अस्सी के आचार्य का सादगी भरा समारोह

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Simple ceremony of Acharya of Assi

सुप्रसिद्ध कवि, आलोचक, नाटककार, अनुवादक और गांधीवादी चिंतक नंदकिशोर आचार्य का अस्सीवाँ जन्मदिन आज रविवार 31 अगस्त को सादगी और आत्मीयता के वातावरण में “चाँद आकाश गाता है” शीर्षक से राजस्थान प्रौढ़ शिक्षण समिति के तत्वावधान में मनाया गया। यह अवसर केवल एक जन्मदिन का उत्सव नहीं था, बल्कि एक ऐसे जीवन की साधना का उत्सव था जो पूरी तरह शब्दों, साहित्य और गांधीवादी मूल्यों के प्रति समर्पित रहा है। समारोह में देशभर से आचार्य जी के प्रशंसक पहुँचे। विशेष रूप से बीकानेर से बड़ी संख्या में आए उनके शुभचिंतकों ने उन्हें स्नेह और सम्मान से याद किया और उनके दीर्घ साहित्यिक जीवन का अभिनंदन किया।

इस अवसर पर दिल्ली से आए चर्चित आलोचक डॉ. पुरुषोत्तम अग्रवाल, वरिष्ठ साहित्यकार गोविन्द मिश्र, पद्मश्री शायर शीन काफ़ निज़ाम, पद्मश्री डॉ. डी. आर. मेहता, कवि-लेखक नंद भारद्वाज, डॉ. हेतु भारद्वाज, डॉ. दुर्गा प्रसाद अग्रवाल, आलोचक राजाराम भादू, राजेन्द्र उपाध्याय, गिर्राज मोहता और पत्रकार-संपादक आनंद जोशी सहित अनेक साहित्यकारों, विद्वानों और विचारकों ने आचार्य जी के कृतित्व और व्यक्तित्व पर अपने विचार साझा किए।

शायर शीन काफ़ निज़ाम ने कहा कि नंदकिशोर आचार्य ने स्वयं को शब्द को समर्पित कर दिया है। वे निरंतर लिखते-पढ़ते रहते हैं, मानो उनके लिए जीवन का सबसे बड़ा उपहार शब्द ही हों। उन्होंने कहा कि आचार्य जी प्रेम से भी अधिक शब्दों को प्रेम करते हैं, क्योंकि उनके लिए शब्द कवि का ईश्वर है। उन्होंने कवि प्रभात त्रिपाठी के कथन का उल्लेख किया कि आचार्य ‘मुकम्मल कवि’ हैं, और यह मुकम्मली इसलिए है क्योंकि वे मानते हैं कि कविता स्वयं उनसे लिखवाती है। गांधीजी की तरह वे भी अपनी सारी खिड़कियाँ खुली रखते हैं, उनकी कविता में फ़लसफ़ा, समाजशास्त्र और मनोविज्ञान एक साथ बोलते हैं।

शीन काफ़ निज़ाम ने आचार्य जी की एक कविता का उल्लेख करते हुए कहा—“लामकाँ है भाषा, जिसमें नहीं बन सकता मकाँ कवि का।” उन्होंने आगे कवि की पंक्ति उद्धृत की—“मैं तुम्हारी खामोशी को अपने शब्दों में सुनना चाहता हूँ। वो क्या है जो मेरे शब्दों से परे है, मैं उसे बस एक बार छू लेना चाहता हूँ।” उनके अनुसार कवि का यह “छू लेना” ही उसकी संवेदना का चरम है। उन्होंने कहा कि कविता इल्म का इत्र है और अच्छी कविता शहद की तरह होती है, जिसमें अनेक फूलों का रस घुला होता है।

वरिष्ठ आलोचक राजाराम भादू ने आचार्य जी को एक बड़े कवि के साथ ही एक शिक्षाविद के रूप में याद किया। उनके अनुसार शिक्षा एक जीवनपर्यंत चलने वाली साधना है, और आचार्य जी ने इसे जिया है। उन्होंने संस्कृति पर कई महत्त्वपूर्ण किताबें लिखीं और नाट्य तथा आलोचना के क्षेत्र में भी अद्वितीय योगदान दिया। प्राकृत भारती के लिए उनके संपादन में प्रकाशित “अहिंसा विश्वकोश” को उन्होंने एक संस्था के समान बताया। अहिंसा और शांति पर उनके संपादन में इक्यावन पुस्तकें प्रकाशित हुईं, जो अपने आप में एक महान कार्य है।

कवि-लेखक नंद भारद्वाज ने कहा कि आचार्य जी का हिंदी साहित्य में आगमन अपने आप में गर्व की बात है। वे ‘चौथा सप्तक’ के कवि हैं और अब तक दो दर्जन से अधिक काव्य-संग्रह प्रकाशित कर चुके हैं। हिंदी के साथ ही राजस्थानी भाषा पर भी उनका गहरा अधिकार है। वे अज्ञेय को गहराई से समझने वाले और उनके समकक्ष खड़े रहने वाले अकेले साहित्यकार हैं। उनकी दृष्टि विशिष्ट है और उनकी अप्रोच बिल्कुल भिन्न। नंद भारद्वाज ने कहा कि आचार्य जी के चिंतन का आधार गांधीवाद है, जिसमें वे राज्यविहीन समाज की व्याख्या करते हैं। उनका “अहिंसा विश्वकोश” जैसा महत्ती कार्य आने वाली पीढ़ियों तक याद किया जाएगा।

गांधीवादी विचारक और समाजसेवी डॉ. डी. आर. मेहता ने इस दिन को विशेष बताते हुए कहा कि आज एक अद्वितीय साहित्यकार और गांधीवादी दार्शनिक का सम्मान किया गया है। उन्होंने “अहिंसा विश्वकोश” को विश्वशांति का प्रतीक बताया और कहा कि अहिंसा केवल जैन धर्म का सिद्धांत नहीं है बल्कि सम्पूर्ण मानवता के लिए एक सार्वभौमिक दर्शन है। उन्होंने यह भी कहा कि आचार्य जी धार्मिक नहीं हैं, लेकिन आध्यात्मिक हैं। उन्होंने आग्रह किया कि आचार्य जी अब अपनी आत्मकथा लिखें और अहिंसा-शांति पर किए गए उनके कार्यों का अंग्रेज़ी अनुवाद भी कराया जाए ताकि उसका प्रभाव व्यापक हो सके।

इस अवसर पर डॉ. दुर्गा प्रसाद अग्रवाल, आनंद जोशी, राजेन्द्र उपाध्याय, गिर्राज मोहता, आदिल रज़ा मंसूरी और अंजू ढड्डा मिश्रा सहित अनेक वक्ताओं ने भी अपनी श्रद्धा और विचार व्यक्त किए। सभी ने आचार्य जी को एक सच्चे गांधीवादी चिंतक, रचनाशील कवि और बहुविधा में योगदान देने वाले साहित्यकार के रूप में याद किया। समारोह का पूरा वातावरण आत्मीयता, सादगी और साहित्यिक गरिमा से परिपूर्ण रहा, जिसमें नंदकिशोर आचार्य का व्यक्तित्व और कृतित्व सभी
उपस्थितों के हृदय में गहराई तक अंकित होता चला गया।
– नवल पाण्डेय।


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