— केपी मलिक —
हमारे देश की पंचमेल की परंपरा और कृतघ्नता का वर्तमान में जैसे कोई अस्तित्व ही समाप्त हो गया है। सिख और पंजाबी समाज की पहचान ‘सेवा’ और ‘साझा दुख-सुख’ से रही है। देश के किसी भी कोने में बड़ी आपदा आती है, तो सबसे पहले सिख लंगर, राहत और साहस वाली टीमें पहुँचती हैं;
दिल्ली की सड़कों या किसी अंतरराष्ट्रीय त्रासदी में इसी बिरादरी ने कंधा से कंधा मिलाकर अपनी मौजूदगी का एहसास बखूबी कराया है। लेकिन विडंबना देखिए कि जब आज पंजाब खुद संकट में है, कोई गैर-पंजाबी संगठन सामने नहीं आ रहा। सोशल मीडिया पर भी कोई प्रसिद्ध व्यक्ति, मशहूर हस्ती, या प्रतिष्ठित व्यक्ति की आवाज़ तक नहीं सुनी जा रही है।
सवाल बड़ा है कि क्या हम ऐसे समय में संवेदनशील राष्ट्र होने का दावा कर सकते हैं? जब देश में आपदा आती है, तो पंजाब हमेशा आगे रहता है। आज पंजाब संकट में है, तो पूरा देश मौन है क्यों? क्या यह हमारे सामाजिक और राष्ट्रीय चरित्र पर सवाल नहीं खड़ा करता? क्या एक राज्य की पीड़ा किसी अन्य राज्य या धार्मिक पहचान की वजह से ‘कम’ अहमियत पा जाती है?
पंजाब और सिख समाज ने हर आपदा में ‘राष्ट्रहित’ में बेमिसाल योगदान दिया है अब देश का फर्ज़ है कि वह इस संकट की कठिन घड़ी में पंजाब के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा हो। आज पंजाब पुकार रहा है आज हमारी एकजुटता की असल परीक्षा है। आज पंजाब की बर्बादी का मंजर महज भौगोलिक संकट नहीं, बल्कि संवेदना, सामाजिक न्याय और राष्ट्रीय एकता की भी परीक्षा है।
ज़मीन पर पसीना बहाने वाले, लंगर का निवाला बढ़ाने वाले पंजाबी समाज की मदद न करके, देश अपने ही नैतिक अधिष्ठान पर चोट कर रहा है। अब समय आ गया है कि मौन तोड़ें और पंजाब के साथ खुलकर प्रेम, साहस और मदद का हाथ आगे बढ़ाएं, क्योंकि हमें याद रखना चाहिए कि कल जब कोई और कोना संकट में होगा, तो पंजाब फिर सबसे पहले सेवा में खड़ा मिलेगा।
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