— डॉ मंगल मेहता —
साबूत पैर
आदमी के दो साबूत पैर हैं साबूत ईमान तो परवाह नहीं समस्या जूझता जी लेगा, जिला देगा जमाना। अतीत को चैक की भांति भुनाने की कि दूसरों के संकल्प श्रम अपने खाते में डालने की हविश नहीं, धूप-साया को चुभते नहीं धरती के किसी कोने में रहे साबूत पैरों और साबूत ईमान वाला आदमी। संस्कार उगते हैं ऐसे। भविष्य को दर्पण की तरह पल-पल निहारता गाता नहीं, सच के पंख होते नहीं अंकुर की सी जिजीविषा आसमान छू लेना जानती है।
नेता उर्फ…
ठहाके उनके कांप-कांप जाता मन उनका हिंसक आचार त्रस्त कर रहा जन-जन को। आस-पास जुटे हैं उनके साथ दर्शायी सफलता को लिए चेहरों पर मुस्कान उगाते जताते हैं सहते रहेंगे उनको। रिश्तों पर हावी रखते हैं अपनी खसूसियत, मिलना उनका स्वभाव है जताते हैं यह इसको-उसको। नुक्ताचीनी, कांटों की परवाह नहीं उनको, जानते हैं कहां-कहां हैं बिछाये उन्होंने, लोगों ने, नेता रहेंगे आगे, परवाह इसकी उनको। उनका डीलडौल, कपड़े आपकी समझ का पर्दा हटा रहे हैं कि आप समझ-रहे हैं उन्हें मानक !
भ्रष्ट भगीरथ
भगीरथ बने हैं राजस्थानी रणबांकुरे, बरसों से मरुस्थल सींचने को ला रहे नहरें, हरा सपना जिस मन ने देखा वहां नहीं थी खोट, रुपयों को जुगाड़ा उन मनों में भी नहीं थी खोट, दंमी इंजीनियर, ठेकेदार होते रहे भ्रष्ट, भ्रष्ट ३०-४० करोड़ गये डकार या की फिजूल खर्ची संदेह उगे अनेक सरकार के लिए क्योंकि देरी, ढिलाई, लोपा पोती ढंकी क्यों बेईमानी इनका मान न घटे, देश का विश्वास डिगा है मांग रहे अकाल को राहत अब नुमाइंदे, पतियायेगा कौन ? बोलें कुछ नहीं, मन ही हसेंगें इन हरियाली चोरों, खुशहाली चोरों को मुकद्दमा ठोक शीघ्र सजा की व्यवस्था कीजिये देश नहीं होगा सूना, परिवार नहीं होगा सूना (भ्रष्ट की न पत्नी होती है न बेटा न माँ-बाप जो कुछ है उस राक्षस का बस पैसा)
विश्वास जमेगा देश का बच्चा बच्चा होगा साथ अकाल में, दुकाल में, रहेगा भूखा कंधे से कंधा भिड़ा रहेगा साथ, हर घड़ी हर पल साथ कीजिये कुछ कि गौरव से ऊंचा रहे माथ ।
(अगस्त 86)