अन्त्यजों को रहने के लिए अच्छे मकान नहीं मिलते, यह कैसी विचित्र बात है??
बहुत से अन्त्यजों को नगरपालिका के टूटे फूटे मकान भी छोड़ने पड़ते हैं। जो उनमें रहते हैं वे भी कठिनाई में ही रहते हैं। हिंदू उनको मकान नहीं देते। ऐसी स्थितियों में रहते हुए अन्त्यजों के लिए स्वराज्य का अर्थ क्या हो सकता है?
मान लो, बंबई में हिन्दू गवर्नर हो, अश्पृश्यता को धर्म मानने वाला मुख्यमंत्री हो और अन्त्यजों को मकान न देने वाला मंत्री हों, तब ऐसे स्वराज्य में अन्त्यजों को स्वतंत्रता का क्या बोध होगा? जान पड़ता है कि बंबई इस परीक्षा में भी अनुत्तीर्ण होगा।
23 मार्च 1925
स्त्रोत: संपूर्ण गांधी वांग्मय, खंड:26, पृष्ठ: 379