वह नारी आंदोलन, श्रमिक आंदोलन, सहकारिता आंदोलन की त्रिवेणी थीं

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स्मृतिशेष : इला भट्ट (7 सितंबर 1933 - 2 नवंबर 2022)

2 नवंबर। गांधीवादी विचारक एवं सामाजिक कार्यकर्ता, सेवा की संस्थापिका सुश्री इला बहन भट्ट का बुधवार (2 नवंबर) को अहमदाबाद के अस्पताल में निधन हो गया। वे 89 वर्ष की थीं। इला बहन ने भारत की महिलाओं के सामाजिक और आर्थिक विकास की दिशा में महत्त्वपूर्ण कार्य किये। बिना किसी प्रकार की हिंसा के महिलाओं के मुद्दों को सबके सामने लाने के उनके अनोखे तरीके के कारण उन्हें एक सौम्य क्रांतिकारी का नाम दिया गया है। उन्होंने 1972 में सेल्फ-एम्प्लाएड वीमेन एसोसिएशन (SEWA) नामक संस्था की स्थापना की थी। 1972 से 1996 तक वे इस संगठन में महासचिव के रूप में काम करती रहीं। उद्यमिता के माध्यम से महिलाओं के लिए कई क्रांतिकारी काम किए।

कई पुरस्कारों से सम्मानित

इला भट्ट को अपने जीवन में उल्लेखनीय कार्यों के लिए कई अवार्ड से सम्मानित किया गया। 1977 में उन्हें सामुदायिक नेतृत्व श्रेणी में मैग्सेसे पुरस्कार प्रदान किया गया। 1984 में उन्हें स्वीडिश पार्लियामेंट द्वारा ‘राइट लिवलीहुड’ अवार्ड से नवाजा गया। भारत सरकार ने 1985 में उन्हें पद्मश्री की उपाधि तथा 1986 में पद्मभूषण सम्मान दिया। वर्ष 2011 में इला भट्ट को इंदिरा गांधी शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इला बेन महात्मा गांधी द्वारा स्थापित गुजरात विद्यापीठ की चांसलर भी रहीं।

सन 2001में हार्वर्ड विश्वविद्यालय ने इला बेन को मानविकी में मानद उपाधि से सम्मानित किया। अपने पूरे जीवन में उन्होंने महिलाओं के सशक्तीकरण और रोजगार के लिए काम किया है और महिलाओं की मदद करने के उनके अभूतपूर्व प्रयासों के लिए उन्हें 27 मई,201 को रैडक्लिफ मेडल से सम्मानित किया गया था। उन्होंने जार्जटाउन विश्वविद्यालय से मानविकी में डाक्टरेट की उपाधि प्राप्त की और यूनिवर्सिटी लिब्रे डी ब्रुक्सेल्स, ब्रुसेल्स से डाक्टरेट की मानद उपाधि भी प्राप्त की।

इला बेन भट्ट ने भारत के पहले मजदूर संगठन कपड़ा कामगार संघ के महिला प्रकोष्ठ के नेतृत्व से 1968 में अपने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत की थी। उन्होंने असंगठित क्षेत्र में कार्यरत गरीब महिलाओं को संपूर्ण रोजगार दिलाने और अधिकार संपन्न कराने जैसे महत्त्वपूर्ण कार्य की बागडोर संभाली। ‘सेवा’ (सेल्फ इम्प्लाइड वुमेन एसोसिएशन) की शुरुआत इला भट्ट ने 1971 में केवल सात सदस्यों के साथ की थी। आज इसके साथ 25 लाख से ज्यादा स्त्रियां जुड़ी हैं। वे इस मुहिम की बागडोर अंतिम समय तक संभालती रहीं। यह संगठन अनपढ़ कामगार महिलाओं का अपना बैंक भी चलाता है जिसके जरिए औरतों को स्वरोजगार के लिए पूंजी मुहैया कराई जाती है। स्वरोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य और आवास जैसी मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने के इनके आंकड़ों की बानगी आज 25 लाख से अधिक परिवार दे रहे हैं। यह नारी आंदोलन, मजदूर आंदोलन और सहकारिता आंदोलन का एक संगम है।

इला बेन मुंबई की एसएनडीटी कालेज में शिक्षिका थीं, जिसके बाद अहमदाबाद में वकालत शुरू की। इस दौरान ही उन्हें टेक्सटाइल लेबर एसोसिएशन की महिला विंग का अध्यक्ष बनाया गया और इस संस्था को उन्होंने देश का सबसे बड़ा लेबर यूनियन बना दिया। 1955, में टीएलए (टेक्सटाइल लेबर एसोसिएशन) के कानूनी विभाग में शामिल हुईं। विभाग में उनके प्रगतिशील और समर्पित कार्य ने उन्हें 1968 में महिला विंग का नेतृत्व करने के लिए प्रेरित किया।

1971 में इला बेन भट्ट ने इजराइल की यात्रा की, जहां उन्होंने एफ्रो-एशियन इंस्टीट्यूट ऑफ लेबर एंड कोआपरेटिव्स में इंटरनेशनल डिप्लोमा आफ लेबर एंड कोआपरेटिव्स प्राप्त किया। अरविंद बुच (टीएलए के तत्कालीन अध्यक्ष) के सहयोग से, उन्होंने टीएलए विंग की महिलाओं के तहत एक स्वरोजगार महिला संघ बनाने की पहल की। 1972 में ‘सेवा’ (SEWA) यानी स्वरोजगार महिला संघ की स्थापना हुई और इला बेन ने संगठन में 1996 तक महासचिव के रूप में काम किया। इला भट्ट ने अपनी सेवा टीम के साथ, अगले वर्ष एक सेवा सहकारी बैंक की स्थापना की। उन्होंने ‌1956 में रमेश भट्ट से शादी की थी। उनके दो बच्चे हैं – अमीमयी और मिहिर। उनका पूरा परिवार अहमदाबाद में ही रहता है।

(सप्रेस)


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