28 अक्टूबर। समाजवादी साथी संजीव साने हमारे बीच नहीं रहे। लंबी बीमारी के बाद उनका देहांत हो गया। उनके समाजवादी आंदोलन का एक मजबूत स्तंभ ढह गया।
हाल में दो बार मुंबई गया। फोन पर बात हुई पर मुलाकात की स्थिति में वे नहीं थे।
हमारा लगभग 35 साल पुराना साथ छूट गया।
जिंदादिली, सैद्धांतिक प्रतिबद्धताओं के साथ साथ संघर्ष के लिए उन्हें सदा याद किया जाएगा।
महाराष्ट्र में ललित बाबर जी, सुभाष लोमटे जी, सुभाष वारे जी अण्णासाहेब खंदारे जी, मानव कांबळे जी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर उन्होंने आजीवन काम किया। महाराष्ट्र की टीम में संजू भाई के जाने से बड़ी रिक्तता पैदा होगी जिसे भरना बहुत मुश्किल होगा।
किसान संघर्ष समिति, जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय और समाजवादी समागम के सभी साथियों की ओर से भावभीनी श्रद्धांजलि।
– डॉ सुनीलम
मुंबई के अपने अनन्य मित्र संजीव साने का आज निधन हो गया। वह उस राजनीतिक संस्कृति में पले-बढ़े थे जो देश के लिए नए सपने बुन रही थी। वह आपातकाल और जनता पार्टी के उदय और पतन के बाद समाज को बदलने के लिए नए रास्ते ढूंढ़ने वाले उस जनूनी समूह का हिस्सा थे जो नफरत और बेईमानी की तरफ बढ़ती राजनीति के विरोध में खड़ा था। लेकिन वह उन थोड़े-से लोगों में से थे जिनके जीवन में विचारधारा और संवेदनशीलता साथ-साथ चलती थी। समाज को आगे ले जाने की जिद में लोग अक्सर व्यक्तियों के निजी दुखों को छू नहीं पाते। संजीव साथियों की राजनीति ही नहीं उनके जीवन में भी शामिल थे। भयंकर व्यक्तिवाद के इस दौर में उन जैसे लोगों की उपस्थिति राजनीति की मरुभूमि में बारिश लाती थी। इसमें एक लय पैदा करती थी… गिरणी कामगार आंदोलन, रेमिंग्टन कर्मचारियों के संघर्ष, अन्ना आंदोलन समेत तमाम आंदोलनों में वह एक असरदार उपस्थिति तो रहे ही, समाजवादियों को वैचारिक रूप से संगठित करने की समता आंदोलन और समाजवादी जन परिषद की कोशिशों में भी उन्होंने प्रमुख भूमिका निभायी। आम आदमी पार्टी और फिर स्वराज इंडिया के प्रयोग में भी इसी सोच के साथ शामिल थे। बीमार होने के पहले वह लोगों को वैचारिक रूप से मजबूत बनाने की पहल कर रहे थे। उनके चले जाने से समाजवादियों की छोटी, किन्तु प्रतिबद्ध धारा कुछ और विपन्न हुई है। उन्हें अलविदा कहना कठिन है।
– अनिल सिन्हा
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