पंजाब में किसानों की खुदकुशी की घटनाएँ क्यों बढ़ रही हैं

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— श्वेता सैनी, सिराज हुसैन, पुलकित खत्री —

किसानों की खुदकुशी की घटनाएँ फिर से चर्चा में हैं। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक अकेले अप्रैल में पंजाब के 14 किसानों ने खुदकुशी कर ली। पंजाब के सबसे बड़े किसान संगठन भारतीय किसान यूनियन (उगराहां) के अनुसार 1 अप्रैल 2022 से अब तक 55 किसानों और खेतिहर मजदूरों ने खुद अपनी जान ले ली। ऐसा लगता है कि एक तरफ जमीन का किराया, डीजल और फर्टिलाइजर आदि के रूप में खेती की बढ़ी हुई लागत तथा दूसरी ओर लगातार दो फसली सीजन में हुए घाटे से किसानों पर काफी मुसीबत आन पड़ी है। खरीफ 2021 में कपास को पिंक बुलवार्म कीटों से नुकसान हुआ और रबी 2021-22 में गेहूँ को मार्च 2022 में बढ़े हुए तापमान से।

लेकिन क्या ये सब परेशानी पड़ोसी राज्य हरियाणा के किसानों ने भी नहीं झेली होगी? या उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश के किसानों ने भी ये परेशानियां नहीं उठायी होंगी? फिर पंजाब के किसान जो अपनी बहादुरी और उद्यमिता के लिए जाने जाते हैं, उनके साथ ऐसा क्या हुआ कि वे हताशा का आखिरी कदम उठा बैठे? हम इस पर कृषिऋण की माफी के बारे में किये गये अपने अध्ययन से कुछ बातें साझा करेंगे, जिसमें पंजाब, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश के 3,000 किसानों की बाबत किये गये सर्वे के निष्कर्ष शामिल हैं।

लेकिन पहले संदर्भ।

राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन की तरफ से किये गये स्थिति आकलन सर्वे 2018-19 के मुताबिक औसतन पंजाब के किसान आय अर्जित करने में देश में दूसरे नंबर पर थे। एक औसत पंजाबी किसान परिवार को कृषि से 26,701 रुपए प्रतिमाह की आय हुई (या साल में रु. 3,20,412), जबकि राष्ट्रीय औसत रु. 10,218 (या साल में रु. 1,22,616) रहा। 2018-19 के सर्वे के नतीजे जारी किये जाने से पहले के सभी स्थिति आकलन सर्वेक्षणों के नतीजे यह दर्शाते थे कि देश भर के किसानों में पंजाब के किसानों की आय सबसे ज्यादा है। लेकिन 2018-19 के स्थिति आकलन सर्वे में तस्वीर बदल गयी, जब मेघालय के किसानों की आय पंजाब के किसानों से ज्यादा दर्ज की गयी। 2018-19 के सर्वे में औसत मेघालयी किसान की आय 29,348 रु. प्रतिमाह या 3,52,217 रु. सालाना थी।

कम से कम 2014 तक, पंजाब में किसानों की आत्महत्या का ग्राफ, अन्य राज्यों के मुकाबले, ऊँचा नहीं था। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आत्महत्या से संबंधित आँकड़ों के मुताबिक देश में 2020 में 10,677 किसानों (जो जमीन के मालिक हैं या जमीन किराये पर ले रखी है) तथा खेतिहर मजदूरों ने खुदकुशी की। इनमें से 257 (या 2.4 फीसद) फीसद पंजाब से थे। यह उस साल में पंजाब में हुई कुल आत्महत्याओं 2,616 का 10 फीसद था।

पंजाब में किसानों के खुदकुशी करने का सिलसिला 2015 से तेज हुआ है (Figure 1)। सन 2000 से 2014 के बीच हर साल जहाँ लगभग 70 आत्महत्याएँ दर्ज हुईं, वहीं यह आँकड़ा 2015 के बाद चार गुना बढ़कर 263 पर जा पहुँचा (2018 में यह सर्वाधिक था, 323)। 2014 और 2015, दो साल लगातार सूखे के साल थे, जो कि कभी कभार ही होता है। लेकिन पंजाब में जहाँ सिंचाई का अनुपात लगभग सौ फीसद है, उन वर्षों में खुदकुशी में हुई बढ़ोतरी को सूखे से जोड़ना शायद सही नहीं होगा।

एनसीआरबी के आँकड़ों के मुताबिक पंजाब में खुदकुशी करनेवाले अधिकतर किसान ऐसे थे जिनके पास जमीन थी। इसका यह अर्थ नहीं कि खेतिहर मजदूरों की आत्महत्याओं में बढ़ोतरी नहीं हो रही थी। जमीन के मालिकाने के लिहाज से देखें तो यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि खुदकुशी करनेवालों में सबसे ज्यादा छोटे और सीमांत किसान थे, इनमें छोटे किसान (1 हेक्टेयर से 2 हेक्टेयर कृषिभूमि के मालिक) के खुदकुशी करने का ग्राफ सबसे ऊँचा रहा (Figure 2)।

पंजाब के छोटे किसानों की तुलना में वहाँ के सीमांत किसानों की आय के स्रोत ज्यादा विविध हैं। स्थिति आकलन सर्वे 2018-19 के आँकड़ों के मुताबिक छोटे किसान की 64 फीसद मासिक आय कृषिकार्यों से हो रही थी, जबकि सीमांत किसान की 50 फीसद से 76 फीसद मासिक आय मजदूरी या तनख्वाह के रूप में, या अन्य प्रकार से गैर-कृषिकार्यों से आ रही थी। ऐसा लगता है कि फसलों पर अत्यधिक निर्भरता ने छोटे किसानों को ज्यादा आसान शिकार बना दिया है।

हमारा सर्वे क्या कहता है

वर्ष 2020 में जब हम कृषिऋण माफी पर शोध कर रहे थे, हमने पंजाब, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में एक सर्वे किया। कृषिऋण माफी से जुड़े विभिन्न पहलुओं को समझने के लिए उपर्युक्त तीन राज्यों में कुल मिलाकर लगभग 3000 किसानों का सर्वे किया गया। पंजाब में एक हजार किसानों से बातचीत की गयी। जिन पहलुओं का हमने अध्ययन किया उनमें से एक यह था कि ऋणग्रस्तता और किसानों की विपत्ति के बीच क्या संबंध है। पंजाब के किसानों के संबंध में कई बातें गौरतलब लगीं।

पंजाब के किसानों ने ज्यादा कर्ज लिये

जमीन के मालिकाने के हिसाब से छोटे-मझोले-बड़े सभी श्रेणियों के किसानों में, उपर्युक्त तीन राज्यों में, पंजाब के किसानों ने भारी कर्ज लिये। पंजाब में एक सीमांत किसान ने साल में औसतन करीब 3.43 लाख रु. का कर्ज लिया। महाराष्ट्र में सीमांत किसान ने इस राशि के बीस फीसद से कम (61,000 रु.) कर्ज लिया, और उत्तर प्रदेश में पच्चीस फीसद से कम (रु.84,000)।

कर्ज लेने की अधिक जरूरत को एक हद तक पंजाब में खेती की बढ़ी हुई लागत से जोड़ा जा सकता है। कृषि मंत्रालय के आर्थिकी एवं सांख्यिकी निदेशालय के आँकड़ों के मुताबिक, 2018-19 में, एक क्विन्टल मक्का उगाने की लागत (सी 2 लागत) बिहार में लगभग 1200 रु. कर्नाटक में लगभग 1485 रु. और पंजाब में लगभग 1800 रु. थी। गेहूँ के मामले में जहाँ मध्यप्रदेश में 1 क्विन्टल पैदावार की लागत 1200 रु. से कम थी, वहीं पंजाब में यह लगभग 1250 रु. थी। यही स्थिति सरसों के साथ थी। राजस्थान में एक क्विन्टल सरसों उगाने की लागत बैठ रही थी 2700 रु. मध्यप्रदेश में 2600 रु. और पंजाब में लगभग 3,550 रु.। सौ फीसदी सिंचाई की सुविधा और मुफ्त बिजली-पानी के बावजूद पंजाब में खेती अब भी काफी खर्चीली है।

पंजाब के किसानों ने ज्यादा महँगे कर्ज लिये

सर्वे में जो जवाब मिले उनके मुताबिक उपर्युक्त तीन राज्यों में संस्थागत स्रोतों से लिये गये कर्जों की ब्याज दर 5.96 फीसद से 7.72 फीसद और गैर-संस्थागत स्रोतों से लिये गये कर्जों की ब्याज दर 10 फीसद से 21 फीसद थी। (Figure 4).

अपने मालिकाने वाली जमीन का आकार कुछ भी हो, पंजाब के किसानों को संस्थागत ऋण सबसे महंगी दरों पर मिले (वार्षिक ब्याज दर थी 7.35 फीसद से 7.72 फीसद के बीच)। गैर-संस्थागत ऋणों के मामले में भी, पंजाब के किसानों ने औसतन 17 फीसद से 21 फीसद सालाना की दर से ब्याज चुकाया।

ऋण के अन्य इस्तेमाल

हमारे शोध में यह बात पता चली कि उपर्युक्त तीनों राज्यों में किसानों ने लिये गये कृषिऋण का कुछ न कुछ हिस्सा गैर-कृषि कामों में लगाया। लेकिन किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) के जरिये लिये गये फसली ऋण का गैर-कृषि कार्यों में इस्तेमाल सबसे ज्यादा पंजाब में हुआ।

पंजाब में केसीसी फसली कर्ज का औसतन 41 फीसद उपयोग पारिवारिक खर्चों को पूरा करने में लगाया गया। गैर-संस्थागत कर्जों का पारिवारिक मदों में उपयोग करने का अनुपात लगभग 28 फीसद रहा। महाराष्ट्र में केसीसी फसली ऋण का लगभग 26 फीसद निजी, पारिवारिक और अन्य खर्चों को पूरा करने में लगाया गया। उत्तर प्रदेश में यह अनुपात 13 फीसद रहा, लेकिन पंजाब और महाराष्ट्र में केसीसी आवधिक फसली ऋण का गैर-कृषिकार्यों में इस्तेमाल सबसे अधिक हुआ, लगभग 34 फीसद। ऋणों का गैर-उत्पादक, उपभोग वाले मदों में इस्तेमाल ने संभवतः किसानों पर कर्ज के बोझ को और बढ़ाया है।

कुल मिलाकर, हम इस नतीजे पर पहुँचते हैं कि पंजाब में किसान ऊंची ब्याज दरों पर भारी कर्ज लेते हैं, सो वहाँ  खेती ज्यादा महँगी है। लेकिन क्या यही उनकी विपत्ति की वजह है और उन्हें आत्महत्या की तरफ ले जाती है?

(जारी- कल पढ़िए इन वजहों से संकट में हैं पंजाब के किसान’)

theindiaforum.in से साभार

अनुवाद : राजेन्द्र राजन

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