
कुदरती कहर की तबाही से हिमाचल, उत्तराखंड, पंजाब में दर-बदर होकर अपने ही घर में इंसान, बेजुबान पशु, जानवर बेबसी से अपनी बर्बादी को देख, झेल रहे हैं। सवाल यह है कि अपने आशियाने में बैठकर हम क्या कर रहे हैं? बदकिस्मती की बात यह है कि जिस खालसा पंथ ने हमेशा बिना किसी जाति, मजहब, वर्ग, वर्ण, देश-प्रदेश में कोई भूखा न सोए, मुसलसल “लंगर” जैसी सेवा से खिदमत की है तथा खास तौर से बुरे वक्त में हर तरह का जोखिम उठाकर हर तरह की मदद मुसीबतजदा लोगों की है, वह किसी से छिपा नहीं है। उसके अनुयायी भी बड़े स्तर पर इस आपदा के शिकार हैं।
मैं दिल्ली शहर का बासींदा हूं, अब तक जो मैंने अपनी आंखों से देखा, उसे कैसे भूला सकता हूं। बेनागा दिल्ली के गुरुद्वारों में चलने वाले लंगर में हर रोज बड़ी तादाद में “प्रसादी” के रूप में पौष्टिक, स्वादिष्ट भोजन बिना किसी जात, मजहब, पंथ, वर्ग, वर्ण की पहचान के कराया जाता है। जंतर-मंतर पर रोजाना होने वाले धरने, प्रदर्शन, जलसे, जुलूसों, मोर्चे पर बाहर से आए हुए प्रदर्शनकारियों की सुविधा को देखते हुए लंगर सेवा धरना स्थल पर ही मुहैया करवाई जाती रही है। पुराने वक्त में जब दिल्ली में सोशलिस्टों का कोई धरना-प्रदर्शन, सभा, सेमिनार होता था, तो बाहर से आने वालों के लिए खाने के साथ-साथ गुरुद्वारे में ठहरने की मुफ्त व्यवस्था भी होती रही है।
खालसा पंथ के सेवादारों का असली इम्तिहान कोविड जैसी माहमारी के वक्त हुआ। जब इंसान अपने पड़ोसी, जान-पहचान, रिश्तेदारों, यार-दोस्तों से भी मिलने में परहेज करते थे, ऑक्सीजन सिलेंडर भगवान का रूप ले चुका था, उस वक्त सबकी जानकारी में “सिलेंडर लंगर सेवा” दी गई, उसको कैसे भुलाया जा सकता है। रूस-यूक्रेन जंग में अपने मुल्क को छोड़कर जाने वाले शरणार्थियों की पोलैंड में भी लंगर सेवा से खिदमत की गई। खालसा पंथ की इस ऐतिहासिक रिवायत ने सांप्रदायिकता को भी कुछ हद तक खत्म करने का माहौल दिया है। आज हम देख रहे हैं कि बड़ी तादाद में मस्जिदों, मदरसों से राहत सामग्री के ट्रक-के-ट्रक पंजाब की ओर जा रहे हैं।
बाबा नानक की ही देन है कि शहर के सबसे अमीर, मालदार लोग, गुरुद्वारों में माथा टेकने आने वाले श्रद्धालुओं के जूते तथा झूठे बर्तन साफ करने को ही अपना बड़ा सौभाग्य मानते हैं। आज भी रिंग रोड पर स्थित “गुरुद्वारा बाला साहिब” में हर तरह की मुफ्त मेडिकल सहायता के साथ डायलिसिस जैसी लंगर सेवा मुहैया करवाई जा रही है।
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