— रणधीर कुमार गौतम —
“Labour is the father and Nature is the mother of wealth.”
– Friedrich Engels
भारतीय समाजवादी आंदोलन की कई मज़बूत स्तंभों में से एक है हिंद मजदूर सभा। यह संगठन एक लंबी और गौरवशाली विरासत का प्रतिनिधित्व करता है, जिसने समता मूलक समाज के निर्माण के लिए लगातार संघर्ष किया है। वर्तमान में इसकी अगुवाई हिंद मजदूर सभा के अध्यक्ष हरभजन सिंह सिद्धू कर रहे हैं।
हरभजन सिंह सिद्धू का जन्म 24 मई 1952 को हुआ। स्वतंत्रता संग्राम की विरासत और पिता के संस्कार से प्रेरणा पाकर बचपन से ही उनमें देशभक्ति रोम-रोम में बसी थी। उनके पिताजी सरदार बलबीर सिंह आज़ाद हिंद फौज के सिपाही थे, जिन्होंने काला पानी की सज़ा काटी थी और स्वतंत्रता के बाद ही रिहा हुए।
सिद्धू ने मज़दूर राजनीति की शुरुआत रेलवे के नॉर्दर्न मैन यूनियन से की। महज़ 22 वर्ष की आयु में ही वे एक उभरते हुए मज़दूर नेता के रूप में पहचाने जाने लगे। राजस्थान के श्री बीकानेर में जन्मे सिद्धू का राजनीतिक सफ़र रोमांचक और प्रेरणादायक रहा है।
उन्होंने नॉर्दर्न मैन यूनियन से सक्रियता शुरू की, बाद में इसके अध्यक्ष बने और फिर ऑल इंडिया मैन फ़ेडरेशन के सह महासचिव भी बने। वे देश के सबसे कम उम्र में शाखा सचिव और फिर डिविजनल सचिव बनने का गौरव प्राप्त कर चुके हैं। सिद्धू जी 1990 में हिंद मजदूर सभा दिल्ली के जनरल सेक्रेटरी बने। उन्होंने यह पद समाजवादी नेता बृजमोहन तूफ़ान से संभाला। 1995 में वे हिंद मजदूर सभा की नेशनल वर्किंग कमेटी में शामिल हुए। 2012 में वे हिंद मजदूर सभा के जनरल सेक्रेटरी बने। यह सारी उपलब्धियाँ उनके परिश्रम, लगन और संगठनात्मक क्षमता का प्रमाण हैं।
हिंद मजदूर सभा की विरासत :
हिंद मजदूर सभा की स्थापना (24,25,26 December 1948) समाजवादी नेता लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व और मार्गदर्शन में हुई। जयप्रकाश जी का मानना था कि मज़दूर संगठन किसी राजनीतिक दल के चंगुल से मुक्त रहकर स्वतंत्र रूप से मज़दूरों की समस्याओं का समाधान करें। इसलिए उन्होंने हिंद मजदूर सभा को नॉन-पार्टी ऑर्गनाइजेशन के रूप में स्थापित किया। आज तक यह संगठन उसी मूल मूल्य को निभा रहा है।
राजनीतिक दल और पूँजीपति हमेशा इस तरह के स्वतंत्र संगठन को अपने प्रभाव में लाने की कोशिश करते रहे हैं, लेकिन हरभजन सिंह सिद्धू जैसे मज़बूत मज़दूर नेताओं ने कभी भी किसी पार्टी या पूँजीपति को हिंद मजदूर सभा को अपना उपकरण नहीं बनने दिया।
भारतीय ट्रेड यूनियन आंदोलन में HMS (Hind Mazdoor Sabha) का स्थान –
ऐतिहासिक रूप से चार प्रमुख महासंघ रहे हैं:
1. अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस (AITUC)
2. भारतीय राष्ट्रीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस (INTUC)
3. हिंद मजदूर सभा (HMS)
4. (CITU)
हिंद मजदूर सभा का संविधान 1948 में बनाया गया। इसमें स्पष्ट लिखा गया कि यह संगठन स्वतंत्र और लोकतांत्रिक होगा तथा किसी भी राजनीतिक दल, सरकार या नियोक्ता के अधीन काम नहीं करेगा।
“The formation of HMS represented the emergence of a new force in Indian trade union movement – that of unionists who believed in free, independent and democratic trade unionism. It represented independence of trade unions from the control of Government, Employers and Political Parties.”
नीतियाँ और कार्यक्रम-
कलकत्ता सम्मेलन (1948) और एचएमएस के संविधान से यह तथ्य सामने आता है कि इसका गठन समाजवादी विचारों से से प्रभावित था। उस समय यह भारत का तीसरा सबसे बड़ा महासंघ था, जिसमें लगभग 6,354 यूनियनें शामिल थीं।
इसके उद्देश्य थे:
1. श्रमिकों के आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक हितों को बढ़ावा देना।
2. सहकारी समितियों और श्रमिक शिक्षा को प्रोत्साहन देना।
आज भारत सरकार ने 12 मज़दूर संगठनों को मान्यता दी है, लेकिन इनमें सबसे अधिक स्वतंत्र और निष्पक्ष भूमिका हिंद मजदूर सभा निभा रही है। जबकि अन्य संगठन अक्सर किसी न किसी राजनीतिक दल से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए हैं—जैसे इंटक कांग्रेस से, सीटू सीपीआईएम से, एआईसीसीटीयू सीपीआई (एमएल) से, यूटीसीयू फ़ॉरवर्ड ब्लॉक से AITUC (CPI) से ,AIUTUC भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) से, TUCC ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक से ,SEWA स्वतंत्र / गांधीवादी-समाजवादी परंपरा से और भारतीय मजदूर संघ आरएसएस से संबद्ध है। इसके विपरीत, हिंद मजदूर सभा ने हमेशा अपने समाजवादी, स्वतंत्र और लोकतांत्रिक स्वरूप को बनाए रखा है।
1948 को गठित यह संगठन भारतीय समाजवादी मूल्यों और स्वतंत्र मज़दूर आंदोलन की एक सशक्त कल्पना का परिणाम था।
The Manifesto of the HMS was identical to the “labour policy” of the former Socialist Party. The declaration by the HMS that one of its objectives was “to organise for and promote the establishment of a Democratic Socialist Society” was a statment of a pre-eminently political aim, an aim which was identical to that of the Socialist Party, and it was inscribed in the HMS Constitution by the Socialist Party leaders in spite of opposition from other left-wing elements at the Calcutta Conference.” That this objective was pressed into adoption by the socialists, even though the leftist unity they were claiming to forge in the field of labour was for the very reason foundering, was for testimony to the fact that Trade Union interests were being sacrificed at the altar of Party ideology. For the socialists the Trade Union was merely a sphere of party activity, an instrument for realizing the goal of socialism. This was true at the very beginning when they banded themselves together in the Congress Socialist Party.
जयप्रकाश नारायण, जो एचएमएस की स्थापना के समय सोशलिस्ट पार्टी के महासचिव थे, ने अपनी “पार्टी को वार्षिक रिपोर्ट” में इस घटनाक्रम का उल्लेख किया है:
“Building up of class organisations of workers and peasants so as to conduct through them the struggle for the removal of class injustice and fulfilment of immediate class demands was from beginning placed in the forefront of the Party’s Programme. It was rightly believed that this would prepare the masses not only for the ultimate achievement of socialism but also for the immediate struggle against imperialism.”
V.V. Giri ऑल इंडिया रेलवेमेंस फेडरेशन के लंबे समय तक जनरल सेक्रेटरी रहे उन्होंने एक बार कहा था— “Trade Unions are voluntary organizations to organize all workers, formed to promote and protect the economic interest of the collective unit.”
हरभजन सिंह सिद्धू हिंद मजदूर सभा (HMS) के मार्फत मजदूर आंदोलन की विरासत को वी.वी. गिरी के इस कथन से पूर्णतः चरितार्थ करते हैं।
वे हमेशा कलेक्टिव स्पिरिट और लेबर एमांसिपेशन के लिए अपने संगठन में नए-नए नवाचार करते रहे हैं। हिंद मजदूर सभा (HMS) का आज लगभग हर राज्य में स्टेट काउंसिल है और इसका नेशनल सेंटर दिल्ली में स्थित है। हिंद मजदूर सभा से 2200 से भी अधिक फेडरेशन्स जुड़े हुए हैं। जब भी किसी मजदूर को कोई समस्या होती है, तो वह सबसे पहले अपने फेडरेशन में जाता है और आवश्यकता पड़ने पर स्टेट काउंसिल में समाधान खोजता है। राजस्थान, महाराष्ट्र, दिल्ली, पंजाब और झारखंड में आंगनबाड़ी संगठनों की बड़ी संख्या हिंद मजदूर सभा से जुड़ी हुई है।
राजनीतिक लाभ से परे-
सिद्धू जी ने कभी भी राजनीतिक लाभ के लिए मजदूर आंदोलन को कमजोर होने नहीं दिया। वे संगठन के भीतर और बाहर—दोनों स्तरों पर—ऐसी शक्तियों से लगातार लड़ते रहे।
संघर्ष की शुरुआत-
सिद्धू बताते हैं कि मजदूर राजनीति में उनकी शुरुआत 1971 में हुई, जब उन्हें रेलवे में नियुक्ति मिली। खालसा कॉलेज ( दिल्ली यूनिवर्सिटी) में पढ़ाई के दौरान ही उनके भीतर समाजवादी सोच और मजदूरों के लिए लड़ने का जज़्बा जन्म ले चुका था। अर्थशास्त्र की पढ़ाई ने उन्हें लेबर की अहमियत को समझने का अवसर दिया।
वी.वी. गिरी का पूरा ट्रेड यूनियन के लिए समर्पित जीवन इसी विचार की पुष्टि करता है कि “Labour is not a commodity, Labour is a partner in the process of production.”
1974 की ऐतिहासिक रेलवे हड़ताल के समय वे केवल 22 साल के थे। उन्होंने पूरे समर्पण और साहस के साथ इस आंदोलन में भाग लिया। इस हड़ताल ने न केवल भारतीय मजदूर आंदोलन का परिदृश्य बदला, बल्कि स्वतंत्र भारत के राजनीतिक इतिहास में पहली बार जनता की राजनीतिक स्वायत्तता को स्थापित किया।
इस हड़ताल के दौरान सिद्धू जेल भी गए और उनकी नौकरी छिन गई। उस समय लगभग 40,000 से अधिक कर्मचारी जेल में डाले गए थे। समाजवादी नेता जॉर्ज फर्नांडिस ने इस आंदोलन में बड़ी भूमिका निभाई। जब 1 मई को मजदूर दिवस पर इंदिरा गांधी ने जॉर्ज फर्नांडिस को गिरफ्तार किया, उसी दिन से यह हड़ताल शुरू हो गई, जो 8 मई से प्रस्तावित थी। यह हड़ताल 28 मई तक चली। अधिकांश नेताओं को MISA के तहत जेल में डाल दिया गया, जिससे बातचीत और समझौते की संभावना खत्म हो गई।
जब मधु दंडवते रेलवे मंत्री बने तो उन्होंने 40,000 कर्मचारियों को वापस ले लिया, लेकिन सिद्धू जी को यह कहते हुए रोक दिया कि उन पर आपराधिक आरोप हैं। बाद में ,1977 में अदालत की पूरी जाँच और फैसले के बाद सिद्धू जी को रेलवे में पुनः बहाल (reinstate) किया गया।
जयप्रकाश नारायण और मजदूर आंदोलन-
रेलवे आंदोलन की जड़ें और गहरी हैं। लोकनायक जयप्रकाश नारायण रेलवे के साथ-साथ डाक संघ के भी अध्यक्ष रह चुके थे और उन्होंने अंग्रेज़ों के समय में पे कमीशन के सामने पहला ज्ञापन प्रस्तुत किया। उस समय ब्रिटिश सरकार रेलवे कर्मचारियों को डेली वेजेस पर रखती थी। जयप्रकाश जी के प्रयासों से ही उन्हें स्थायी किया गया।
1949 में, जब वे ऑल इंडिया रेल संगठन के अध्यक्ष थे, उन्होंने वर्किंग कमेटी के निर्णय से हड़ताल का आह्वान किया। इस हड़ताल के परिणामस्वरूप कर्मचारियों को स्थायी नियुक्ति मिली। इसी दौरान पंडित नेहरू ने जयप्रकाश नारायण को कोलकाता से दिल्ली बुलाया और कहा—‘अभी-अभी आज़ादी मिली है और आप हड़ताल कर रहे हैं।’ इस पर जयप्रकाश जी ने स्पष्ट किया कि मज़दूरों के न्याय का सवाल स्वतंत्रता के सवाल से अलग नहीं हो सकता।
नेहरू से बातचीत के बाद हड़ताल वापस ले ली गई। लेकिन जब ज्योति बसु ने बिहार में कुछ मज़दूरों को हड़ताल जारी रखने के लिए की कोशिश की, तो जयप्रकाश जी ने उन्हें संगठन से निष्कासित कर दिया। दो साल बाद, जब ज्योति बसु ने अपनी गलती स्वीकार करते हुए माफ़ी माँगी, तो उन्हें पुनः संगठन में शामिल कर लिया गया।
हिंद मजदूर सभा (HMS) की नींव-
हिंद मजदूर सभा (HMS) के पहले महासचिव समाजवादी नेता अशोक मेहता थे और अध्यक्ष आर.एस. रुईकर। इसके अधिवेशनों में 600 से अधिक यूनियनें शामिल थीं, जिनमें लगभग 6 लाख सदस्य थे।
आजादी से पहले केवल एक ही ट्रेड यूनियन ( INTUC)थी, जिसमें नेहरू, पटेल, सुभाषचंद्र बोस, एम.एन. रॉय, सोशलिस्ट और कम्युनिस्ट—सभी शामिल थे। स्वतंत्रता के बाद मजदूर आंदोलन का यह भारतीय समाजवादी स्वरूप विभाजित हुआ और समाजवादी परंपरा ने हिंद मजदूर सभा के रूप में स्वतंत्र पहचान बनाई।
जब अंग्रेज़ों के दौर में कम्युनिस्ट ताकतें मजदूर यूनियनों पर कब्ज़ा करने की कोशिश कर रही थीं, उसी समय जयप्रकाश नारायण की अगुवाई में मजदूर संगठनों को बचाया गया। हिंद मजदूर सभा (HMS) के बैनर तले न केवल मजदूर आंदोलन की स्वतंत्र धारा को सुरक्षित रखा गया, बल्कि समाजवादी आंदोलन की मूल चेतना को भी बचा लिया गया।
सदस्यता और वेरिफिकेशन-
भारत सरकार के लेबर मंत्रालय के अनुसार, वेरिफिकेशन के बाद हिंद मजदूर सभा की लगभग 1 करोड़ सदस्यता दर्ज की गई है। यह प्रक्रिया अत्यंत ब्यूरोक्रेटिक और कठोर तरीके से होती है—जहाँ 10% नामों का स्पॉट वेरिफिकेशन और फिजिकल चेक किया जाता है। प्रत्येक सदस्य का नाम, पता, और हस्ताक्षर दर्ज करके यह रिपोर्ट मंत्रालय को सौंपी जाती है।
किसी भी राष्ट्रीय संगठन के लिए न्यूनतम शर्त यह है कि उसके पास कम से कम 8 लाख सदस्य हों और 8 से अधिक राज्यों में संगठनात्मक उपस्थिति हो। सिद्धू बताते हैं कि भारत में 60 करोड़ से अधिक श्रमिक शक्ति (labour force) है। ऐसे में मजदूरों की सुरक्षा और स्वतंत्रता की रक्षा करना हिंद मजदूर सभा का परम कर्तव्य है। उनका अनुमान है कि असंगठित क्षेत्र में ही आज लगभग 55 करोड़ से अधिक लोग काम कर रहे हैं, लेकिन उनकी स्थिति बेहद दयनीय है।
मजदूर और शोषण-
सिद्धू मानते हैं कि देश का वास्तविक निर्माता मजदूर ही है, लेकिन उनके अधिकारों की ओर ध्यान नहीं दिया जाता। पूंजी निर्माण और मुनाफ़े का लाभ मजदूरों तक नहीं पहुँचता। निजी संस्थानों में अधिकांश मजदूरों का शोषण होता है—यह शोषण, उनके अनुसार, एक प्रकार की लूट और गुलामी है।
वे कहते हैं कि सरकार और पूँजीपति अक्सर मिलकर मजदूरों के अधिकारों को दबाने की कोशिश करते हैं। इसी वजह से हिंद मजदूर सभा जैसे स्वतंत्र संगठनों की आवश्यकता है, जो मजदूरों के सपनों का संसार बनाने का रास्ता दिखाते हैं।
न्यूनतम वेतन और ठेका प्रथा –
कई संस्थान मजदूरों को न्यूनतम वेतन तक नहीं देते। उन्होंने एक संगठन का उदाहरण देते हुए कहा कि कागज़ पर न्यूनतम वेतन लिखे होने के बावजूद मजदूरों को कम पैसा दिया जाता है। उदाहरण के लिए, बड़े कॉरपोरेट घरानों का ज़िक्र करते हुए उन्होंने बताया कि एक कॉरपोरेट समूह में लगभग दो लाख से अधिक ठेका मज़दूर हैं। वहाँ श्रमिकों के बैंक खाते और एटीएम कार्ड तक प्रबंधन के पास रहते हैं। जैसे ही मजदूर की तनख्वाह आती है, मैनेजर उनके खाते से ₹32,000 में से ₹22,000 निकाल लेते हैं। मजदूर को केवल ₹9,000 मिलते हैं और ₹1,000 पीएफ में चला जाता है—वह भी 12 घंटे की कठोर ड्यूटी के बदले।
यह एक संगठित अपराध (Organised Crime) जैसा है, जिसे बड़े पैमाने पर उद्योगपतियों, सरकार और नौकरशाही की मिलीभगत से चलाया जा रहा है।
देशभर में मजदूरों की कमाई की यह चोरी अगर रिपोर्ट के रूप में सामने आए, तो यह शर्मनाक तस्वीर पेश करेगी। जब भी कोई मजदूर अपने अधिकारों के लिए आवाज़ उठाता है, उसका नाम ब्लैकलिस्ट कर दिया जाता है ताकि उसे कहीं नौकरी न मिले।
आज भी बड़ी संख्या में मजदूर बंधुआ मज़दूर (forced labour) की तरह काम कर रहे हैं। उनके मानव अधिकार और संवैधानिक अधिकार दोनों का हनन हो रहा है।
अधिकांश राज्यों में कोयले की अवैध खनन धड़ल्ले से चल रही है, जिसमें उद्योगपतियों, सरकार और नौकरशाही का गठजोड़ साफ़ दिखाई देता है।
हरभजन सिंह सिद्धू : साहसिक नेतृत्व और अंतरराष्ट्रीय पहचान
हिंद मजदूर सभा (HMS) के अध्यक्ष हरभजन सिंह सिद्धू हमेशा मजदूरों के शोषण और अमानवीय वार्ताओं के खिलाफ बिना डरे आवाज उठाते रहे हैं। चाहे सरकार हो या अंतरराष्ट्रीय मंच, उन्होंने मजदूरों की पीड़ा और अधिकारों की लड़ाई को साहसपूर्वक समाजवादी अभिव्यक्ति के साथ रखा है।
इतना ही नहीं, तत्कालीन सरकार ने उन्हें डराने के लिए एंटी-नेशनल की जांच तक बैठा दी। लेकिन सिद्धू ऐसे नेताओं में से हैं जो कभी डरते नहीं। वे कहते हैं—यह तो हमारे परिवार की परंपरा रही है। उनके पिताजी सरदार बलबीर सिंह, जो आज़ाद हिंद फौज में थे, को भी ब्रिटिश हुकूमत ने एंटी-नेशनल कहकर रंगून जेल में काला पानी की सजा दी थी। ऐसे में अगर आज की सरकार उन पर भी यही ठप्पा लगाती है, तो उन्हें कोई परवाह नहीं।
मजदूर आंदोलन में योगदान-
सिद्धू की शुरुआत रेलवे मज़दूर आंदोलन से हुई। उस दौर में ऑल इंडिया रेलवेमेंस फेडरेशन के अध्यक्ष जॉर्ज फर्नांडिस हुआ करते थे। सिद्धू नॉर्दर्न रेलवेमेंस संगठन से जुड़े और फिर मंडल सचिव से मंडल अध्यक्ष तथा अंततः जनरल सेक्रेटरी तक की ज़िम्मेदारियाँ सँभालते हुए धीरे-धीरे मज़दूर आंदोलन में अपनी अलग पहचान बनाने लगे।
आज हिंद मजदूर सभा रेलवे के भीतर सबसे प्रभावशाली संगठन है। यही नहीं, कोयला, इस्पात (SAIL), और अधिकांश PSUs में HMS का वर्चस्व रहा है। समुद्री और मैरिटाइम मजदूर संगठन भी HMS से जुड़े हैं—बड़े जहाजों के कप्तान और इंजीनियरों की यूनियनें तक इसकी सदस्य हैं।
दिल्ली में आंगनवाड़ी संगठनों, डोमेस्टिक वर्कर्स, डेली वेज वर्कर्स, कंस्ट्रक्शन मजदूर और एयरपोर्ट के कर्मचारी भी HMS से जुड़े हैं। यही नहीं, राजस्थान, महाराष्ट्र, पंजाब, दिल्ली, झारखंड और अन्य राज्यों में एग्रीकल्चर वर्कर्स, टैक्सी चालक और सफाई कर्मचारी भी बड़ी संख्या में इस संगठन से जुड़े हुए हैं।
अंतरराष्ट्रीय भूमिका और ILO में पहचान-
हरभजन सिंह सिद्धू का संबंध इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन (ILO) से भी है। ILO में त्रिपक्षीय वार्ताओं की परंपरा है—जिसमें नियोक्ता (Employer), सरकार (Government) और मजदूर (Worker) शामिल रहते हैं। लगभग 180 सदस्य देशों के साथ ILO कन्वेंशनों पर निर्णय लेता है।
सिद्धू ने कई अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत की ओर से मजदूरों की आवाज रखी है। विशेषकर Occupational Safety पर ILO कन्वेंशन में उनकी भूमिका उल्लेखनीय रही। 2022 में जब Occupational Safety को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक Fundamental Right घोषित किया गया, तो उसमें सिद्धू का बड़ा योगदान रहा। दिल्ली के इंडिया हैबिटेट सेंटर में जब यह विषय उठा, तो उद्घाटन भाषण के लिए सिद्धू को ही आमंत्रित किया गया।
वे South Asia Trade Union Council के अध्यक्ष हैं और लगातार अंतरराष्ट्रीय संगठनों के साथ मिलकर मजदूर कल्याण और अधिकारों की दिशा में काम कर रहे हैं।
विवाद समाधान की क्षमता-
सिद्धू की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि मजदूर संगठनों के बीच जब भी कोई आंतरिक विवाद होता है, तो सबसे पहले लोग उनकी ओर देखते हैं। उनके हस्तक्षेप से अनगिनत विवादों का समाधान हुआ है। मानेसर प्लांट से जुड़ी अदालत कार्रवाई में एचएमएस ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह मामला आज भी न्यायालय में विचाराधीन है।
प्रबंधन विज्ञान (Management) में जिसे Organisational Behaviour कहा जाता है, उसमें Dispute Resolution की क्षमता को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। सिद्धू में यह कला, विज्ञान और मनोविज्ञान का अनोखा सम्मिलन है, जिसकी वजह से उन्होंने असंख्य संघर्षों और विवादों को सुलझाने में सफलता पाई है।
हरभजन सिंह सिद्धू : समाजवादी समर्पण और मानवीय नेतृत्व
सिद्धू हमेशा बेहद व्यस्त रहते हैं। कुछ दिन पहले जब हमारी मुलाकात हुई, तो यह स्पष्ट हो गया कि वे कितनी बड़ी संख्या में लोगों से जुड़ते हैं और एक साथ कई समस्याओं का समाधान खोजने में लगे रहते हैं। बावजूद इसके, उन्होंने समाजवादी समागम की कई बैठकों में भाग लिया है। इसका कारण केवल प्रोफेसर राजकुमार जैन और प्रोफेसर आनंद कुमार जैसे विचारकों का आकर्षण ही नहीं, बल्कि समाजवादी विचारधारा के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता भी है। यही वजह है कि दिल्ली में होने वाले समाजवादी समागम की ज़्यादातर बैठकों के लिए स्थान अक्सर हिंद मजदूर सभा का दफ्तर ही होता है।
न्याय की दिशा में संघर्ष-
सिद्धू मानते हैं कि हर मांग के पीछे कहीं न कहीं न्याय की पुकार होती है। वे हमेशा मजदूरों के रोटी, कपड़ा और मकान के साथ-साथ स्वास्थ्य और शिक्षा के अधिकार की भी वकालत करते हैं।
उनका कहना है कि राजनीतिक दलों ने उन्हें कभी आकर्षित नहीं किया। मजदूर आंदोलन में उनका योगदान सेवा, समर्पण, त्याग और साधना की भावना से प्रेरित है। यही उनकी चेतना की आधारभूमि है, और इसकी पृष्ठभूमि समाजवादी आंदोलन की प्रेरणा से जुड़ी हुई है। आज भी उनके दफ्तर में डॉ. राम मनोहर लोहिया और लोकनायक जयप्रकाश नारायण की तस्वीरें सजी हुई हैं।
संगठन को परिवार मानने का भाव –
सिद्धू हिंद मजदूर सभा को केवल एक संगठन नहीं, बल्कि अपना परिवार मानते हैं। वे कभी भी स्वयं को “अध्यक्ष” के रूप में प्रस्तुत नहीं करते, बल्कि बराबरी के भाव से लोगों से मिलते हैं। इसी सहजता और अपनापन की वजह से कार्यकर्ता और मजदूर उनसे बेझिझक मिल पाते हैं।
मानवीय पहल और परंपराएँ-
सिद्धू की दिलेरी और संवेदनशीलता के कई उदाहरण हैं। उन्होंने परंपरा शुरू की कि यदि किसी कार्यकर्ता का निधन हो जाए, तो संगठन चंदा इकट्ठा कर उसके परिवार की मदद करे। उनकी इस पहल से अनगिनत विधवाओं और परिवारों को कठिन समय में सहारा मिला। कई बार उन्होंने विधवाओं को नौकरी दिलाने की कोशिश की और इसमें सफल भी हुए। उन्होंने यह भी परंपरा डाली कि जब कोई सदस्य रिटायर होता है, तो सैकड़ों कार्यकर्ता उसे सम्मानपूर्वक घर तक छोड़ने जाते हैं। इस सामुदायिक भावना ने संगठन को परिवार जैसा रूप दिया।
वे कहते हैं कि जब किसी घर में मौत होती है तो राशन, दूध और अख़बार तक बंद हो जाते हैं, और बच्चों की स्कूलिंग रुक जाती है। ऐसी परिस्थिति से निपटने के लिए उन्होंने मजदूरों से अपील की कि हर कार्यकर्ता अपनी बचत का एक हिस्सा शोकग्रस्त परिवार को सहयोग के रूप में दे। इस अपील का गहरा असर हुआ और सैकड़ों परिवार संकट से उबर पाए।
संगठन की ताक़त –
1948 में 6 लाख सदस्यों से शुरू हुआ हिंद मजदूर सभा आज 1 करोड़ से अधिक सदस्यता के साथ देश के सबसे बड़े मजदूर संगठनों में से एक बन चुका है।
हरभजन सिंह सिद्धू : मजदूर आंदोलन की समाजवादी धारा के संरक्षक
राजस्थान के मज़दूर नेता श्री उमरावमल पुरोहित से हरभजन सिंह सिद्धू जी को हिंद मज़दूर सभा (HMS) की विरासत मिली। वे वेस्टर्न रेलवे यूनियन से जुड़े थे और स्टेशन मास्टर के रूप में कार्यरत रहते हुए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सक्रिय रहे। श्री उमरावमल पुरोहित इंटरनेशनल ट्रांसपोर्ट फेडरेशन के पहले एशियाई अध्यक्ष बने। सिद्धू को देश के बड़े मज़दूर नेताओं का स्नेह और मार्गदर्शन मिला, जिनमें डी.डी. वशिष्ठ, जे.पी. चौबे, और अंततः श्री उमरावमल पुरोहित शामिल थे.
सादगी और ईमानदारी से उभरा नेतृत्व –
सिद्धू बचपन से ही समाजवादी विचारधारा से प्रेरित आंदोलनकारी रहे। हर कार्य में समर्पण और निष्ठा का भाव उनके व्यक्तित्व का हिस्सा रहा। सादगी, ईमानदारी और गहरी समझ ने उन्हें धीरे-धीरे रेलवे यूनियन में एक सक्षम और लोकप्रिय नेता के रूप में स्थापित किया।
महिलाओं और नए युवा श्रमिक वर्ग का बढ़ता योगदान-
मजदूर आंदोलन का चरित्र भी समय के साथ बदल रहा है। आंगनबाड़ी और डोमेस्टिक लेबर के रूप में काम करने वाली महिलाओं की संख्या लगातार बढ़ रही है। दिल्ली में बड़ी संख्या में डोमेस्टिक वर्कर्स के फेडरेशन हिंद मजदूर सभा से जुड़े हैं। यहां तक कि दिल्ली एयरपोर्ट पर केवल एक ही मजदूर संगठन सक्रिय है और वह है—हिंद मजदूर सभा। दिल्ली के प्रवासी मजदूर संगठनों से मिलने पर ऐसा प्रतीत होता है कि मजदूरों के लिए HMS किसी संरक्षक और सहारा देने वाले परिवार जैसा है। सिद्धू का व्यक्तित्व बेहद आकर्षक रहा। नियमित व्यायाम और कसरत के कारण वे हमेशा ऊर्जावान और प्रभावशाली दिखते हैं।
लोकतंत्र और मजदूर शक्ति-
सिद्धू मानते हैं कि जिस तरह लोकतंत्र को जीवंत बनाने के लिए संविधान की आवश्यकता होती है, उसी तरह शोषण-मुक्त लोकतंत्र की कल्पना तभी संभव है जब मजदूर संगठन मजबूत और स्वायत्त हों।
हिंद मजदूर सभा की गैरदलीयता ने इसे सामाजिक प्रतिष्ठा और जनता का विश्वास दिलाया है। जहाँ अधिकांश मजदूर संगठन राजनीतिक दलों के पिछलग्गू बनकर रह जाते हैं, वहीं HMS ने अपनी स्वायत्त पहचान बनाए रखी है।
स्वायत्तता और लोकशक्ति –
HMS सरकार या किसी भी राजनीतिक दल के दबाव में काम नहीं करती। संगठन पूरी स्वायत्तता से मजदूरों के निर्णयों पर चलता है। जैसा कि लोकनायक जयप्रकाश नारायण कहा करते थे—इसी तरह की सृजनात्मक शक्तियों से लोकशक्ति का निर्माण होता है, और उसी से लोकतंत्र का सशक्तिकरण होता है।
HMS हर आंदोलन में अग्रणी रही है—चाहे किसान आंदोलन हो, मजदूर आंदोलन हो या संगठित-असंगठित क्षेत्र के संघर्ष। 2022–23 के किसान आंदोलन में भी HMS ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
शिक्षा, कर्ज और जागरूकता –
HMS लगातार जागरूकता और क्षमता-विकास कार्यक्रम चलाती है। संगठन एजुकेशन लिटरेसी के साथ-साथ इकोनॉमिक लिटरेसी पर भी काम करता है। मजदूरों को बैंकों और कर्ज के जाल से बचाने के लिए कई सहकारी समितियाँ (cooperatives) चलाई जाती हैं। सिद्धू मानते हैं कि कर्ज का बोझ मजदूर की मनोवैज्ञानिक ताकत को तोड़ देता है और वह अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने से डरने लगता है। इसलिए मजदूर संगठनों का साहस बनाए रखना बेहद ज़रूरी है।
सिद्धू साहब कहते हैं—
“हर वेतनभोगी, हर उत्पादक, हर कारीगर—मजदूर है। मजदूर ही राष्ट्र का निर्माता है।” सदस्यता और गतिविधियाँ 1948 में 6 लाख सदस्यों से शुरू हुआ HMS आज 1 करोड़ से अधिक सदस्यों वाला संगठन है।
एनसीआर समेत देश के औद्योगिक क्षेत्रों में इसकी सक्रिय उपस्थिति है। सालभर सदस्यता अभियान चलता रहता है। पुराने सदस्य नए सदस्यों को जोड़ते हैं और विशेष परिस्थितियों में membership drives भी आयोजित होते हैं।
संगठन की गतिविधियाँ तीन स्तरों पर चलती हैं—
Intramural Activities (संगठन के भीतर की गतिविधियाँ),
Extramural Activities (संगठन से बाहर सामाजिक योगदान),
Political Activities (मजदूर अधिकारों की राजनीतिक वकालत)।
पूंजीवाद और बाजारवाद के दौर में सिद्धू मानते हैं कि मजदूर संगठनों का सशक्तिकरण ही लोकतंत्र और न्याय की गारंटी है। वरना मुनाफाखोरी और शोषणकारी व्यवस्था मजदूरों की मेहनत को गुलामी में बदल देगी।
जारी है —-
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