जब लोग मतदान से कन्नी काटने लगेंगे

0
When people start avoiding voting

Rakesh Achal

— राकेश अचल —

भारत में पिछले कुछ दिनों से केंद्रीय चुनाव आयोग अविश्वसनीय हुआ है और जिस तरीके से आयोग ने बिहार में मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण अभियान के नाम पर कतर व्योंत शुरु की है उसे देखते हुए वो दिन दूर नहीं जब आम भारतीय मतदाता सूची में अपना नाम दर्ज कराने के साथ ही मतदान से भी कन्नी काटने लगेगा.

भारत में पंजीकृत मतदाताओं की संख्या 99.1 करोड़ है, यह संख्या 2024 के लोकसभा चुनावों के दौरान 96.88 करोड़ से बढ़ी है। इस समय देश में वोट चोरी को लेकर कांग्रेस ने एक राष्ट्रवयापी अभियान छेडा हुआ है. कांग्रेस ने कर्नाटक के एक विधानसभा क्षेत्र महादेवपुरा में वोट चोरी के आंकडे देकर आम मतदाता के मन में ये आशंका पैदा कर दी है कि कहीं उसका वोट भी तो चोरी नहीं हो गया.?

चुनाव आयोग की विश्वसनीयता बहाल करने के साथ उसे बढाने के लिए 1990 में जो प्रयास तत्कालीन मुख्य चुनाव टीएन शेषन ने किए थे उन्हे आज मिट्टी में मिला दिया गया है. चुनाव आयोग को लोग भाजपा की बी टीम कह उठे हैं. केंचुआ मतदाता के मताधिकार की सुरक्षा की गारंटी देने में नाकाम साबित हुआ है. चुनाव में वोट चोरी के साथ ही मनी पावर, मसल पावर और मशीन पावर का इस्तेमाल इस अविश्वसनीयता की असल जड है.

बिहार के सघन मतदाता पुनरीक्षण अभियान का विवाद अभी देश की सबसे बडी अदालत में विचाराधीन है. चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि ऐसा जरूरी नहीं है कि वह उन मतदाताओं के नाम की लिस्ट भी प्रकाशित करे जिनके नाम बिहार की वोटर लिस्ट के ड्राफ्ट रोल में शामिल नहीं हैं।

चुनाव आयोग ने यह बात एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की याचिका के जवाब में कही है। एडीआर ने अपनी याचिका में कहा था कि उन 65 लाख मतदाताओं के नाम और बाकी जानकारियों को सार्वजनिक किया जाए, जिनके नाम 1 अगस्त को प्रकाशित किए गए ड्राफ्ट में नहीं थे।

आप जानते ही हैं कि बिहार में विशेष सघन पुनरीक्षण (SIR) के खिलाफ विपक्ष लगातार आवाज बुलंद कर रहा है। इस अभियान के पहले चरण के बाद यह बात सामने आई थी कि राज्य के करीब 8 फीसदी मतदाता यानी 65 लाख मतदाताओं के नाम ड्राफ्ट लिस्ट में शामिल नहीं हो पाए हैं.

इसके बाद सवाल उठा था कि क्या इन 65 लाख लोगों को चुनाव में वोट डालने का मौका नहीं मिलेगा?लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव सहित तमाम विपक्षी नेता बिहार से लेकर दिल्ली तक एस आई आर का विरोध कर रहे हैं। बिहार में अक्टूबर-नवंबर में विधानसभा के चुनाव होने हैं।

एडीआर ने 5 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर मांग की थी कि इन 65 लाख लोगों के न सिर्फ नाम बताए जाएं, बल्कि नाम क्यों काटा गया, इसकी वजह भी बताएं। चुनाव आयोग ने कहा कि उसे जितने मतगणना फार्म मिले, उनके आधार पर ही वोटर लिस्ट का ड्राफ्ट प्रकाशित किया गया है और इस चरण में कोई जांच नहीं की गई है।

यदि एडीआर और विपक्ष वोट चोरी का मुकदमा सुप्रीम कोर्ट में हार जाता है तो एसडीआर पूरे देश में लागू किया जा सकता है. सरकार केंचुआ के कंधे पर बंदूक रखकर देश की मतदाता सूची में से गैर भारतीयों की छंटनी करना चाहती है, हालांकि केंचुआ एसडीआर का अलग उद्देश्य बताती है. केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने केंचुआ के एसडीआर के बचाव में नेहरू जी की आड ली है और दावा किया है कि देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने सबसे पहले एसडीआर का इस्तेमाल किया था.


Discover more from समता मार्ग

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

Leave a Comment