— प्रोफेसर राजकुमार जैन —
1934 में स्थापित “कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी” से पैदा हुआ समाजवादी विचार दर्शन का लावा कभी ठंडा नहीं पड़ा, यह दीगर बात है कि वक्त के थपेड़ों से कभी मंद तथा कभी तेज अग्नि प्रज्वलित होती रही।
1975 में आपातकाल के बाद बनी ‘जनता पार्टी’ में पुरानी सोशलिस्ट पार्टी का विलय होने के बाद फिर से वह पार्टी स्थापित न हो सकी। हालांकि एक मौका आया था जब हिंदुस्तान में सोशलिस्ट विचारधारा को मानने वाले तकरीबन सभी नेता, कार्यकर्ता, स्थानीय पार्टियां, समूह, संगठनों, जिसमें मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी,राष्ट्रीय जनता दल लालू प्रसाद, उस समय की नीतीश की पार्टी, रामविलास पासवान इत्यादि के साथ-साथ अलग-अलग नामो, ढांचो मैं चलने वाले सोशलिस्ट समूहों ने एकमत से मुलायम सिंह के नेतृत्व में एक सोशलिस्ट पार्टी, एक झंडा, एक चुनाव चिन्ह को कबूल कर लिया था। लगता था फिर पुरानी सोशलिस्ट पार्टी कायम होने जा रही है, परंतु अफसोस वह कोशिश अमली जामा ना ले सकी।
संगठन के रूप में भले ही सोशलिस्टों की राष्ट्रीय स्तर पर एक संगठित पार्टी न बन पाई हो परंतु सोशलिस्ट विचार दर्शन, सिद्धांतों, नीतियों पर लगातार अपने-अपने स्तर पर उसका प्रचार प्रसार, साहित्य निर्माण, सभा, सम्मेलन, सेमिनार, जयंतियां, शिक्षण प्रशिक्षण जैसे कार्यक्रम छोटे बड़े स्तर पर मूल्क के हर कोने में होते रहे हैं, आज भी वह परंपरा जारी है। मजदूरों, कामगारों, के संघर्ष में जयप्रकाश नारायण के द्वारा स्थापित “हिंद मजदूर सभा” जो लाखों मजदूरों का चुना हुआ संगठन है, साथी हरभजन सिंह सिद्धू की रहनुमाई में अग्रिम मोर्चे पर हमेशा लड़ता हुआ दिखाई देता है। किसानों के आंदोलन में सोशलिस्ट प्रतिनिधि डॉ सुनीलम हमेशा समन्वय की भूमिका में नजर आते हैं। हिंदुस्तान के किसी भी कोने में हर प्रकार की जुल्म ज्यादती, बेइंसाफी के खिलाफ हो रहे प्रतिकार, धरने, प्रदर्शन, सत्याग्रह, मोर्चे में हमेशा सोशलिस्ट बेखौफ होकर शिरकत करते रहे हैं। नागरिक आजादी के सवाल पर बने संगठनों की मार्फत अपनी आवाज को बुलंद करते हुए लेख, स्मरण पत्र, सोशल मीडिया में अग्र लेख, बहस मुबाहशा, अदालतों में पीआईएल, धरने प्रदर्शन मैं सोशलिस्ट पहली कतार मैं शामिल है। हमें फख्र है कि सोशलिस्ट विचारधारा में दीक्षित सुप्रीम कोर्ट के भूतपूर्व न्यायाधीश बी सुदर्शन रेड्डी, के इतिहास को देखकर इंडिया एलाइंस, ने उन्हें उपराष्ट्रपति पद के लिए संयुक्त विपक्ष का उम्मीदवार बनाया ।
19 -20- 21 सितंबर 2025 तारीख़ को पुणे में “समाजवादी एकजुटता सम्मेलन” को बड़ी शिद्दत के साथ तीन पीढ़ियों के प्रतिनिधि, 102 वर्ष के डॉक्टर जीजी पारीख, डॉ सुनीलम, तथा सीएल गुड्डी जी-जान से उसको सफल बनाने में लगे हुए हैं। इसी तरह रमाशंकर सिंह (ग्वालियर) समाजवादी ध्वजा को लहराने के लिए दीवानेपन के साथ सालों से जुटे हुए हैं। समाजवादी समागम की ओर से महान सोशलिस्ट मधु लिमए, कर्पूरी ठाकुर के जन्म शताब्दी समारोह व्यापक स्तर पर मनाए जाने की विशेष जिम्मेदारी उनको सौंपीं गई तथा इस अवसर पर स्मारिका, पुस्तकें भी प्रकाशित की गई। उन्होंने अपने दम पर 20,- 22 समाजवादी विचार दर्शन पर आधारित किताबों का प्रकाशन, निर्माण वह कर चुके हैं। गत 10 वर्षों से डॉ राममनोहर लोहिया स्मृति व्याख्यान माला का आयोजन, इस वर्ष भी 13 अक्टूबर को ग्वालियर में जिसको नेपाल के भूतपूर्व प्रधानमंत्री बाबूराम भट्टराई संबोधित करेंगे आयोजित है। लोहिया साहित्य के सांस्कृतिक पक्ष को विशेष रूप से उजागर करने के लिए डॉ राममनोहर लोहिया: “रचनाकारों की नजर से” भाग 1 भाग 2 वे प्रकाशित करने के बाद व्याख्यान माला के अवसर पर “लोहिया की सांस्कृतिक नीति” जिसको रमाशंकर सिंह ने स्वयं संपादित किया है तथा ए रघु कुमार द्वारा अंग्रेजी में लिखित Lohia, revisited पुस्तक का हिंदी अनुवाद प्रस्तुत किए जाने की घोषणा भी उनके द्वारा हो चुकी है।
कहने का मकसद है, की समाजवाद की विचारधारा और उसके नेताओं के ज्ञान त्याग संघर्ष की जो बेश्कीमती धरोहर सोशलिस्टों को मिली है वह ज्योति कभी भी हिंदुस्तान में बुझ नहीं पाएगी। वह बात अलग है की कभी उसका वेग तेज होगा तथा कभी धीमा।
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