हसदेव बचाओ आंदोलन को युवाओं का अनूठा सहयोग

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23 अगस्त। हसदेव अरण्य में खनन का विरोध कर रहे आदिवासियों के समर्थन में राज्य के तमाम युवा उतर आए हैं। ये अनोखे तरीकों से अपना समर्थन जाहिर कर रहे हैं। वैभव बेमतारिहा की शादी का कार्ड एक पत्र जैसा था। 38 वर्षीय वैभव का यह अनोखा निमंत्रण पत्र पाकर उनके दोस्त और परिजन खासे उत्सुक हो गए थे। कार्ड पर लिखा था, ‘सेव हसदेव’ यानी हसदेव बचाओ। वैभव ने छत्तीसगढ़ के हसदेव जंगल में खनन के विरोध में प्रदर्शन कर रहे आदिवासियों के समर्थन का यह अनोखा तरीका अपनाया था। उन्होंने बताया, कि यह आदिवासियों की लड़ाई को हमारा सूक्ष्म, निजी योगदान है।

अन्य युवा भी अपने-अपने तरीकों से इसका समर्थन कर रहे हैं। कलाकार प्रमोद साहू जो अपनी रंगोली कला के लिए जाने जाते हैं, इस आंदोलन का समर्थन अपनी कलाकृतियों के माध्यम से कर रहे हैं। एक कलाकृति में उन्होंने हसदेव अरण्य को राज्य के फेफड़े की तरह दिखाया है, जिसे खनन कंपनियों को बेचा जा रहा है। साहू कहते हैं, “बहुत सारे लोग जो मानते हैं, यह उसी का प्रतीकात्मक चित्रण था।” आंदोलन के एक समर्थक 31 वर्षीय यूट्यूबर दीपक पटेल भी हैं, जो छत्तीसगढ़ में पर्यटन स्थलों को अपने चैनल पर दिखाते हैं। अपने दसियों हजार सब्सक्राइबर्स को उन्होंने हसदेव अरण्य की अहमियत और इस पर मंडरा रहे खतरों के बारे में बताया। बिलासपुर में रहने वाले पटेल के लिए मुख्य प्रोत्साहन था, हसदेव नदी पर पड़नेवाला असर, जहाँ से उनके शहर का पानी आता है। एक आदिवासी महिला ने कहा, कि वह उस जमीन पर दफन हो जाने को तैयार है लेकिन एक इंच नहीं जमीन देंगी।

विदित हो कि ‘हसदेव अरण्य’ भारत के सबसे घने जंगलों में से एक है। छत्तीसगढ़ में स्थित इस जंगल में पेड़ काटने के लिए राज्य सरकार ने अप्रैल महीने में ही अंतिम अनुमति जारी की जिसके बाद कटाई का काम शुरू हो गया। हालांकि आदिवासियों के प्रतिरोध और धरने के कारण पिछले हफ्ते यहाँ पेड़ काटने का काम रोक दिया गया लेकिन ग्रामीणों को डर है कि यह कभी भी दोबारा शुरू हो सकता है।

हसदेव के लिए लड़ रहे आदिवासियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के संगठन ‘छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन’ ने शिकायत की थी, कि राज्य सरकार ने पेड़ काटने से पहले एनटीसीए और नेशनल बोर्ड फॉर वाइल्ड लाइफ को सूचित नहीं किया। सरकारी आँकड़ों के मुताबिक, हसदेव अरण्य के परसा कोल ब्लॉक में 95,000 पेड़ काटे जाने हैं। हालांकि सामाजिक कार्यकर्ताओं का अनुमान है कि कटनेवाले पेड़ों की असल संख्या दो लाख से अधिक होगी। अप्रैल में जब हसदेव में सैकड़ों पेड़ काटे जाने की खबर फैली तो दुनियाभर में विरोध हुआ।

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