— डॉ. शुभनीत कौशिक —
प्रख्यात समाजवादी विचारक सच्चिदानंद सिन्हा का आज 96 वर्ष की आयु में निधन हो गया। वर्ष 1928 में मुजफ्फरपुर में पैदा हुए सच्चिदानंद सिन्हा डॉ. राममनोहर लोहिया द्वारा संपादित की जाने वाली पत्रिका ‘मैनकाइंड’ में उनके सहयोगी रहे थे। आगे चलकर वे समाजवादी जन परिषद के संस्थापक किशन पटनायक द्वारा सम्पादित पत्रिका ‘सामयिक वार्ता’ से भी जुड़े रहे।
सच्चिदानंद सिन्हा समाजवादी चिंतकों की उस धारा के प्रतिनिधि थे, जो हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में समान अधिकार से अपने विचार रखती थी। राजनीतिक प्रतिबद्धता और सामाजिक सरोकारों से युक्त अपने नौ दशक वाले लम्बे सक्रिय जीवन में सच्चिदानंद सिन्हा निरंतर बदलते हुए हिंदुस्तान की तासीर को समझने और विकल्पों की तलाश में लगे रहे। किशन पटनायक की तरह ही सच्चिदाजी भी उन बुद्धिजीवियों में से थे, जिनका मानना था कि दुनिया विकल्पहीन नहीं हो गई है।
अंग्रेजों के जाने के बाद आजाद हिंदुस्तान में किस प्रकार राज्य द्वारा देश के भीतर ही आंतरिक उपनिवेश बनाकर पूँजी और बाज़ार के इशारे पर प्राकृतिक संसाधनों का दोहन और मानव समुदायों का शोषण और विस्थापन किया गया, इस समूची परिघटना को भी उन्होंने सत्तर के दशक में छपी अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘द इंटरनल कॉलोनी : ए स्टडी इन रीजनल एक्सप्लॉयटेशन’ में विश्लेषित किया था।
पूंजीवाद, बाजारवाद, वैश्वीकरण, उदारीकरण, उपभोक्तावाद जैसी विश्वव्यापी परिघटनाओं के दूरगामी प्रभाव को विश्लेषित करने, संस्कृति और सभ्यता के विमर्श और समाजवाद की सैद्धांतिकी को सरल भाषा में लोगों तक पहुंचाने में वे अनवरत लगे रहे।
भारतीय समाज को ग्रसने वाली साम्प्रदायिकता और जातिवाद जैसी व्याधियों के बारे में सच्चिदा जी ने विचारोत्तेजक ढंग से लिखा। पुस्तकों के साथ-साथ पत्र-पत्रिकाओं में समय-समय पर लिखे गए निबंध, छोटी पुस्तिकाएँ, पैंफलेट आदि के साथ बिहार, मध्य प्रदेश, उड़ीसा के देहातों में गोष्ठियों और संवादों के ज़रिए भी वे लोगों तक पहुँचने, उनसे जुड़ने की कोशिशें निरंतर करते रहे।
जीवन के अंतिम दिनों में भी मुजफ्फरपुर के मनिका गांव में रहते हुए वैचारिक रूप से सक्रिय बने रहे। उनका वैचारिक कर्म और हिंदुस्तान की समाजवादी चिंतन-धारा में उनका अप्रतिम योगदान उन्हें हमेशा प्रासंगिक बनाए रखेगा। सच्चिदाजी की स्मृति को सादर नमन!
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