पाठ्य पुस्तकों के जरिए ‘हिस्ट्री’ बदलने का ‘हिस्टीरिया’

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— राकेश अचल —

जकल देश के भाग्य विधाताओं को हिस्टीरिया के दौरे फिर पडने लगे हैं. सरकार पाठ्य पुस्तकों के जरिए देश की हिस्ट्री बदलने की कोशिश कर रही है. इस कोशिश का समर्थन से ज्यादा विरोध हो रहा है, किंतु हमेशा की तरह सरकार बेफिक्र है. ताजा सूचनाओं के मुताबिक राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद अर्थात एनसीईआरटी की आठवीं क्लास की सोशल साइंस की नई किताब में बाबर को बर्बर, हिंसक विजेता और पूरी आबादी का सफ़ाया करने वाला बताया गया है.वहीं अकबर के शासन को क्रूरता और सहिष्णुता का मिला-जुला रूप बताया है. इसके अलावा औरंगज़ेब को मंदिर और गुरुद्वारा तोड़ने वाला बताया गया है.

इतिहास को मनमाफिक और अपने सियासी एजेंडे के अनुरूप ढालने को जायज बताते हुए एनसीईआरटी का कहना है कि इतिहास के कुछ अंधकारमय अवधि को समझाना ज़रूरी है. इसके साथ ही किताब के एक अध्याय में कहा गया है कि अतीत की घटनाओं के लिए अब किसी को ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है.

सरकार एक तीर से दो निशाने साध रही है. एक तरफ सरकार इतिहास का पुनर्लेखन करने के साथ अपनी मुस्लिम विरोधी छवि को भी चमकने की कोशिश कर रही है. आठवीं क्लास की सोशल साइंस की किताब का पार्ट-1 ‘एक्सप्लोरिंग सोसाइटी: इंडियन एंड बियॉन्ड’ इसी हफ़्ते जारी हुई थी. एनसीईआरटी की नई किताबों में से यह पहली किताब है जो विद्यार्थियों को दिल्ली सल्तनत और मुग़लों से परिचित कराती है.

एनसीईआरटी की नई किताब में 13वीं से 17वीं सदी तक के भारतीय इतिहास को शामिल किया गया है. इस किताब में मुगलिया सल्तनत के चार सदी के कार्यकाल को लूट-पाट और मंदिरों को तोड़ने के रूप में दिखाया गया है. इसके पहले की किताब में सल्तनत काल को इस रूप में पेश नहीं किया गया है. द हिन्दू के अनुसार, एनसीईआरटी की नई किताब में लिखा गया है कि चित्तौड़ के क़िले पर क़ब्ज़े के दौरान अकबर की उम्र 25 साल थी और उन्होंने 30 हज़ार नागरिकों के जनसंहार के साथ बच्चों और महिलाओं को ग़ुलाम बनाने का फ़रमान जारी किया था.

इस किताब में अकबर के हवाले से कहा गया है, ”हमने काफ़िरों के कई क़िलों और कस्बों पर क़ब्ज़ा कर लिया है और वहाँ इस्लाम की स्थापना की है. ख़ून की प्यासी तलवारों की मदद से हमने उनके मन से काफ़िरों के निशान मिटा दिए हैं. हमने वहाँ के मंदिरों को भी नष्ट कर दिया है.”

किताब में लिखा है कि अकबर अपने बाद के शासन में शांति और सद्भावना की बात करने लगते हैं. जिन लोगों ने ये किताबें देखीं हैं उनके मुताबिक किताब में यह भी लिखा है कि औरंगज़ेब ने स्कूलों और मंदिरों को तोड़ने का आदेश दिया था. किताब के मुताबिक़ बनारस, मथुरा और सोमनाथ सहित जैनों के मंदिर और सिखों के गुरुद्वारे भी नष्ट किए गए. इसमें पारसियों और सूफ़ियों पर भी मुग़लों के कथित अत्याचार का भी ज़िक्र है.

दुर्भाग्य से भारत का दक्षिणपंथी खेमा ग़ुलामी की अवधि केवल अंग्रेज़ों के 200 साल के शासन को ही नहीं मानता है बल्कि पूरे मध्यकाल को भी ग़ुलाम भारत के रूप में देखता है.आपको बता दूं कि नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनने के बाद पहली बार 11 जून, 2014 को लोकसभा में अपने पहले ही भाषण में मोदी ने कहा था, ”12 सौ सालों की ग़ुलामी की मानसिकता परेशान कर रही है. बहुत बार हमसे थोड़ा ऊँचा व्यक्ति मिले, तो सर ऊँचा करके बात करने की हमारी ताक़त नहीं होती है.”

प्रधानमंत्री मोदी की इस बात ने कई सवाल एक साथ खड़े किए. क्या भारत 1200 सालों तक ग़ुलाम था? क्या भारत ब्रिटिश शासन के पहले भी ग़ुलाम था?

पीएम मोदी ने जब 1200 साल की ग़ुलामी की बात कही थी, तो उन्होंने आठवीं सदी में सिंध के हिंदू राजा पर हुए मीर क़ासिम के हमले (सन 712) से लेकर 1947 तक के भारत को गुलाम बताया.भारत में अंग्रेज़ों का शासनकाल मोटे तौर पर 1757 से 1947 तक माना जाता है, जो 190 साल है. इस हिसाब से ग़ुलामी के बाक़ी तकरीबन एक हज़ार साल भारत ने मुस्लिम शासकों के अधीन गुज़ारे थे. मध्यकाल के मुस्लिम शासकों को दक्षिणपंथी खेमा आक्रांता कहता है. आप जानते हैं कि सत्ता के लिए एक दूसरे राज्य पर हमला करना कोई नई बात नहीं थी.हमने जो इतिहास पढा उसके मुताबिक ”मौर्यों का शासन अफ़ग़ानिस्तान तक था, इस तरह तो वे भी आक्रांता हुए. सत्ता विस्तार और सत्ता पाने की चाहत को हम चाहे जिस रूप में देखें. इस चाहत का किसी ख़ास मज़हब से कोई रिश्ता नहीं है.”

इतिहास बताता है कि बाबर और हुमायूँ मध्य एशिया से आए थे. अकबर हिन्दुस्तान से बाहर कभी नहीं गए. अकबर के बाद जितने मुग़ल शासक हुए सबका जन्म भारत में ही हुआ था.इसलिए उन्हे कम या ज्यादा करके नहीं बताया जा सकता, लेकिन भगवा सनातनी सरकार इतिहास से छेडछाड करने से बाज नहीं आ रही. बहुत पुरानी बात नहीं है जब हमारे यहाँ महाराष्ट्र में स्थित औरंगजेब की कब्र से लेकर अजमेर शरीफ की मजारों तक को उखाड फेंकने का एक अभियान चला था, लेकिन कामयाब नहीं हो पाया. सरकार कब्रें और मजारें तो नहीं हटा सकी किंतु सरकार ने पाठ्य पुस्तकों में मुगलों की तस्वीरें अपने मन माफिक जरूर गढ लीं. गनीमत ये भी है कि सरकार ने मुगल सम्राटों के वजूद को नहीं ठुकराया, अन्यथा सरकार कह सकती थी कि बाबर, अकबर और औरंगजेब जैसे शासकों का कोई वजूद था ही नहीं.

दर असल हिस्ट्री के हिस्टीरिया का इलाज आधुनिक चिकित्सा विज्ञानं में भी कोई पुख्ता इलाज नहीं है. हकीम लुकमान और चरक भी इस बीमारी का कोई इलाज नहीं कर पाए. इस लाइलाज बीमारी से मुक्ति का एक ही रास्ता है और वो है सत्ता परिवर्तन. सत्ता प्रतिष्ठान के खिलाफ खडा होना भी एक तरह का हिस्टीरिया ही है.


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