— रमाशंकर सिंह —
विश्वसनीय मित्र देश रूस की निगाह में डांवाडोल बनते हुये स्थायी मित्र को छोड़कर अमेरिका की शरण में पूरी तरह समर्पण मुद्रा में चले जाना और अन्य मित्र देशों की भी मदद लेने में असफल होना
२- जरूरत से बहुत ज्यादा वाचाल और विदेशों में भी अतिप्रचारमुखी की छवि से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी प्रधानमंत्री की गैरगंभीर और लोकरंजक इमेज बनना
३- अज्ञानता , गैरजानकारी में चौथी या अधिकतम पांचवीं जैनरेशन के जहाज़ों व हथियारों पर भरोसा करना जबकि अद्यतन मिलिट्री इंटेलीजेंस का व टेक्नोलॉजी की ताजा सूचनाओं का न होना । चीन के पास छठवीं पीढ़ी के विमान व हथियारों के साथ साथ उपग्रह सूचनातंत्र की हैकिंग की तकनीक होना
४- थके बूढे और परम्परागत मैदानी व हवाई युद्ध के पुराने तरीकों के जानकारों को सलाहकार बनाये रखना
५- कैसी भी कूटनीतिक और युद्ध की तैयारी किये बगैर पाकिस्तान को पहले जैसा कमजोर समझना जबकि यह स्पष्ट था कि पीओके में चीनी बड़े निवेश के बाद किसी को भी अंदर नहीं घुसने देगा कि उसका अरबों डॉलर का निवेश ही बेकार हो जाये। पाकिस्तान के खुले समर्थन में तुर्की चीन देश आये जबकि भारत का नैतिक समर्थन भी किसी ने खुले तौर पर नहीं किया। मोदी को अलंकृत करने वाला एक देश भी सामने आकर समर्थन में खडा नहीं हुआ , अमेरिका भी नहीं । यह विदेश नीति की चौतरफ़ा असफलता रही।
६- बेइज़्ज़ती करवानें में प्रम की प्रिय मीडिया मंडली आगे रही। सरासर सफेद झूठ और आयंबायंशांय की कोई लिमिट नहीं रही । अब जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खिल्ली उड़ रही है उसके लिये गोदी मोदी मीडिया ज़िम्मेदार है।
अब पूरी तैयारी करने में न्युनतम दस साल लगेंगें जबकि पूरे संसाधन देते हुये युवा रणनीतिकारों और कम्प्यूटर विशेषज्ञों का एक नयी बड़ी टीम व टॉस्कफोर्स बने जो सातवीं आठवीं से लेकर लगातार नई से नई जेनरेशन के विमान हथियार बनाये। चुनाव की हार जीत जो हो सो होती रहे। अब देश के सामने सुरक्षा का बड़ा संकट खड़ा है। चीन के प्रभाव से / में पाकिस्तान बांग्लादेश नेपाल मालदीव मिलकर एक वास्तविक ख़तरा बन चुके हैं। अच्छा हुआ कि युद्धविराम करवा लिया अन्यथा बहुत बड़ी हार हो सकती थी।
एक छोटी सी जगहँसाई से सच्चाई सामने आ गयी। समझ में आना चाहिये कि शांत व चुप्प रह कर गंभीर तैयारी करनी पड़ेगी और आंतरिक राजनीति में अपने रुख में बड़ी तब्दीली करनी पड़ेगी। नारेबाज गालीबाज शोहदों की फौज घर में तो किसी को डरा लेगी लेकिन बाहरी ख़तरा देखते ही दुम दबा कर भाग जायेगी। अभी बनी राजनीतिक सामाजिक एकता को किसी भी तरह खंडित नहीं होने देना चाहिये । तीस करोड़ भारतीय मुसलमान सिख ईसाई जैन बौद्ध को साथ लेकर चलना होगा , यह असंभव नहीं है ।
देश हित पहले
राजनीति बाद में
भविष्य की ओर निगाह
और निजी स्वार्थ एकदम नहीं
यदि इस पर चलें तो ठीक वरना ….. मैं बताना नहीं चाहता!
क्या मोदी अपने आपको इतना बदल सकते हैं ?
अन्यथा भाजपा से ही कोई दूसरा नाम सामने आये ! मोदी ११ बरस रह लिये , बहुत है।