बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर चंद सवाल

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— शंभू नाथ —

हिंदुओं ने बुद्ध को अपना नौवां अवतार मान लिया, पर मुझे आज तक समझ में नहीं आया कि हमने उनके किस वचन को अपनाया। बुद्ध हमें अपने लगते हैं, पर हमने उनका कोई विचार नहीं चुना। इधर सनातन का शोर मचाया गया है, पर सत्य तो वही है जो बुद्ध ने कहा था। उन्होंने कहा था कुछ भी सनातन नहीं है, सबकुछ ’अनित्य’ है अर्थात परिवर्तनशील है। उन्हैं सनातन को इसलिए भी नहीं मानना था कि उन्हें वर्ण व्यवस्था को नहीं मानना था।

हिंदू परंपरा में यदि सनातन ही अंतिम सत्य है तो वर्ण व्यवस्था कर्म–आधारित से जन्म–आधारित कैसे हो गई? हिन्दू धर्म में सनातनता और सृजनात्मकता में सदा एक आत्मीय द्वंद्व रहा है। भक्त कवियों ने सनातन से संबंध भी रखा और उसे परिवर्तित भी किया। अन्यथा तुलसी को छोड़कर देश के सभी भक्त कवियों ने वर्ण व्यवस्था का विरोध क्यों किया?

भक्त कवियों पर बौद्ध धर्म की तार्किक आलोचनात्मकता का प्रभाव स्पष्ट है। पर आम हिंदू जनता आज भी जातिवाद के पाखंड से बाहर नहीं निकल पा रही है, बल्कि इधर जाति–वर्चस्व और पाखंड दोनों बढ़े हैं!

कहना है कि कोई व्यक्ति जातिवादी और देशप्रेमी दोनों एकसाथ नहीं हो सकता!

बुद्ध के अवतरण के लगभग 600 वर्षों बाद उनके जीवन के बारे में ’बुद्धचरित’ (अश्वघोष) लिखा गया था। इतने सालों बाद उनका जीवन और वैचारिक संघर्ष एक मिथकीय कोहरे में लिपटा हुआ है। कथाएं सत्य नहीं होतीं पर कथाओं के बिना सत्य जाना भी नहीं जा सकता!

भारत के इतिहास में और हिंदी भूमि पर अहिंसा के इतने बड़े प्रवक्ता का होना हम हिंदी भाषियों के लिए गौरव की बात है! दुखद यह है कि हिंदी क्षेत्र ही वैर, जाति–कलह और हिंसा से सर्वाधिक आक्रांत है! जबकि बुद्ध वे पहले दार्शनिक हैं जिन्होंने मनुष्य और मनुष्य के बीच दीवार तोड़ देनी चाही!

आज भारत में हर तरफ बुद्ध का जो चेहरा लोकप्रिय है, उसमें अफगानिस्तान की गांधार शैली के तत्व हैं, उनके घुंघराले बाल! बुद्ध की मूर्ति मिश्रित शैली की देन है। भारत देश भी मिश्रण से बना है!
यह जानकर आश्चर्य हो सकता है कि हिंदुओं की मूर्तिपूजा बौद्धों की मूर्तिपूजा की देन है! पहले भारत में बौद्ध मंदिर ही ज्यादा थे!

मैं 2006 में जब अफगानिस्तान में हर तरफ बम –रॉकेट गिर ही रहे थे, तब वहां के विश्वविद्यालयों में हिंदी विभाग खोलने के लिए विदेश मंत्रालय की तरफ से काबुल गया था। तभी एक सैर में हिंदकुश पर्वतमाला की तरफ जाने के लिए बामियान के रास्ते से गुजरा था। नीचे की तस्वीर गूगल की है। पर कैसा विचित्र हो चुका है यह विश्व कि वह बुद्ध और हिंसा दोनों की जोड़ी लेकर चल रहा है!


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