— डॉ. सुरेश खैरनार —
कार्ल मार्क्स ने उम्र के सत्रहवे साल मे अपने मैट्रिक की परीक्षा में व्यवसाय चुनने के लिए एक निबंध लिखा था. अमूमन विद्यार्थी अपने शिक्षाके समय पास होने के लिए कोई भी विषय लेकर लिखते बोलते है. और बाद में भूल भी जाते है . लेकिन कार्ल मार्क्स ने ऐसा नहीं किया. उस परीक्षा के लिए भावी व्यवसाय के बारे मे जो भी कुछ लिखा था, उसमें उदात्त सपने बुनने में लेखक ने बिल्कुल भी कोताही नहीं बरती थी. सबसे अहम बात उसने लिखी थी. “कि हम किसी के भी मातहत सिर्फ हुकुम मानने वाले काम को स्वीकार करने के बजाय, अपने खुद के व्यवसाय या स्वतंत्र काम शुरू कर के, जिस मे लोकसेवा भी कर सके, ऐसा काम को प्राथमिकता देनी चाहिए. किसी साहित्यकार या कवि को कितनी भी प्रसिद्धि मिले. लेकिन बगैर लोकसेवा किये वह कभी भी बडा या महान नहीं हो सकता. क्या महात्मा गाँधी जी के और उन्हें गुरू माननेवाले डॉ. राम मनोहर लोहिया की सोच कार्ल मार्क्स के साथ मिलती जुलती नही है ? डॉ. राम मनोहर लोहिया तो मेहतर और किसी बड़े अधिकारी की तनख्वाह बराबर की होनी चाहिए ऐसा आग्रह किया करते थे. और उनके गुरु महात्मा गाँधी एक नाई और वकील का मेहनताना एक जैसा ही होना चाहिए. मतलब श्रम के मुल्य के बारे में कार्ल मार्क्स के सिध्दांत के अनुसार कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता है. इसी में समता निहित है. हम जबतक हमारे अगलबगल के लोगों के, सुख शांति के लिए, अपनी सेवा नहीं करेंगे. और सिर्फ अमूर्त विचारों और शब्दों की कवायद करने के पीछे पागल होना ठीक नहीं है. यह तथाकथित बुद्धिजीवियों के लिए विशेष रूप से लागू पडता है.
इस निबंध के एक महत्वपूर्ण मुद्दे पर परीक्षक का ध्यान खींचा था. और वह था कि “आपनी महत्वाकांक्षा को परिस्थितियों की मर्यादाऐ कैसे पडती है ?” और जिस तरह समाज के साथ, आपका खुद का निर्णय होने के पहले ही, कुछ रिश्ते पहले ही निश्चित हो जाते है. और हमारे स्वभाव जो जन्मजात मिलता है. वह बदल कर कोई तयशुदा व्यवसाय आप कर सकते हो यह संभव नहीं
इतनी कम उम्र में भी कार्ल मार्क्स की सामाजिक संरचना की समज गजबके स्तर पर की दिखती है. हर्डर जैसे लेखकों का साहित्य का प्रभाव था. कि मानवीय संस्कृति पर भौगोलिक क्षेत्र और तत्कालीन भौतिक स्तिथीका गहरा असर होता है. यह तब सर्व सामान्य लोगों तक पहुंचा हुआ विचार, या दुसरा कारण कार्ल मार्क्स के कुमार उम्र के समय यहुदी धर्मिय लोगों पर, जिस तरह के निर्बंध लगाये गये थे. और टैक्स से लेकर किसी भी उद्योग को करने की मनाही से लेकर, सरकारी नौकरी में यहुदी धर्मिय लोगों पर जिस तरह के निर्बंध लगाये गये थे. और हर्डर जैसे लेखकों का साहित्य का मिलेजुले विचारों का भी प्रभाव हो सकता है. जिस वजह से कार्ल मार्क्स इतनी कम उम्र में भी, सामाजिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक और राजनीतिक विश्लेषण करने के लिए तैयार हुऎ है.
कार्ल मार्क्स का जन्म 5 मई 1818 मे हुआ था. और उसके परिवार तथा माता-पिता कई पीढियों से धर्मगुरू का व्यवसाय करते आ रहे थे. ( यहुदि ) लेकिन पिता हिसेल मार्क्स मशहूर वकील थे. और उनपर फ्रेंच और जर्मन दोनों संस्कृतियोका प्रभाव था. इसलिए व्हाल्टेअर और लायबनिझ यह दोनों तत्वोंज्ञोके ग्रंथों का बहुत ही लगन से अध्ययन किया था. राजनैतिक दृष्टी से उन्हें प्रशियन राष्ट्रवादी कह सकते हो. कार्ल मार्क्स की मां का नाम हेन्रिएट्टा था. और वह एक घर संसार संभालने वाली स्त्री थी. और उसने अपने बेटे के बौद्धिक विकास वा बौद्धिक संघर्ष में कभी भी भाग नहीं लिया है. और उपरसे आठ बच्चे. और पति की सेवा करने मे ही उसका पूरा समय चला जाता था. आठ बच्चों मे सिर्फ कार्ल मार्क्स ने ही बौद्धिक क्षेत्र में अपनी क्षमता का परिचय दिया है. बाकी अन्य सामान्य ही थे.
पिता हिशेल मार्क्स ने आजसे दो सौ साल पहले, 1824 को ख्रिस्ती धर्म का स्वीकार किया. उस समय कार्ल मार्क्स की उम्र छ साल की थी. और हिशेल ने धर्म परिवर्तन के साथ अपने नाम मे भी परिवर्तन कीया था. और वह हेन्रिख नामसे जाने लगे थे. और कार्ल मार्क्स के जीवन पर इस धर्म परिवर्तन का क्या परिणाम हुआ ? यह तो नहीं मालूम, लेकिन यहुदी धर्मिय रहते हुए जो परिणाम भुगतने पड सकते थे, उससे बच गए . लेकिन वह खुद जीवन के अंतिम समय तक कुछ प्रमाण मे यहुदी विरोधी रहे हैं. इसका कारण पिताजीने यहुदी धर्म का त्याग किया, यह नहीं हो सकता है.
ट्रिएर मे मार्क्स परिवार के पडोसी फाॅन वेस्टफाॅलेन नाम के प्रशियन सरकार के अधिकारी रहते थे. और वह कई भाषाओं के जानकार थे. और वह शेक्सपियर और होमर के दिवाने थे. और कार्ल मार्क्स उनके साथ बहुभाषाविद होने के कारण, ज्ञान और साहित्य की रूचि के कारण उस परिवार के साथ घुल मिल गये थे. और उनकी बेटी जेनी की और कार्ल मार्क्स की बहन की गहरी दोस्ती थी.
बाद में कार्ल मार्क्स भी जेनी के प्रति आकर्षित हुए. हालाकि जेनी कार्ल मार्क्स से चार साल बडी थी. कार्ल मार्क्स ने उम्र के अठारवे साल मे शादी का निर्णय लिया. जेनी बहुत ही सुंदर और अन्य गुणों से सम्पन्न होने के कारण , कार्ल मार्क्स ने जीवन के अंतिम समय तक जेनी के प्रति वफादार रहे.
कार्ल मार्क्स ने 1835 साल के गर्मियों में बाॅन युनिवर्सिटी मे प्रवेश लिया था. साल-भर बडी मुश्किल से उसने वहां बहुत ही सामान्य विद्यार्थी के जैसे रहने के बाद, पिताजीने उसे बर्लिन विश्वविद्यालय में दाखिला कराया. और वहां पर न्यायतत्वशास्र का अभ्यास करने के साथ-साथ, कार्ल मार्क्स ने, अपने पढ़ने की लगन के कारण अपने पढ़ाई का क्षेत्र, इतिहास, तत्वज्ञान, भूगोल, साहित्य एवं सौंदर्यशास्त्र से लेकर, हर तरह के विषयों पर अध्ययन किया है. और कविता के साथ-साथ विश्व का रहस्य की जडतक जाकर, खोज करने की धुन, सवार होकर इन सभी विषयों पर के ग्रंथो के अध्ययन के साथ, नोट्स लेनेकी आदत पड गई थी . इस कारण उसने अपनी पढ़ाई की धुन में लेसिंग ,सोलगर,विंकलमान,लुडेन के, हिस्ट्री ऑफ जर्मनी जैसे ग्रंथों का बहुत ही लगन से अध्ययन किया था. और साथ में ही अंग्रेजी और इटालियन भाषाओं का किताबों की सहायता लेकर अध्ययन करने की कोशिश की है. लेकिन उनमें विशेष तरक्की नहीं कर सके.
उसके अध्ययनशिलता के कारण विशेष मित्र नहीं हो सके. फुर्सत के समय में खुद ही तत्वों के व्यूह तैयार करना, और कांटका नव कल्पना वाद का त्याग कर के, हेगेल के सत्ताशास्त्र का स्वीकार किया. उसे तब तक अपने अंदर के सुप्त शक्ति का परिचय नहीं था. और यह समय उसके जीवन का सबसे बड़ा संक्रमण काल का रहा है. और इसी स्थिति में अपने पिताजी को पत्र मे लिखा है. “कि मैं ( 10 नवम्बर 1837 ) जीवन में एक पर्व समाप्त हो कर, अगले पर्व मे प्रवेश करते हुए लगता है कि यही वह समय है, जोकि मेरे जीवन की आगे की दिशा निश्चित होने की संभावना है”
और उसके बाद हेगेल के आधुनिक युग का तत्वज्ञान , इस किताब मे वह पूरी तरह से अटक गया था. उधर पीता को पुत्र के खत से काफी निराशा हुई . उन्होंने उसे लिखा कि ” कमसे कम किसी सीनियर वकील के मातहत कुछ सिखों या कोई सरकारी नौकरी करो. लेकिन कार्ल मार्क्स ने लिखा कि ” मैं प्रोफेसर बनना चाहता हूँ. ” 1841 मे उसने डेमोक्रिटिझ और एपिक्यूरस के तत्वज्ञान पर प्रबंध लिखा. और उसी प्रबंध पर डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की. लेकिन उसके इस यश को देखने के लिए पिता जीवित नहीं थे. वह मई 1838 मे 56 साल की उम्र में अचानक किसी बीमारी से, मृत्यु होने के कारण, कार्ल मार्क्स की, शैक्षिक योग्यता का प्रमाण नहीं देख सके .
उनके इच्छा के अनुसार प्रशियन सरकार की, शिक्षक की नौकरी भी उनके क्रांतीकारी विचारों के कारण नहीं मिली, तो वह पत्रकारिता की तरफ मुडे. और उनके भाग्य से 1842 ‘र्हायनिश झिटुंग’ नाम के अखबार का पहला अंक 1,जनवरी 1842 को निकालने का मौका मिला है. और उसी साल के अक्टूबर मे पहले संपादक की निवृत्ति होने के कारण कार्ल मार्क्स को अनायास संपादक की जिम्मेदारी का वहन करना पडा.
लेकिन प्रशियन सरकार के सूचना विभाग की नजरों में कार्ल मार्क्स की सामाजिक ,राजनीतिक और अन्य विषयों पर लिखने की बात काफी नागवर लगने लगी. और सरकार की वक्रदृष्टि के कारण कार्ल मार्क्स ने सूचना का अधिकार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर, कार्ल मार्क्स की सरकार और अखबार के प्रबंधकों के बीच के झगड़े के कारण, संपादक पद को छोडना पडा है.
वैसे भी वह अर्थशास्त्र में अध्ययन करने के लिए समय निकालने के लिए आतुर थे ही. तो सिर्फ अखबार के संपादक के तौर पर पाँच महीने 17 मार्च 1843 के दिन, अखबार का काम छोड़कर अपने आप को और ज्यादा गंभीर चिंतन -मनन करने और उसके लिए अध्ययन करने के लिए, अपने मातृभूमि को विदा करने की सोचता है. लेकिन उसके पहले हेगेल के साथ वैचारिक टक्कर लेने की बात मन में आती है.
वैसे कार्ल मार्क्स के उपर हेगेल के विरोध-विकास वाद का काफी प्रभाव था. कार्ल मार्क्स के क्रांतिकारी विचारों के कारण जर्मनी से फ्रांस और फ्रांस से बेल्जियम और 1849 से म्रुत्युतक 5 मई 1883 तक इंग्लैंड में ही रहे. जहां पर उनके फ्रेडरिक एंजल्स जैसे मिल मालिकों के बेटे के साथ दोस्ती हुई. और उन्होंने मिलकर 1848 मे कम्युनिस्ट मॅनिफास्टो प्रकाशित किया. और कार्ल मार्क्स की मृत्यु के पस्चात कैपिटल के खंडों को फ्रेडरिक एंगेल्स ने प्रकाशित किया. और उनके परिवार के भरण-पोषण का जिम्मा भी उठाया था. इस तरह की मैत्री दुर्लभ ही होती है.
और कार्ल मार्क्स की पत्नी जेनी ने भी खुद सम्पन्न परिवार से होने के बावजूद कार्ल मार्क्स की बौद्धिक क्षमता को सम्हालने सवारने के लिए अपने आप को न्योछावर कर दिया है. ऐसी पत्नियां भी दुर्लभ होती है. लेकिन कार्ल मार्क्स के जीवन में जेनी और फ्रेडरिक एंजिल्स जैसे शख्सियतो कारण विश्व के औद्योगिक विकास के बाद, उपजे पुंजीवाद को लेकर, शास्त्रीय विवेचना करने के लिए, कार्ल मार्क्स ने अपने कुल पैंसठ साल के जीवन का, लगभग चालीस साल से भी ज्यादा समय समाजवाद के चिंतन और उसके अनुसार आदर्श समाज की स्थापना के लिए लगा दिया है. ( मृत्यु 14 मार्च 1883 लंदन में. ) यह हमारे ॠषी-मुनी जैसी अविरत ज्ञान की साधना करने के कारण, आज कार्ल मार्क्स के 142 वे पुण्यस्मरण के बहाने वर्तमान दुनिया मे, पुंजीवाद और मुक्त बाजारवाद के बढते हुए, खतरे की पृष्ठभूमि में समस्त विश्व के लिए, सचमुच समाजवाद की आवश्यकता और महसूस हो रही है. और उसके लिए सही मायनों में भारत से लेकर संपूर्ण विश्व के समाजवादीयो का एक होने का मौका मिला है. और यही कार्ल मार्क्स के प्रति सही श्रद्धांजलि हो सकती है.