बांग्लादेश की समकालीन राजनीति का विश्लेषण!

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Tariq Anwar

Parichay Das

— परिचय दास —

।। एक ।।

खालिदा ज़िया के बेटे तारिक़ रहमान की 17 साल बाद बांग्लादेश~वापसी केवल एक व्यक्ति की भौगोलिक वापसी नहीं है बल्कि यह उस अधूरे, अस्थिर और लगातार टकराव में फँसे राजनीतिक इतिहास की वापसी है, जिसने बांग्लादेश को आज तक पूरी तरह स्थिर नहीं होने दिया। जैसे ही वे देश की सीमा में प्रवेश करते हैं और उन्हें मृत्यु-धमकी मिलती है, यह स्पष्ट हो जाता है कि यह वापसी सामान्य राजनीतिक गतिविधि नहीं बल्कि सत्ता, स्मृति, बदले, भय और असुरक्षा के जटिल ताने-बाने से जुड़ी हुई है। धमकी अपने-आप में जितनी गंभीर है, उससे अधिक गंभीर वह संकेत है जो वह बांग्लादेश की लोकतांत्रिक स्थिति, राजनीतिक संस्कृति और सत्ता संघर्ष के स्वरूप के बारे में देती है।

तारिक़ रहमान बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) की राजनीति में केवल एक उत्तराधिकारी नहीं हैं बल्कि वे उस पूरे राजनीतिक विमर्श के प्रतीक हैं, जो खालिदा जिया बनाम शेख हसीना के द्वंद्व से निर्मित हुआ है। उनकी वापसी का अर्थ यह है कि बीएनपी अब केवल निर्वासन-आधारित, बयान-प्रधान या प्रतीकात्मक राजनीति से बाहर निकलकर ज़मीन पर सक्रिय राजनीति की ओर बढ़ना चाहती है। यह कदम उस समय उठाया जा रहा है जब बांग्लादेश की राजनीति पहले से ही अत्यधिक ध्रुवीकृत, अविश्वास-ग्रस्त और संस्थागत रूप से कमजोर स्थिति में है।

मृत्यु-धमकी का सामने आना यह दर्शाता है कि राजनीतिक विरोध अब केवल वैचारिक या चुनावी प्रतिस्पर्धा तक सीमित नहीं रहा बल्कि वह हिंसा और भय के स्तर तक उतर चुका है। यह स्थिति केवल तारिक़ रहमान के लिए नहीं बल्कि समूची राजनीतिक व्यवस्था के लिए एक चेतावनी है। यदि किसी प्रमुख राजनीतिक नेता की वापसी पर पहली प्रतिक्रिया धमकी है तो इसका अर्थ है कि सत्ता और विपक्ष दोनों ही पक्ष लोकतांत्रिक मर्यादाओं को लेकर आश्वस्त नहीं हैं। यह भय उस असंतुलन को उजागर करता है, जिसमें कानून, सुरक्षा एजेंसियाँ और राजनीतिक नैतिकता एक-दूसरे से कटती हुई दिखाई देती हैं।

तारिक़ रहमान की वापसी के निहितार्थों को समझने के लिए बांग्लादेश की सत्ता संरचना को देखना आवश्यक है। लंबे समय से सत्ता में रही अवामी लीग ने प्रशासनिक, न्यायिक और सुरक्षा संस्थानों पर गहरी पकड़ बनाई है—यह आरोप विपक्ष लगातार लगाता रहा है। ऐसे में तारिक़ रहमान की सक्रियता सत्ता पक्ष के लिए एक वास्तविक चुनौती बन सकती है, न कि केवल प्रतीकात्मक असंतोष। धमकी इस बात का भी संकेत हो सकती है कि कुछ शक्तियाँ नहीं चाहतीं कि बीएनपी नेतृत्व जमीनी राजनीति में लौटे और सत्ता संतुलन को चुनौती दे।

यह वापसी अंतरराष्ट्रीय राजनीति के संदर्भ में भी महत्वपूर्ण है। बांग्लादेश की राजनीति पर भारत, चीन और पश्चिमी देशों की दृष्टि हमेशा से रही है। तारिक़ रहमान की छवि पश्चिम में अपेक्षाकृत अलग तरह से देखी जाती है और उनकी सक्रियता से अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक समीकरणों में सूक्ष्म परिवर्तन आ सकता है। धमकी इस संदर्भ में भी एक संदेश हो सकती है—कि आंतरिक राजनीति में किसी भी तरह का बाहरी प्रभाव या वैकल्पिक समर्थन अस्वीकार्य है। यह राष्ट्रवादी भाष्य और सुरक्षा-केंद्रित राजनीति को और तेज़ कर सकता है।

बीएनपी के भीतर तारिक़ रहमान की वापसी नई ऊर्जा के साथ-साथ नई चुनौतियाँ भी लाती है। पार्टी लंबे समय से संगठनात्मक शिथिलता, नेतृत्व के संकट और रणनीतिक भ्रम से जूझ रही है। तारिक़ रहमान का प्रत्यक्ष नेतृत्व कार्यकर्ताओं में उत्साह पैदा कर सकता है लेकिन यह सत्ता के साथ टकराव को भी तेज़ करेगा। धमकी इस टकराव की तीव्रता का शुरुआती संकेत है। यह स्पष्ट कर देती है कि आने वाला समय केवल भाषणों और रैलियों का नहीं बल्कि अस्तित्व और सुरक्षा का प्रश्न बन सकता है।

लोकतंत्र के स्तर पर यह स्थिति गहरे प्रश्न खड़े करती है। क्या बांग्लादेश ऐसी स्थिति में पहुँच चुका है जहाँ राजनीतिक प्रतिस्पर्धा जीवन-मृत्यु का प्रश्न बन जाए? यदि हाँ तो इसका अर्थ है कि लोकतांत्रिक संस्थाएँ केवल औपचारिक रह गई हैं और वास्तविक सत्ता भय, दमन और असुरक्षा के माध्यम से संचालित हो रही है। तारिक़ रहमान को मिली धमकी एक व्यक्ति पर हमला नहीं बल्कि उस संभावना पर हमला है कि सत्ता परिवर्तन शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक तरीके से हो सकता है।

सामाजिक स्तर पर भी इसके प्रभाव पड़ेंगे। बांग्लादेश की जनता पहले ही महँगाई, बेरोज़गारी और संस्थागत अविश्वास से त्रस्त है। ऐसे में यदि राजनीति और अधिक हिंसक और भयावह होती है तो आम नागरिक राजनीति से और दूर होगा। यह दूरी सत्ता के केंद्रीकरण को और मज़बूत करेगी। तारिक़ रहमान की वापसी यदि जन-समर्थन को संगठित करने में सफल होती है तो यह सत्ता के लिए असुविधाजनक होगी; यदि असफल होती है तो यह विपक्ष की अंतिम हताशा भी बन सकती है।

मृत्यु-धमकी का मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी कम नहीं है। यह केवल सुरक्षा का प्रश्न नहीं बल्कि संदेश का प्रश्न है—कि राजनीति में लौटने की कीमत बहुत भारी हो सकती है। यह संदेश अन्य नेताओं, कार्यकर्ताओं और असहमति रखने वाले नागरिकों तक भी पहुँचता है। इस तरह धमकी एक व्यक्ति को चुप कराने से अधिक व्यापक सामाजिक नियंत्रण का औज़ार बन जाती है।

तारिक़ रहमान की वापसी बांग्लादेश के भविष्य की दिशा को भी प्रभावित कर सकती है। यदि यह वापसी संवाद, संगठन और जन-आंदोलन के माध्यम से आगे बढ़ती है तो यह लोकतांत्रिक पुनर्संतुलन की संभावना पैदा कर सकती है। लेकिन यदि यह हिंसा, धमकियों और दमन के दुष्चक्र में फँसती है तो देश और अधिक अस्थिरता की ओर बढ़ सकता है। धमकी इस दूसरे मार्ग की आशंका को प्रबल करती है।

तारिक़ रहमान की बांग्लादेश वापसी के निहितार्थ व्यक्ति-केंद्रित नहीं, व्यवस्था-केंद्रित हैं। यह वापसी बताती है कि बांग्लादेश की राजनीति अभी भी अतीत के घावों, पारिवारिक प्रतिद्वंद्विता और सत्ता-केंद्रित भय से मुक्त नहीं हो पाई है। मृत्यु-धमकी उस असफलता का सबसे तीखा प्रतीक है, जहाँ लोकतंत्र असहमति को सहने के बजाय उसे मिटाने की भाषा बोलने लगता है। यह क्षण बांग्लादेश के लिए एक परीक्षा है—कि वह राजनीति को भय से चलने देगा या लोकतांत्रिक साहस से।

।। दो ।।

तारिक़ रहमान के आगमन का अगले फरवरी में होने वाले चुनाव पर प्रभाव केवल एक नेता की वापसी तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि यह पूरे चुनावी वातावरण, विपक्ष की रणनीति, मतदाता मनोविज्ञान और सत्ता–विपक्ष के शक्ति-संतुलन को प्रभावित करेगा। लंबे समय तक निर्वासन में रहने के बाद उनकी वापसी बीएनपी के लिए राजनीतिक रूप से संजीवनी की तरह है। पार्टी, जो अब तक नेतृत्व की अनुपस्थिति, संगठनात्मक शिथिलता और रणनीतिक अनिश्चितता से जूझ रही थी, अचानक एक स्पष्ट चेहरे और दिशा के साथ सामने आती दिखाई देती है। इससे चुनावी तैयारी में तेजी आएगी और कार्यकर्ताओं में यह विश्वास मजबूत होगा कि सत्ता के विरुद्ध संघर्ष केवल प्रतीकात्मक नहीं बल्कि वास्तविक है।

उनकी उपस्थिति बीएनपी को चुनाव में केंद्रीय भूमिका में ला सकती है। अब तक जिस चुनाव को एकतरफा या औपचारिक प्रक्रिया के रूप में देखा जा रहा था, उसमें वास्तविक प्रतिस्पर्धा की संभावना बनती है। बहुत से मतदाता, जो निराशा या भय के कारण मतदान से दूर रहते थे, यह महसूस कर सकते हैं कि उनका वोट निर्णायक हो सकता है। इससे मतदान प्रतिशत बढ़ने की संभावना भी बनती है। तारिक़ रहमान का नाम केवल बीएनपी समर्थकों के लिए नहीं बल्कि सरकार-विरोधी व्यापक असंतोष का प्रतीक बन सकता है।

चुनावी समीकरणों में उनका आगमन सत्ता पक्ष के लिए चुनौती है। अवामी लीग या सत्ता संरचना अब ऐसे विपक्ष से नहीं जूझ रही जो केवल बयान देता हो बल्कि ऐसे नेतृत्व से सामना कर रही है जो जमीनी राजनीति को पुनः सक्रिय कर सकता है। इसका परिणाम यह हो सकता है कि चुनावी वातावरण और अधिक तनावपूर्ण, नियंत्रित और सुरक्षा-केंद्रित हो जाए। प्रशासनिक सख्ती, राजनीतिक दबाव और प्रचार पर नियंत्रण की कोशिशें बढ़ सकती हैं जिससे चुनाव की निष्पक्षता पर सवाल और गहरे होंगे।

विपक्षी गठबंधनों पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा। छोटे दल, जो अब तक अपने-अपने प्रभाव क्षेत्र में सक्रिय थे, बीएनपी के साथ जुड़ने या उससे दूरी बनाने को लेकर पुनर्विचार करेंगे। तारिक़ रहमान का नेतृत्व विपक्ष को एक धुरी दे सकता है, जिसके इर्द-गिर्द चुनावी गठबंधन बनें। इससे विपक्ष का बिखराव कम हो सकता है और सत्ता के विरुद्ध एक संगठित मोर्चा खड़ा हो सकता है। हालांकि, यह भी संभव है कि कुछ कट्टर या वैकल्पिक समूह स्वयं को हाशिए पर महसूस करें और अलग राह चुनें, जिससे विपक्ष के भीतर आंतरिक तनाव भी बढ़े।

मनोवैज्ञानिक स्तर पर उनका आगमन सत्ता और विपक्ष—दोनों के लिए अलग-अलग संदेश देता है। सत्ता पक्ष के लिए यह चेतावनी है कि चुनाव केवल प्रबंधन से नहीं जीता जा सकता; विपक्ष के लिए यह आश्वासन है कि संघर्ष का केंद्र अब देश के भीतर है। जनता के लिए यह क्षण आशा और भय—दोनों को साथ लेकर आता है। आशा इस अर्थ में कि चुनाव वास्तविक हो सकते हैं और भय इस अर्थ में कि प्रतिस्पर्धा हिंसा, धमकी और अस्थिरता में न बदल जाए।

फरवरी के चुनाव पर तारिक़ रहमान के आगमन का असर इस बात पर निर्भर करेगा कि चुनावी प्रक्रिया कितनी स्वतंत्र रहती है और राजनीतिक प्रतिस्पर्धा को कितनी जगह मिलती है। यदि परिस्थितियाँ अपेक्षाकृत खुली रहीं, तो उनकी वापसी चुनाव को निर्णायक और अर्थपूर्ण बना सकती है। यदि दमन, डर और असंतुलन हावी रहा, तो यही वापसी चुनाव को और विवादास्पद तथा अस्थिर भी कर सकती है। इसलिए उनका आगमन केवल चुनावी गणित नहीं बदलता बल्कि यह तय करने की क्षमता रखता है कि बांग्लादेश का आगामी चुनाव लोकतांत्रिक संभावना बनेगा या राजनीतिक टकराव का नया अध्याय।

।। तीन।।

इस पूरे परिदृश्य का उपसंहार यह संकेत देता है कि तारिक़ रहमान का आगमन बांग्लादेश की राजनीति में किसी एक चुनावी घटना से कहीं अधिक गहरे अर्थ रखता है। यह आगमन उस राजनीतिक संरचना को सीधे चुनौती देता है जो लंबे समय से सत्ता के केंद्रीकरण, विपक्ष के संकुचन और भय-आधारित स्थिरता पर टिकी रही है। फरवरी का चुनाव अब केवल सत्ता परिवर्तन का प्रश्न नहीं रह जाता, बल्कि यह इस बात की कसौटी बन जाता है कि बांग्लादेश की राजनीति संवाद, प्रतिस्पर्धा और वैध असहमति को सहन करने की क्षमता रखती है या नहीं।

तारिक़ रहमान की उपस्थिति सत्ता और विपक्ष के बीच शक्ति-संतुलन को असहज बनाती है। सत्ता पक्ष के लिए यह स्थिति जोखिमपूर्ण है क्योंकि अब असंतोष को “नेतृत्वहीन” या “असंगठित” कहकर खारिज करना कठिन होगा। वहीं विपक्ष के लिए यह अवसर भी है और बोझ भी—अवसर इसलिए कि वह जनता की नाराज़गी को राजनीतिक दिशा दे सकता है और बोझ इसलिए कि किसी भी विफलता, हिंसा या अव्यवस्था का नैतिक और राजनीतिक दायित्व उसी पर आएगा। इस द्वंद्व में चुनाव एक साधारण लोकतांत्रिक प्रक्रिया न रहकर सत्ता-संरचना की वैधता पर जनमत-संग्रह जैसा रूप ले सकता है।
राजनीतिक दृष्टि से सबसे महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि यह वापसी भय और नियंत्रण की राजनीति को उजागर करती है। यदि एक प्रमुख विपक्षी नेता का आगमन सुरक्षा-खतरे, धमकियों और अस्थिरता के साए में होता है तो यह संकेत है कि राज्य और राजनीति के बीच संतुलन टूट चुका है। ऐसी स्थिति में चुनाव परिणाम चाहे जो हों, प्रक्रिया पर संदेह बना रहेगा। यही संदेह भविष्य की राजनीति को और अधिक अविश्वास-ग्रस्त बना सकता है।

यह उपस्थिति बांग्लादेश के सामने एक मूल प्रश्न खड़ा करती है—क्या सत्ता को चुनौती देना अब भी वैध राजनीतिक कर्म है, या वह अपराध में बदल चुका है? यदि चुनाव इस प्रश्न का उत्तर लोकतांत्रिक ढंग से देने में सफल होते हैं, तो तारिक़ रहमान का आगमन इतिहास में एक निर्णायक मोड़ माना जाएगा। यदि नहीं तो यह आगमन केवल सत्ता-संघर्ष की तीव्रता बढ़ाकर राजनीति को और संकीर्ण, कठोर और भयग्रस्त बना देगा। इस अर्थ में, उनका आगमन किसी व्यक्ति का लौटना नहीं बल्कि बांग्लादेशी राजनीति के भविष्य की परीक्षा है।


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