1. सीख
जिस दोस्त को सबसे ज्यादा वक्त
दिया
मुश्किलों में उसने बहाने ढूंढ़ लिये
जिसे टूट कर प्यार किया
वह बेवफा निकल गई
जिस बच्चे के लिए
अपनी जरूरतें कम करता रहा
वह विदेश बस गया
इसके उलट भी हुआ और खूब
हुआ
कुछ लोग अचानक ही आ खड़े
हुए
सहारा देते
जो जीवन में कभी महत्त्वपूर्ण नहीं
थे
जिससे कभी ढंग से बात भी नहीं
हुई
वह पड़ोसी मदद को सबसे तत्पर
दिखा
जिस बॉस को कभी भला नहीं
समझा
उसी ने सबसे अधिक तारीफ की
और जिन्हें आज भी चुभते होंगे मेरे उपहास
मुश्किलों में उन्हीं के शब्दों ने मुझे संभाला
विश्वास के इस व्यावहारिक लेखा-जोखा में,
अनुमानों के यूं अक्सर उलट जाने
पर
लोग या चीजों के अच्छा दिखने
की नहीं
अच्छा होने की एक प्राचीन सीख
छिपी है!
2. एकतरफा
संभव है
जिसे आप गुर सिखा रहे हों
वह उन्हें आप के खिलाफ ही
अस्त्र बना ले
जिसे आगे बढ़ा रहे हों
उसके मन में बढ़ रही हो
आपसे ही आगे निकल जाने की प्रतिस्पर्धा
बहुत संभव है
जिसकी मदद कर रहे हों
वह आपके प्रति कृतज्ञ न हो
करता हो ईर्ष्या
संभव यह भी है कि
जिसके प्रति प्यार
आपके जीवन मरण का प्रश्न हो
उसके लिए आप महज
कोई सीढ़ी हों
जिसे उपयोग के बाद
हटा दिया जाना हो
या महज एक विकल्प
बेहतर विकल्प की तलाश में
समर्पण कई बार एकतरफा हो
जाता है
विश्वास तार तार होता है
ठगे रह जाते हैं हम
लेकिन हर बार छले जाने के बाद
प्यार में धोखे के बाद
अपनों से हार जाने के बाद
हम छोटे नहीं होते
और बड़े हो जाते हैं!
3. मेरा सुख
मेरे सुख की कल्पना में शामिल है
कमरे की मद्धिम रोशनी
अमीर ख़ान, मेंहदी हसन के विकल सुरों में
गहनता से डूबा
मेरी मुंदी आंखों का उनींदापन
मेरे सुख की कल्पना पूरी होती है
तमाम अपठनीय, आक्रांत करती रचनाओं के बीच
किसी ऐसी कविता की पंक्तियों से
जो भरता है देर तक
मेरे अन्तस में उजास
और मेरा मस्तिष्क मुस्कुरा उठता है
मेरा सुख
किसी नदी का तट
खामोश पहाड़ों की गोद,
वृक्षों, पुष्पों और शिशुओं की
संगत
से भी बन जाता है अनायास
जब दुनिया के ज्यादातर लोग
अपने-अपने सुख की तलाश में
आकाश-पाताल एक कर रहे हैं
भागते चले जाते हैं बेतहाशा
पैरों तले तार-तार करते हैं मनुष्यता को
जोड-तोड़, दांव-पेच, अनाचार-अत्याचार
और यहां तक कि हत्याएं भी कर
जाते हैं
हे पृथ्वी, मैं तुम्हारा कैसे शुक्रिया
अदा करूं
ऐसे किसी भी प्रयासों के पार है
मेरी खुशियों की दुनिया
मेरा सुख मुझे अक्सर हासिल है
4. पिता की विरासत
मैं तुम्हें किस रूप में याद करूं
तुम्हारे मित्र कायल थे नाटकों में तुम्हारे अभिनय पर
डायरियां बताती हैं तुम लिखते थे
कहानियां
मां कहती हैं कि खाना पकाने से
बटन टांकने तक के काम में तुम
उससे बेहतर थे
हालांकि कुछ लोग ये भी बताते हैं
तुम पढ़ने में नहीं थे होनहार
लेकिन जब तक तुम थे
विद्यालय का कोई भी आयोजन
तुम्हारे बिना अधूरा था
कभी संयोजन, कभी संचालन
कभी गाना, कभी बजाना,
और तो और
तुम्हें खूब आता था
स्त्रियों का वेश धारण कर
प्रहसनों में रिझाना
लेकिन मेरी स्मृति में
मेरे पिता तुम्हारी जो तस्वीर है
वह तुम्हारे अंतिम दिनों की है
और मेरे बचपन की
तुम दिखाते थे मुझे सपने
देते थे दिलासा
कहते तुम जल्द ही ठीक हो
जाओगे
और बाजार से ले आओगे
मेरे लिए किताबें और ढेर सारे
कपड़े
फिर तुम जोर से खांसते थे
लेटे लेटे ही पटकते थे पैर
जिन्हें कसकर पकड़े होते थे
मेरे छोटे-छोटे हाथ
पैरों पर मुझे ऐसे कभी कोई निशान नहीं मिले
जो बता सकते हों कि तुम थक
चुके थे
तुमने खूब लगाए थे उन दफ्तरों
के चक्कर
जहां कभी तुम्हारे पिता एक बड़े
ओहदे पर थे
हां हाथों पर जरूर कुछ दाग थे
जो बिजली से मिले थे
रेडियो की तुम्हारी अपनी छोटी
सी दुकान पर
अपनी सारी कलाओं पर प्रश्नाकुल
दुनियादारी में पराजित पिता
मेरी विरासत हैं।
बहुत सुंदर सर