क्यों नहीं थमते ये नफरती बोल?

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— मुनेश त्यागी —

पिल मिश्रा, अनुराग ठाकुर, प्रवेश वर्मा, साध्वी ऋतंभरा और कई सारे तथाकथित धार्मिक गुरु, धार्मिक मांएं और साधु संन्यासी पिछले काफी दिनों से अपने भाषणों से समाज और देश में सांप्रदायिक और जातिवादी जहर घोल रहे हैं। यही काम टीवी चैनलों द्वारा काफी दिनों से जनता में नफरती बोल बोलकर किया जा रहा है और जनता में जहर फैलाया और घोला जा रहा है।

भारत में इन नफरती बोलों का निशाना, भारत के अल्पसंख्यक यानी मुसलमान हैं। ये साम्प्रदायिक ताकतें आए दिन, अल्पसंख्यकों का अपमान करती रहती हैं। उनके खिलाफ नफरत भरे नारे लगाए जाते हैं।

इनके नारे देखिए –

देश के गद्दारों को
गोली मारो सा…. को।

और

मुसलमानों का एक स्थान
कब्रिस्तान या पाकिस्तान।

यहां पर सवाल यह उठता है कि आखिर इन नफरती बोलों औ
का फायदा किसे हो रहा है? अगर हम गौर से देखें तो इन नफरती बोलों का फायदा हमारे देश के सत्ताधारियों को पूंजीपतियों को, सांप्रदायिक नेताओं को, सांप्रदायिक राजनीतिक दलों को, सांप्रदायिक हिंदूवादी ताकतों को और संगठनों को हो रहा है।

आखिर इन नफरती बोलों के पीछे क्या मकसद है? गौर से देखने पर केवल एक मकसद नजर आता है कि इस देश का पूंजीपति लुटेरा वर्ग, किसी भी तरह से सत्ता पाना चाहता है और सत्ता में बने रहना चाहता है। इसके लिए वह किसी भी तरह से जनता की एकता को तोड़ना चाहता है, जनता को हिंदू और मुसलमान में बांटना चाहता है और वह चाहता है कि हमारी जनता इन्हीं नारों के इर्दगिर्द सिमट कर रह जाए। नफरती बोलों का केवल और केवल यही मकसद है।

यहां पर सवाल उठता है कि नफरती बोल बोलनेवालों के खिलाफ और नफरती बोलों को प्रचारित प्रसारित करनेवाले चैनलों और व्यक्तियों के खिलाफ समय से, जरूरी कानूनी कार्रवाई क्यों नहीं हो रही है? सरकार मूकदर्शक क्यों बनी हुई है? क्या वह इन नफरती बोलों का प्रचार-प्रसार करके वोट लेने और सत्ता पाने और सत्ता में बने रहना ही नहीं चाहती है?

यह सब देश, समाज और जनता के हित में नहीं है। संवैधानिक मूल्यों, गणतंत्र, संप्रभुता, धर्मनिरपेक्षता और समाजवादी मूल्यों के खिलाफ है। यह सब समाज के आपसी सामंजस्य और भाईचारा बनाए रखने के खिलाफ है। सरकार को इन्हें रोकने के लिए सख्त कानून कानून बनाने होंगे और इन्हें समय से पुख्ता सजा देनी होगी।

इस सब की हकीकत क्या है? अधिकांश टीवी चैनलों पर पूंजीवादी ताकतों का नियंत्रण है। वे अपनी सत्ता बनाए रखने के लिए जनता की एकता को तोड़ना चाहते हैं ताकि जनता बुनियादी मुद्दों जैसे रोटी, रोजी, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार की बात न कर सके, और इसी धर्मांधता की, साम्प्रदायिकता की राजनीति में उलझी रहे।

वर्तमान पूंजीवादी और सांप्रदायिक ताकतों के गठजोड़ के चलते, इस नफरत भरी जुबान पर लगाम लगाना आसान नहीं है। पूंजीपतियों का निजाम इस नफरत भरी भाषा के बिना जिंदा नहीं रह सकता। ये नफरती भाषा इनकी जीवन रेखा है।

पिछले दिनों सर्वोच्च न्यायालय ने इस नफरत भरी मुहिम पर आश्चर्य प्रकट किया है और कुछ जरूरी सवाल उठाए हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि इस तरह की भाषा बोलकर, टीवी चैनल अपनी टीआरपी बढ़ाना चाहते हैं, वे जाति और धर्म के खिलाफ नफरत फैला रहे हैं, अल्पसंख्यकों की बेइज्जती और बदनामी कर रहे हैं। इनकी वजह से देश की दुनिया भर में बदनामी हो रही है।

सर्वोच्च न्यायालय ने इन नफरती बोलों पर सख्त आपत्ति जताते हुए कहा है कि ये नफरती बोल समाज में जहर घोल रहे हैं, समाज के ताने-बाने को तोड़ रहे हैं, सामाजिक सौहार्द को खत्म कर रहे हैं। ऐसे बोल बोलनेवाले एंकरों और पार्टी प्रवक्ताओं के खिलाफ तुरंत सख्त से सख्त कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए। हालत इतनी खराब है कि सरकार विधि आयोग की सिफारिशों के बाद भी इन लोगों के खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई करने को तैयार नहीं है।

केंद्र सरकार मूकदर्शक बनी हुई है। वह इन मामलों पर, इन नफरती बोलों पर रोक लगाने के लिए आगे बढ़ कर कार्रवाई नहीं कर रही है, सख्त कानून नहीं बना रही है। इन हरकतों को “तुच्छ मामले” बताकर इतिश्री नहीं की जा सकती। बल्कि सरकार को आगे बढ़कर इन मामलों से निबटने के लिए सख्त नियम और कानून बनाने पड़ेंगे। नफरत भरे बोल बोलनेवालों को टीवी चैनल पर आने और बोलने की मनाही करनी चाहिए।

इन नफरती बोल बोलनेवालों को, सरकार को और जनता को भली-भांति समझना होगा कि हमारा कानून नफरत फैलाने की अनुमति नहीं देता और यह देश यहां पर रहनेवाले सारे भारतीयों का है। यह लुटेरे पूंजीपतियों और साम्प्रदायिक ताकतों की बपौती नहीं है। यहां पर किसी भी जाति, धर्म, लिंग, क्षेत्र, भाषा या समुदाय के खिलाफ नफरती बोल बोलकर, किसी को भी लिखकर या बोलकर धमकी नहीं दी जा सकती है और न ही नफरत फैलाने की इजाजत दी जा सकती है।

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