निहाल सिंह की पाँच कविताएँ!

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— निहाल सिंह —

शीर्षक- सूखा

अब के बरस बारिश नही हुई
पूरे पिण्ड में
फसल का एक दाना
तक नही है
खेतों की क्यारियों में
धूल के गुब्बारे उड़ते है
दूर तक पगडियों से
होते हुए गोल मटोल से
जिनावरो के होठ सूखे हुए है
न खाने को दाना मिलता है
न पीने को पानी
फिरते है भीहड़ में
बेजान पत्तो के ऊपर
बैठें हुए है
सुस्ताया हुआ मुॅंह लिए
चार परिन्दे
देख रहें है नभ की
और इक बादल
की टुकड़ी चंद बूंदे
गिरा दे सूखे होठों पर

शीर्षक- बदलते पड़ौसी

आज के युग में बहुत
बदलाव हुआ है
पड़ौसियो में
पहले घण्टो बैठें रहते थे
चांदनी ढ़लने तक
चारपाई पर
बुजुर्गों से किस्से
सुनते रहते थे
ज्ञान के
आजकल एक -दूजे
परेशानी होती है हिय में
साॅंझ हुई नही की
कुंदी लगा लेते है
किवाड़ो पर
पहले एक दूसरे के यहाँ
भोजन कर लेते थे
जैसे लगता कि
अपने घर में ही खा
रहे है
अब नोबत ये है कि पानी तक
नही पूछते है
कितने बदल गए है
पड़ौसी

शीर्षक- कैमरा

कैमरे में कैद हो गई है
दुनिया सारी
जिसे देखो वो ही
घुसना चाहता है कैमरे
के भीतर
छोटी बहू से लेकर
बड़ी बहू तक
सज- सवरके खिचवा ना
चाहती है अच्छी सी
ढेर सारी फोटो
चिंटू से लेकर पिंकी तक
खड़े है सामने कैमरे के
अंकल एक फोटो मेरी भी
खींच दीजिये
जिद्द करने लग जाते है
फोटोग्राफर के सम्मुख
बुड्ढा बाबा हुक्के के
साथ तो अम्मा चिमटे- फुकनी
के साथ खड़ी होकर
खिचवा रही है
रंगीन सी फोटो
बहुएँ अच्छे- अच्छे
परिधान पहनकर के
खिचवा रही है तो
चिंटू और पिंकी
गुड्ढे एवं गुड़िया के
साथ खिचवा रहे हैं

शीर्षक- पेंशन

भोला काका
चक्कर काटकर
थक चुका है दफ़्तरों के
लेकिन उसकी पेंशन
बंधी नही है
कभी इतवार आड़े आ
जाता है तो कभी त्यौहार
आ जाते है
कभी अफसर साहेब
की बिटिया की शादी
आ जाती है तो
कभी उसके पोते का
मुंडन आ टपकता है
फाइल सूखने लगी है
दफ़्तर में पड़ी- पड़ी किंतु
उसे कोई अफसर
उठाकर देखता तक नही
दिन- प्रतिदिन चक्कर
काटते- काटते जूतियाँ
घस गई है शुद्ध चमड़े की
उनमें छेद निकल आए है
गोल- मटोल
सिक्को की ज्यू

शीर्षक- नई दुल्हन

बाजू वाले मकान में
चौबे जी के मझले
बेटे की शादी हुई है
अभी परसो ही
तो नई -नवेली
बहू का मुखड़ा देखने
के वास्ते उमड़ा हुआ है
मोहल्ला सारा
चौबे जी के ऑंगन में
मोटी चाची घूॅंघट उठाकर
देखती है
तो छिल्की झुककर
देखने का प्रयास करती है
किंतु पूरा देख नही पाती
चाॅंद के टुकड़े को
बूड्ढी ताई कहती है
तनिक मैं भी तो
देखू मुखड़ा बहुरिया का
दुल्हन की सास कहती है
देख लेना ताई तनिक
आराम तो करने दीजिये
बहू को
बेचारी कितनी दूर से
आई है
बहुत थक गई है
तनिक सुस्ती मार लेने
दीजिये बहुरिया को
हटो- हटो अभी दूर हटो
साॅंझ को आना फिर
मुॅंह बनाकर कहती है

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