
आम लोगों में महात्मा गांधी को उनके रहन-सहन, खान-पान और भाषा-भूषा के चलते गैर-आधुनिक, पिछडा और पारंपरिक मानने का चलन है, लेकिन क्या वे सचमुच वैसे थे? या आधुनिकता के उनके मापदंड आम लोगों से भिन्न थे, जिनका वे कडाई से पालन करते थे? प्रस्तुत है, 156वीं ‘गांधी जयन्ती’ पर अरुण कुमार डनायक का यह विशेष लेख।–संपादक गांधीजी के आलोचकों ने प्रगतिशीलता को लेकर उनके मूल्यांकन में कठोर शब्दों का प्रयोग किया है। उन्हें पूंजीपतियों का मित्र बताते हुए प्रतिक्रियावादी तक कहा गया। वामपंथी विचारकों ने, जिनका झुकाव नेहरूजी की ओर अधिक था, गांधीजी को जवाहरलाल नेहरू की तुलना में पुनरुत्थानवादी माना। निस्संदेह नेहरूजी की तरह गांधीजी पर भी पश्चिमी विचारों का प्रभाव था, किंतु वे मुख्यतः भारतीयता के परिवेश से ही बंधे रहे।
भारत में आधुनिकता का प्रश्न केवल तकनीकी और औद्योगिक प्रगति तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह सामाजिक, नैतिक और सांस्कृतिक विमर्श का विषय भी बना। पाश्चात्य सभ्यता ने विज्ञान, तर्क और उद्योगों के माध्यम से मनुष्य को भौतिक दृष्टि से सम्पन्न अवश्य बनाया, किंतु महात्मा गांधी ने इसके परिणामस्वरूप बढ़ते शोषण, असमानता और नैतिक पतन की तीव्र आलोचना की। यह प्रश्न आज भी उठता है कि क्या गांधीजी आधुनिक थे या नहीं?
गांधीजी ने आधुनिकता को नकारा नहीं, बल्कि उसकी पुनर्परिभाषा प्रस्तुत की। उन्होंने पश्चिमी देशों के पूंजीपतियों और मध्यमवर्गीय समाज की अंधाधुंध नकल करने की बजाय उनकी तर्कशीलता और विवेक की पद्धति को अपनाया। उनके जीवन में धर्म का विशिष्ट स्थान था, किंतु वे धार्मिक रूढ़ियों और कर्मकांड से बंधे नहीं थे। ईश्वर में विश्वास रखने वाले गांधीजी ने सत्य को ही ईश्वर बताया और उसे ही अपने जीवन का मार्गदर्शक सिद्धांत बनाया। यह दृष्टि उन्हें आधुनिक बनाती है। वास्तव में, आधुनिकता गांधीजी के लिए बाहरी आडंबर से कहीं अधिक एक आंतरिक साधना और विवेक का प्रश्न था।
गांधीजी ने विज्ञान की उपलब्धियों को कभी नकारा नहीं। न्यूटन और आइंस्टीन जैसे महान वैज्ञानिक भी अपने जीवन में आस्तिक रहे और उसी परंपरा में गांधीजी ने ईश्वर और विज्ञान दोनों को स्वीकारा। उनका मानना था कि विज्ञान ने मनुष्य के जीवन को सहज और सरल बनाने में योगदान दिया है। विज्ञान हमें निरंतर खोज करने, ज्ञान को और गहरा करने और विनम्र बने रहने की प्रेरणा देता है। इस दृष्टि से गांधीजी भी वैज्ञानिक ही थे, किंतु उन्होंने सावधान किया कि यदि विज्ञान केवल भौतिक सुख-सुविधा और उत्पादन की अंधी दौड़ का साधन बन जाए तो वह विनाशकारी है। उनके लिए सच्चा विज्ञान वही था जो मानवता और नैतिकता के साथ संतुलित हो।
गांधीजी ने कई बार अपने प्रयोगों से यह सिद्ध भी किया। जीव-विज्ञान के विद्यार्थी विज्ञान-शिक्षण में मेंढ़क का विच्छेदन करें, इसकी अनुमति देने में अहिंसा के पुजारी गांधी तनिक भी नहीं हिचकिचाए। बीमारी के समय रामनाम का जाप वे औषधि मानते थे, किंतु जब कुष्ठ रोग के बारे में समाज में व्याप्त अंधविश्वासों की बात आई, तो उन्होंने उन्हें अस्वीकार किया और स्वयं माइक्रोस्कोप से कुष्ठ रोग के जीवाणुओं का परीक्षण किया। हाँ, बिहार भूकंप का कारण उन्होंने छुआछूत की भावना को माना, किंतु अस्पृश्यता को लेकर समाज में फैले इस अंधविश्वास को कि यह पूर्व जन्मों के कर्मों का फल है, गांधीजी ने पूरी तरह नकार दिया।
गांधीजी ने सामाजिक क्षेत्र में व्याप्त अनेक कुरीतियों जैसे अस्पृश्यता, जाति-प्रथा, स्त्रियों की असमानता, बाल-विवाह, देवदासी जैसी कुप्रथाओं और अन्य सामाजिक बुराइयों का विरोध किया। इन्हें दूर करने के लिए उन्होंने समय-समय पर अनेक व्यवहारिक सुझाव भी दिए। यही कारण है कि सामाजिक क्षेत्र की प्रवृत्तियों के हर पहलू पर उनके विचार प्रगतिशील सिद्ध होते हैं।
गांधीजी के लिए आधुनिकता का अर्थ केवल पश्चिमीकरण नहीं था। उनके अनुसार आधुनिक होने का मतलब मनुष्य के भीतर विवेक, आत्मसंयम और सेवा-भाव का विकास था। यदि आधुनिकता का आशय उपभोक्तावाद और असंयम से है तो वे उसके विरोधी थे, किंतु यदि आधुनिकता का अर्थ सत्य, नैतिकता और सह-अस्तित्व है तो गांधीजी निस्संदेह आधुनिक थे। गांधीजी की आधुनिकता में पाश्चात्य वेशभूषा, आहार, धूम्रपान, मद्यपान और मौज-मस्ती भरी जीवन-शैली के अंधानुकरण का कोई स्थान नहीं था। वे मानते थे कि सभ्यता की पहचान परिधान या उपभोग की भव्यता से नहीं, बल्कि आत्मसंयम और सेवा से होती है।
उनका पूरा जीवन पाँच यम – नियमों – सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य पर आधारित था। सत्य गांधीजी के लिए आधुनिकता की पहली शर्त थी। उनके अनुसार बिना सत्य के विज्ञान और राजनीति दोनों खोखले हैं। अहिंसा उनके लिए केवल राजनीतिक हथियार नहीं, बल्कि सभ्यता की कसौटी थी। उनका विश्वास था कि आधुनिक समाज तभी सच्चा होगा जब वह हिंसा और शोषण को त्यागकर न्यायपूर्ण ढंग से खड़ा हो।
अस्तेय की परिभाषा को उन्होंने व्यापक बनाते हुए उपभोक्तावाद को चोरी का परिष्कृत रूप बताया। जो अपनी आवश्यकता से अधिक लेता है, वह दूसरों का अधिकार छीनता है। अपरिग्रह के माध्यम से उन्होंने पश्चिमी उपभोग संस्कृति की आलोचना की और कहा कि आधुनिकता का लक्ष्य संग्रह नहीं, बल्कि संतुलित जीवन होना चाहिए। ब्रह्मचर्य का अर्थ उन्होंने केवल यौन-संयम नहीं माना, बल्कि उसे इन्द्रिय-निग्रह और आत्मानुशासन का प्रतीक बताया। गांधीजी के अनुसार आधुनिक मनुष्य तभी मुक्त होगा जब वह अपनी इच्छाओं का नियंत्रक बने।
इन पाँच यमों का पालन गांधीजी के लिए केवल व्यक्तिगत साधना नहीं था, बल्कि आधुनिक समाज की आधारशिला भी था। यही कारण है कि पुरानी मान्यताओं पर विश्वास रखते हुए भी वे किसी परंपरा या रीति-रिवाज को तभी स्वीकार करते थे जब वह बुद्धि और विवेक के अनुरूप हो। उनके लिए आधुनिकता का अर्थ था, परंपरा और विवेक का संतुलित संगम।
आज जब आधुनिकता को प्रायः उपभोक्तावाद, प्रतिस्पर्धा और तकनीकी वर्चस्व के रूप में परिभाषित किया जाता है, तबगांधीजी की यह चेतावनी अत्यंत प्रासंगिक हो जाती है कि विज्ञान और तकनीक तभी कल्याणकारी हो सकते हैं जब वे नैतिक मूल्यों और सामाजिक न्याय से जुड़े हों। गांधीजी की आधुनिकता आत्मिक और सामाजिक कल्याण पर आधारित थी, न कि असीमित उत्पादन और उपभोग पर।
वे विज्ञान को शोध और शक्ति का माध्यम मानते थे और उसका उपयोग गरीबी दूर करने के लिए करना चाहते थे। यही कारण है कि चरखे में सुधार को प्रोत्साहित करने के लिए उन्होंने एक लाख रुपये के पुरस्कार की घोषणा की थी। उनका विरोध मशीनों से नहीं था, बल्कि उस प्रवृत्ति से था जिसमें मशीनें मनुष्य को बेरोजगार बनाकर उसे उनके पीछे अंधाधुंध भागने को विवश करती हैं।
गांधीजी आधुनिकता के आलोचक अवश्य थे, पर उसके शत्रु नहीं थे। उन्होंने आधुनिकता को एक नई व्याख्या दी, जिसमें विज्ञान और तकनीक को नैतिकता, आत्मसंयम, आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक न्याय से जोड़ा गया। पाँच यम – सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य – उनकी आधुनिकता की नींव थे। इस दृष्टि से गांधीजी युगांतरकारी आधुनिक चिंतक थे, जिन्होंने पश्चिमी सभ्यता के अंधानुकरण की बजाय भारत के लिए एक वैकल्पिक आधुनिकता का मार्ग प्रस्तुत किया। (सप्रेस)
श्री अरूण कुमार डनायक लेखक व सामाजिक कार्यकर्त्ता हैं।
Discover more from समता मार्ग
Subscribe to get the latest posts sent to your email.
















