— रवीन्द्र गोयल —
दुनिया में धन्नासेठों के हितों से बॅंधी सरकारों का एक जैसा चलन होता है। वो मेहनती लोगों के लिए दी जानेवाली जरूरी सुविधाओं में लगातार कटौती करती हैं और विकास को आगे बढ़ाने के नाम पर धनपतियों को किस्म किस्म की रियायतें देती रहती हैं। ऐसे में अपने खर्चों के लिए भी यदि उसको पैसे चाहिए तो उसके पास सीमित विकल्प ही होते हैं, और वो भी जब अपनी आखिरी सीमा पर पहुँच जाएँ तो सरकारें क्या करती हैं इसका वीभत्स उदहारण आजकल खाद्य वस्तुओं पर लगाये गए जीएसटी में दीख रहा है।
पिछले कई सालों से जनता की कम समझदारी के आधार पर मोदी सरकार ने लाखों करोड़ रुपया पेट्रोल-डीजल पर टैक्स के रूप में बटोरा। किस्म किस्म के जुमले छोड़े गए। जब सब नाकामयाब रहे तो साहेब ने 27 अप्रैल 22 को कोविड समस्या पर चर्चा के लिए बुलाई मुख्यमंत्रियों की मीटिंग में विपक्ष शासित राज्यों से वैश्विक संकट के इस समय में आम आदमी को लाभ पहुंचाने और सहकारी संघवाद की भावना से काम करने के लिए “राष्ट्रीय हित” में पेट्रोल, डीजल पर वैट कम करने का आग्रह किया। ये तीर भी न चला तो केंद्र सरकार ने हार कर पेट्रोल डीजल पर लगाये जा रहे टैक्स को एक हद तक कम किया।
इसके बाद सरकार ने कर जुटाने के लिए अपनी गिद्ध दृष्टि जीएसटी की दरों पर डाली और आम आदमी के खाने पीने के सामानों को भी जीएसटी के दायरे में ले लिया। जून के अंत में जीएसटी दरों में व्यापक फेरबदल का बड़ा फैसला लेने के बाद 18 जुलाई से रोजमर्रा की तमाम वस्तुएं जैसे मछली, दही, पनीर, लस्सी, शहद, सूखा मखाना, सूखा सोयाबीन, मटर जैसे उत्पाद, गेहूं और अन्य अनाज तथा मुरमुरे पर भी पांच प्रतिशत जीएसटी लगाने का फैसला किया। कहने को तो यह टैक्स केवल पैक्ड सामानों पर ही लगा है पर ऐसे अप्रत्यक्ष करों का असर पैक्ड ही नहीं बिना पैक किये हुए सामानों पर भी पड़ेगा। वैसे भी बेचने की सुविधा को ध्यान में रखते हुए छोटे स्टोरों द्वारा भी 1 या 2 किलो के पैकेट में सामान पैक करके बेचा जाता है। और वो भी इस फरमान की चपेट में आएंगे। टैक्स का असर आम आदमी के घरेलू रहन-सहन के बजट पर पड़ेगा, गरीबों और निम्न मध्यमवर्गीय लोगों का जीवन और मुश्किल हो जाएगा। और स्वाभाविक तौर पर वर्तमान महंगाई के दौर में पूरे देश में इसका विरोध हो रहा है।
इस विरोध की धार को कुंद करने के लिए सरकार ने इस तर्क का सहारा लिया कि यह टैक्स अकेले बीजेपी ने नहीं लगाया है। एक भी गैर-बीजेपी शासित राज्य इससे असहमत नहीं था, फैसला पूर्ण सहमति से हुआ है। इसलिए अगर कोई विपक्षी नेता/दल इसके खिलाफ बोल रहा है तो वो सिर्फ जनता को मूर्ख बनाने के लिए है। लेकिन यह पूर्ण सत्य नहीं है।
यह सही है कि बीजेपी की तरह ही वर्तमान दौर में नवउदारवादी आर्थिकी की समर्थक कांग्रेस, द्रमुक, तेलुगु देशम, शिवसेना आदि राज्यों की सरकारों ने केंद्र सरकार के इस दावे पर चुप्पी साध राखी है, लेकिन केंद्र सरकार के इस दावे को केरल सरकार ने गलत बताया है। केरल के वित्तमंत्री के एन बालगोपाल ने 20 जुलाई, बुधवार को कहा कि राज्य ने सभी पैकेज्ड खाद्य पदार्थों पर जीएसटी लगाने पर बार-बार अपनी आपत्ति व्यक्त की थी इसके बावजूद केंद्र सरकार ने यह फैसला लिया। और उन्होंने स्पष्ट किया कि इस विषय में हुई बातचीत में सरकार ने बताया था कि ब्रांडेड कंपनियों को पैकेज्ड प्रोडक्ट्स पर 5 फीसदी टैक्स देना होता है, लेकिन अगर वे पैकेजिंग में इस बात का जिक्र करती हैं कि वे ‘ब्रांड का दावा’ नहीं कर रही हैं तो उस पर टैक्स नहीं लगता है। केंद्र सरकार ने कहा, ऐसी कंपनियों द्वारा कर चोरी को रोकने के लिए उनके पैकेज्ड खाने के सामानों जीएसटी लगाने का सुझाव है। उस सहमति का उल्लंघन करके सरकार ने यह टैक्स अब सभी पैकेज्ड खाने के सामानों पर लगा दिया है।
के एन बालगोपाल ने यह भी बताया कि उनकी सरकार का कुटुम्बश्री जैसी संस्थाओं या छोटे स्टोरों द्वारा 1 या 2 किलो के पैकेट में बेची जानेवाली वस्तुओं पर कर लगाने का कोई इरादा नहीं है। राज्य के वित्तमंत्री ने आगाह किया कि इस फैसले से केंद्र सरकार के साथ विवाद हो सकता है लेकिन राज्य समझौता करने के लिए तैयार नहीं है। मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर घरेलू खाद्य पदार्थों पर 5 फीसद जीएसटी को वापस लेने की मांग की है।
केंद्र सरकार और केरल सरकार के बीच बढ़ती तकरार का क्या नतीजा होगा यह तो समय ही बताएगा। लेकिन आम लोगों पर गिरी इस गाज ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वर्तमान केन्द्र सरकार अपने जनविरोधी मंसूबों को पूरा करने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है।