20 अगस्त 1927 की एक सार्वजनिक सभा में महात्मा गांधी ने श्री कृष्ण , गीता और जन्माष्टमी के बारे में कहा था ।
हम नहीं जानते कि श्री कृष्ण के जीवन का हमारे लिए क्या संदेश है । हम गीता नहीं पढ़ते । हम अपने बच्चों को भी गीता पढ़ाने का कोई प्रयास नहीं करते ।
गीता एक ऐसा दिव्य ग्रंथ है जिसे हर धार्मिक विश्वास , हर आयु और हर देश के व्यक्ति आदरपूर्वक पढ़ सकते हैं और अपने – अपने धर्म के सिद्धांत में उसे पा सकते हैं ।
यदि हम हर जन्माष्टमी के दिन कृष्ण का ध्यान करें और गीता पाठ करें और उसकी सीखों पर चलने का संकल्प करें , तो हमारी दशा ऐसी दयनीय नहीं रहेगी जैसी आज है ।
श्री कृष्ण ने जीवन भर जनता की सेवा की । वे जनता के सच्चे सेवक थे । उनका समूचा जीवन कर्म की एक अविच्छिन्न गीता ही था ।
श्री कृष्ण के जीवन में निद्रा या निठल्लेपन का कोई स्थान नहीं था । उनकी सतत जागरूक दृष्टि विश्व पर रहती थी । परंतु आज हम उनके वंशज अब काहिल बन गये हैं और अपने हाथों से काम करना बिल्कुल ही भूल गए हैं ।
गीता में सच्ची निष्ठा रखनेवाला कोई व्यक्ति हिंदू और मुसलमान के बीच भेद नहीं करेगा , क्योंकि भगवान कृष्ण ने कहा है कि कोई चाहे जिस नाम से ईश्वर की उपासना करे , यदि उसकी उपासना सच्ची है तो वह उन्हीं की उपासना है ।
गीता में प्रतिपादित भक्ति , कर्म या प्रेम के मार्ग में मनुष्य से घृणा करने की कोई गुंजाइश नहीं है ।
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