति जैसे मुद्दे आज केवल राजनीति के लिए उपकरण बन गए हैं, जबकि उनकी मौलिकता और उनकी गहराई को समझना अधिक महत्वपूर्ण है। हमें ऐसी शिक्षा प्रणाली चाहिए, जो केवल परीक्षा पास करने या नौकरी पाने तक सीमित न हो, बल्कि जो व्यक्ति को सोचने, प्रश्न पूछने और समाज के लिए कुछ नया करने की प्रेरणा दे। यह शिक्षा स्थानीय और वैश्विक दोनों दृष्टिकोणों को साथ लेकर चले, ताकि व्यक्ति अपने जड़ों से जुड़ा रहे और साथ ही, विश्व की बदलती परिस्थितियों के प्रति सजग भी हो।

इसी प्रकार, स्वास्थ्य को केवल दवाओं और अस्पतालों तक सीमित करने के बजाय मानसिक और भावनात्मक शांति को भी इसमें शामिल किया जाना चाहिए। योग, ध्यान, और सामुदायिक स्वास्थ्य के कार्यक्रम केवल व्यक्तिगत शांति के साधन नहीं हैं, बल्कि ये सामूहिक चेतना के निर्माण में भी सहायक हो सकते हैं। जब समाज में हर व्यक्ति मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ होगा, तब सामूहिक विकास की गति भी तेज होगी।

पर्यावरण का सवाल भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है। जब हम राजनीतिक बहसों में उलझे रहते हैं, तब हम यह भूल जाते हैं कि हमारा अस्तित्व प्रकृति पर निर्भर है। ऐसे में, पर्यावरण को केवल नीतियों का हिस्सा बनाने के बजाय व्यक्तिगत और सामुदायिक जीवन का अभिन्न अंग बनाना चाहिए। जल, जंगल और जमीन की सुरक्षा केवल सरकारी योजनाओं का विषय नहीं है, बल्कि यह हर व्यक्ति की जिम्मेदारी है। हमें “प्रकृति के साथ सह-अस्तित्व” के विचार को मुख्यधारा में लाना होगा।

सांस्कृतिक और भाषाई विविधता को बचाना भी जरूरी है। आज के समय में वैश्वीकरण और तकनीकी प्रगति के कारण स्थानीय परंपराएं और भाषाएं हाशिए पर जा रही हैं। हमें इस विविधता को न केवल बचाना चाहिए, बल्कि इसे एक नई पहचान भी देनी चाहिए। स्थानीय कला, साहित्य, और संगीत को पुनर्जीवित करना जरूरी है। ये केवल मनोरंजन के साधन नहीं हैं, बल्कि ये हमारी सामूहिक स्मृति और पहचान का हिस्सा हैं।

तकनीकी साधनों का उपयोग भी एक ऐसा क्षेत्र है, जो राजनीति से परे सोचने की प्रेरणा दे सकता है। तकनीक केवल मुनाफे और उपभोग तक सीमित नहीं रहनी चाहिए। इसे मानवता के कल्याण के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए। तकनीकी विकास का लाभ केवल बड़े शहरों तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि इसे ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों तक भी पहुंचाया जाना चाहिए। तकनीक का उद्देश्य केवल समय और श्रम बचाना नहीं होना चाहिए, बल्कि यह समाज में समानता और विकास के नए आयाम खोलने का माध्यम बनना चाहिए।

सामुदायिक संवाद और सह-अस्तित्व की भावना को भी बढ़ावा दिया जाना चाहिए। आज के समय में लोग एक-दूसरे से कटते जा रहे हैं। परिवार, पड़ोस, और समाज के बीच संवाद का अभाव है। ऐसे में, सामुदायिक स्तर पर छोटे-छोटे संवाद मंच बनाए जा सकते हैं, जहां लोग बिना किसी राजनीतिक दबाव के अपनी बात रख सकें। यह संवाद केवल समस्याओं के समाधान का माध्यम नहीं होगा, बल्कि यह समाज में एकता और सामूहिक चेतना को भी बढ़ावा देगा।

व्यक्तिगत जिम्मेदारी और नैतिकता का पुनर्निर्माण भी राजनीति से परे सोचने का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हो सकता है। समाज के हर व्यक्ति को यह समझना होगा कि उसकी भूमिका केवल एक मतदाता की नहीं है। वह एक परिवार का सदस्य, एक पड़ोसी, और एक नागरिक भी है। उसे अपने कार्यों की जिम्मेदारी लेनी होगी। “स्वयं सुधारो, समाज सुधरेगा” के विचार को प्रोत्साहन देना होगा।

आज के समय में, हमें राजनीति के परे जाकर सोचने की जरूरत है। यह सोच केवल समाज के लिए नहीं, बल्कि व्यक्तिगत शांति और संतोष के लिए भी आवश्यक है। जब व्यक्ति अपने अस्तित्व और अपने समाज के प्रति सजग होगा, तब वह राजनीति के परे जाकर अपने जीवन और समाज के लिए सार्थक बदलाव ला सकेगा। यही बदलाव नए विचारों की नींव बन सकता है, जो समाज और व्यक्ति दोनों को एक नई दिशा देगा।

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