धर्मनिरपेक्षता के बिना संघियों का तिरंगा प्रेम !

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— प्रोफेसर जगदीश चतुर्वेदी —

मेरी सहानुभूति आरएसएस के उन कार्यकर्ताओं के साथ है जो तिरंगा फहरा रहे हैं ! हे भगवान इनकी रक्षा करना ! तिरंगा उठाने की जब जरूरत थी तब यह संगठन तिरंगा झुकाने वालों,तिरंगा का अपमान करने वालों की चिलम भरता रहा,लेकिन इधर अचानक इसके अंदर तिरंगा “प्रेम ” उमड़ पड़ा है ! यह कैसे संभव है जिन संघी कार्यकर्ताओं को धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ,गांधी -नेहरू के विचारों के खिलाफ,संविधान में वर्णित धर्मनिरपेक्ष -लोकतांत्रिक नजरिए के खिलाफ सालों-साल जहर पिलाया गया हो,जिनके मन को कलुषित करके रखा गया हो और आज अचानक कहा जा रहा है कि चलो तिरंगा. फहराओ ! दिन रात धर्मनिरपेक्षता को गाला देकर तिरंगे की रक्षा संङव नहीं है संघियो! संघ के जो कार्यकर्ता धर्मनिरेक्षता को गाली देते हैं उनको तिरंगा नहीं फहराना चाहिए ।उनको सिर्फ शाखा में जाना चाहिए।

यह तो नाइंसाफी है !!

तिरंगा महज देश का झंडा या झंडा मात्र नहीं है,यह कोई कपड़े का टुकड़ा नहीं है कि उसे डंडे में लगाओ और जोर जोर से हिलाओ।तिरंगा के साथ विचारधारा भी जुड़ी है,उस विचारधारा से हर संघी नफरत करता है। मसलन् अधिकतर संघियों के मन में मुसलमानों और ईसाईयों के प्रति प्रेम का अभाव है बल्कि अनेक मामलों में गहरी घृणा है।जबकि तिरंगा से सच में प्यार करने वाले के मन में मुसलमान-ईसाई आदि अल्पसंख्यकों के प्रति नफरत नहीं होनी चाहिए।

जिनको धर्मनिरपेक्षता-लोकतंत्र का वैचारिक अभ्यास नहीं है वे तिरंगा को संभालेंगे किस मन से ! क्योंकि तिरंगे के साथ हाथ ही नहीं धर्मनिरपेक्ष मन और हृदय भी होना चाहिए।मुश्किल यह है आरएसएस के लोगों के पास तिरंगा लायक न तो मन है और न हृदय है,ऐसे में तिरंगा सिर्फ नकली प्रचार का साधन मात्र बनकर रह जाएगा।

इससे भी बड़ी एक बात और मसलन् कोई व्यक्ति खेती नहीं जाने,शारीरिक श्रम का अभ्यस्त न हो और उसे हठात् किसानी के काम में लगा देंगे तो बेचारा परिश्रम करते करते मर जाएगा। या फिर किसान को सीधे खेत से उठाकर विश्वविद्यालय में पढाने के काम में लगा दो तो वह ढेर हो जाएगा।अभ्यास का बन्धन सबसे बड़ा बन्धन है,जिसे जिस चीज के अभ्यास में जीने की आदत होती है वह उस बन्धन से सहज ही मुक्त नहीं हो पाता।बेचारे आरएसएस वाले हिन्दूवाद के बन्धन में बंधकर धर्मनिरपेक्षता का तिरंगा उठा रहे हैं,बेचारे कही धर्मनिरपेक्षता के बोझ में मर न जाएं !

15 अगस्त महज एक तारीख या राजनीतिक जश्न का दिन या इवेंट नहीं है बल्कि संघर्ष के इतिहास का प्रतीक है। यह विभाजन की विभीषिका के प्रत्युत्तर में जनसंघर्षों से बनाया गया लोकतंत्र-धर्मनिरपेक्षता और समानता का महाख्यान है।यह सकारात्मक घटना है। यह विभाजनकारी शक्तियों की पराजय और लोकतंत्र-धर्मनिरपेक्षता की जीत के महापर्व का दिन है।

15 अगस्त का इतिहास उन लोगों ने रचा है।जिन लोगों ने कुर्बानी दी। उनमें नेता भी हैं जनता भी है,इसमें अनेक रंगत के क्रांतिकारी और उदार विचार के नेताओं की केन्द्रीय भूमिका रही हैं।लेकिन जो इस इतिहास निर्माण के विरूद्ध खड़े थे उनको अभी तक मिटाया नहीं जा सका है।15अगस्त का इतिहास जब भी पढा जाएगा,या इस दिन को याद किया जाएगा तो उन लोगों और उन विचारधाराओं पर नजर रखने की जरूरत है ,जो धर्म के आधार पर राष्ट्र का निर्माण करना चाहते थे। जिनके कारण देश टूटा, सामाजिक सद्भाव नष्ट हुआ, जिन्होंने अंग्रेजों की गुलामी की और स्वतंत्रता के मार्ग में बाधाएं खड़ी कीं।

ज्यों ही 15 अगस्त आता है साम्प्रदायिक गिरोह नफरत का मीडिया–साइबर पैकेज लेकर आपके बीच में आ जाते हैं। इनमें वे लोग हैं जो स्वाधीनता संग्राम, तिरंगा झंडा,संविधान ,लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता का खुले आम विरोध करते रहे हैं। मुसलमानों को देश का शत्रु मानते हैं।

15अगस्त आ रहा है तो खुद लिखो कि आपके शहर में विगत वर्षों में क्या नया बना है और बिगड़ा है। आपके शहर में किन लोगों स्वाधीनता संग्राम में भाग लिया? शेयर करने की आदत से बाहर निकलो,स्वयं बोलना सीखो,लिखना सीखो, फेसबुक की शक्ति को अपनी ताकत बनाओ, मूक बनकर शेयर करो की मनोदशा से बाहर निकलो।शहर या गांव में आज क्या हालात हैं,लोग कैसे हैं,राजनीति किस तरह करवट बदल रही है, बच्चों,औरतों, मजदूरों,किसानों के क्या हालात हैं,इन सब विषयों पर लिखो,कुछ न सही आपने बाजार पर ही लिखो।अनुकरण करना छोड़ो। स्वाधीनता का अर्थ अनुकरण नहीं आत्मनिर्भरता और स्वतंत्रता है।

भारत के स्कूलों में शिक्षक नियुक्त करने की चिंता नहीं है लेकिन तिरंगा झंडा फहराने, राष्ट्रगान और वंदेमातरम् की चिंता है,स्कूलों में पेशाबघर बनाने और स्वच्छ पीने का पानी पहुँचाने की चिंता नहीं है लेकिन 15अगस्त के आयोजन को मोदी आयोजन के रूप में मनानेकी चिंता है।स्कूलों का प्राथमिकता है शिक्षक और सुविधाएं।इन पर ध्यान देने की बजाय मोदी सरकार देश के स्कूलों को राष्ट्रवाद के विभ्रमों में उलझाकर लड़ाना चाहती है।


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