अंतोनियो ग्राम्शी : क्रांतियों का विचारक

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Dr. Shubhnit Kaushik

— शुभनीत कौशिक —

ज इटली के क्रांतिकारी विचारक अंतोनियो ग्राम्शी (1891-1937) का शहादत दिवस है। दुनिया भर में जिन विचारकों ने विषम परिस्थितियों में भी अपने चिंतन से दमनकारी सत्ता के प्रतिरोध का साहस दिखाया और क्रांति की राह तैयार की, उनमें ग्राम्शी अद्वितीय हैं। महज़ 46 साल की उम्र में 27 अप्रैल, 1937 को यह विचारक और राजनेता शहीद हुआ। जेलों में लिखी गई हज़ारों पन्नों में फैली हुई ग्राम्शी की ‘प्रिजन नोटबुक्स’ उसकी अटूट प्रतिबद्धता और अडिग साहस की निशानियाँ हैं।

मुसोलिनी की फ़ासीवादी सरकार के मन में ग्राम्शी और उसके क्रांतिकारी विचारों को लेकर कितना भय था, यह इसी बात से पता चलता है कि ग्राम्शी पर चल रहे मुक़दमे के दौरान सरकारी वकील ने अदालत में कहा था कि ‘हमें इस क्रांतिकारी दिमाग़ को अगले बीस सालों तक काम करने से रोक देना है।’

यह सच्चाई है कि जेल की यातनाओं ने ग्राम्शी को शारीरिक रूप से तोड़कर रख दिया, लेकिन उस दौरान ग्राम्शी ने जो चिंतन-कर्म किया, वह आज के मुश्किल वक्त में भी मशाल की तरह हमें राह दिखाता है। जेल के उस यातनादायी माहौल में ग्राम्शी ने ‘मॉडर्न प्रिंस’ की संकल्पना की, ‘हेजेमनी’, ‘सबाल्टर्न’, ‘आंगिक बुद्धिजीवी’ (ऑर्गैनिक इंटेलेक्चुल) जैसी अवधारणाएँ विकसित कीं और ‘प्रैक्सिस’ का दर्शन दिया।

ग्राम्शी के इस वैचारिक संसार की निर्मिति में इटली के औद्योगिक शहर तूरीन की ख़ास भूमिका थी। तूरीन – जिसे ख़ुद ग्राम्शी ने कभी ‘इटली का पेट्रोग्राद’ कहा था। तूरीन विश्वविद्यालय में पढ़ाई करते हुए ही ग्राम्शी ने श्रमिकों के जीवन और उनकी दुश्वारियों को नज़दीक से देखा और समझा था। यहीं अंतोनियो ग्राम्शी इटली के तत्कालीन समाजवादी विचारकों और उनके लेखन से परिचित हुए। जिनमें अंतोनियो लेब्रियोला, रूडॉल्फ़ो मोंडोलफ़ो और दार्शनिक बेनदेत्तो क्रोचे प्रमुख थे। आगे चलकर ग्राम्शी ने अपने लेखन में इन विचारकों की सीमाओं को भी रेखांकित किया।

वर्ष 1911 के बाद का दौर जब ग्राम्शी राजनीतिक रूप से सक्रिय हुए, तो इटली के जिन दो साम्यवादी नेताओं ने ग्राम्शी को गहरे प्रभावित किया, वे थे एंजेलो टस्का और एमेडियो बोर्दिगा। एंजेलो टस्का, ग्राम्शी का वह जिगरी दोस्त जिसने विश्वविद्यालय में पढ़ाई के उन दिनों में ग्राम्शी को लियो तोलस्तोय की कालजयी कृति ‘वार एंड पीस’ भेंट करते हुए उस पर लिखा कि ‘सहपाठी ग्राम्शी के लिए, जो उम्मीद है कि भविष्य में क्रांति के पथ पर मेरा सहयात्री होगा।’ इन दोनों साम्यवादी नेताओं के साथ ग्राम्शी ने वैचारिक संवाद किया। संवाद की यह प्रक्रिया विभिन्न मुद्दों पर सहमति-असहमति, मतभेद और वाद-विवाद से भरपूर थी।

अंतोनियो ग्राम्शी ने समाज में बुद्धिजीवियों की भूमिका, सबाल्टर्न वर्ग के इतिहास और उसकी राजनीतिक चेतना, फ़ासीवादी संगठनों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और उनके उभार के कारणों पर जो कुछ लिखा, वह आज भी प्रासंगिक है। ग्राम्शी सिद्धांत और व्यवहार के बीच पुल बनाने वाले एक ऐसे विचारक थे, जिनका ज़ोर आम लोगों, किसानों व श्रमिकों से जुड़कर उनके बीच राजनीतिक कार्य करने, वैचारिक माहौल बनाने के लिए चर्चाएँ और अध्ययन समूह आयोजित करने पर रहा। ग्राम्शी ने श्रमिकों के आंदोलन को किसानों के संघर्ष से जोड़ने के राजनीतिक महत्त्व को बारंबार रेखांकित किया।

बतौर पत्रकार ग्राम्शी ने वर्ष 1915 में समाजवादी दल के साप्ताहिक पत्र ‘इल ग्रिडो देल पॉपलो’ में लेख लिखे। इसमें ग्राम्शी ने तूरीन के राजनीतिक-सामाजिक जीवन और तूरीन के श्रमिक वर्ग की गतिविधियों के बारे में विस्तार से लिखा। ग्राम्शी का परिपक्व इतिहासबोध और उनका राजनीतिक विवेक बीसवीं सदी के तीसरे दशक में इतालवी भाषा के पत्र ल’ऑर्दिन नोवो (‘न्यू ऑर्डर’) में प्रकाशित उनके लेखों में भी स्पष्ट दिखाई पड़ता है। इस साप्ताहिक पत्र का प्रकाशन अप्रैल 1919 में अंतोनियो ग्राम्शी ने अपने साथियों पैमिरो तोगलियाती, उम्बेर्तो तेरासिनी और एंजेलो टस्का के साथ मिलकर शुरू किया था। इस पत्र में ग्राम्शी ने समकालीन राजनीति, इतिहास, इतालवी समाज, श्रमिकों संगठनों की स्थिति और इटली में मुसोलिनी और फ़ासीवाद के उभार के बारे में लगातार लेख लिखे थे। क्रांतियों के इस विचारक को सलाम!

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