सद्भाव संवाद यात्रा में गणतंत्र की हालत पर चर्चा

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26 जनवरी. सद्भाव यात्रियों ने परमहंस पब्लिक स्कूल में गणतंत्र दिवस समारोह में भागीदारी दी। आनन्द कुमार ने आजादी के आंदोलन और आजादी के अर्थ का जिक्र करते हुए बात शुरू की। आजादी यानी पढ़ने की आजादी, इज्ज़त के साथ जीने की आजादी, अपने सपने पूरे करने की आजादी। आप बच्चों पर बहुत काम बाकी है। प्रदूषण खत्म करना होगा। अनेक बच्चे पढ़ने की जगह भीख माँगने को मजबूर हैं। आज आजादी की खुशी मनाने का दिन है। हम सब कई हिस्सों से यह पूछने निकले हैं कि हम नफरत छोड़कर मेल-मोहब्बत से क्यों नहीं रह सकते? सच की शक्ति अपने अन्दर बरकरार रखनी है। अपने से कमजोर को नहीं सताएंगे। लड़के, लड़कियों को अपने से कमजोर समझते हैं। यह गलत है, इसे हटाना ह। सपनों को साकार करने की पूँजी शिक्षा है। रामधीरज ने कहा कि हम सब आज संविधान की शक्ति से लैस होने का दिन मनाते हैं। खुद से तय करने के अवसर का उपयोग हम सब खुद को सब को आगे बढ़ाने के लिए करें।

रास्ते पर पांडवनगर, गाजियाबाद स्थित सुख सागर परिसर में यात्रा का स्वागत किया गया। वहाँ गणतंत्र दिवस के मौके पर भारतीय झंडा भी फहराया गया। कई गणमान्य स्थानीय साथियों ने अपनी बातें रखीं। यात्रियों का परिचय कराते हुए आनन्द कुमार ने तीन सवालों को दुहराया। क्या अच्छे दिन हैं हमारे लिए? अडाणी, अम्बानी के लिए तो है! चार बड़ी परेशानी है- कमाई का संकट, दवाई का सवाल है, पढ़ाई की बदहाली है। चौथी समस्या महंगाई की है। स्वास्थ्य नीति लूट की नीति है। देश किसानों का है। किसानों को मिट्टी का मोल मालूम है। सरकार ने स्वदेशी और स्वावलम्बन छोड़ दिया। अब सैकड़ों सालों से बने रिश्ते तोड़े जा रहे हैं। साम्प्रदायिकता के फैलते जहर के पीछे सत्ता की राजनीति, मीडिया और कारपोरेट की लुटेरी भूख है। समय बैठकर सोचने का है। नफरत को नकारने का है।

वैशाली सेक्टर 4 में एक शैक्षणिक संस्थान में संवाद हुआ। परिचय के बाद बाबासाहब अम्बेडकर विश्वविद्यालय मुजफ्फरपुर (बिहार) के राजनीति विज्ञान के सेवानिवृत्त प्राध्यापक विकास नारायण उपाध्याय ने सद्भाव की जरूरत पर प्रकाश डाला। संवाद के संचालक प्रमोद ने ध्यान दिलाया कि यह पहली सरकार है जो सरकारी शिक्षण संस्थानों को बन्द कर रही है। यूनानी चिकित्सा कॉलेज में इस बार एडमिशन तक नहीं हुआ है। सुरेन्द्र कुमार ने नागरिक अधिकारों पर हो रहे हमलों को चिंतनीय बताया। सत्ता सम्प्रदायों में संशय और भय पैदा कर रही है। बढ़ती बेरोजगारी के कारण शिक्षा के प्रति अनिच्छा बढ़ रही है। किसानों का धान खरीदने में भी सरकारी भ्रष्टाचार है। कम्प्यूटर में एक की जमीन दूसरे के नाम चढ़ा दी गयी है। संतप्रकाश ने कहा कि जनतंत्र बहुसंख्यकवाद नहीं है , अल्पसंंख्यकों की सुरक्षा की पद्धति है। अभी सही प्रतिनिधित्व की प्रणाली नहीं है। हमें सेक्युलरिज्म के रास्ते पर चलते रहना होगा। सत्य को ज्यादा वक्त तक दबाये नहीं रखा जा सकता। स्थानीय साथी अमित पांडेय ने बीबीसी के विवादास्पद डाक्यूमेंट्री के हवाले से बात शुरू की। समस्याओं की जानकारी तो सबको पता है। हमारे पास पोलिटिकल नैरेटिव की कमी है। आज देश का मतलब सरकार हो गया है। उन्होंने सद्भावना यात्रा के पर्चे पर तथा सर्वोदय जगत के राम अंक पर अपना सवाल भी उठाया। प्रतीक व्यक्तित्वों में नेहरू का नाम क्यों नहीं , क्या हम धर्म की पिच पर ही मुकाबला करेंगे?

कमलेश कुमार आर्य ने शैक्षणिक ह्रास और संवैधानिक मूल्यों के हनन पर चिन्ता जाहिर की। समस्याओं का समाधान तो मिल बैठकर कर ही होगा। महंगाई , बेरोजगारी को दूर करना है तो हिन्दू मुस्लिम करना बन्द करना होगा। शांति के बिना विकास असंभव है। मुकेश मिश्र ने कहा कि हम सब की भागीदारी सुनिश्चित करने का उपाय आप सब निकालें। सुरेश खैरनार ने कहा कि सभी उपलब्धियों और प्रतीकों को पलटने का काम किया जा रहा है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को ब्राह्मण संगठन मानने की गलती हमें नहीं करना चाहिए। रोजगार सरकार किसी को दे नहीं रही, और कुछ के द्वारा रोजगार हड़पने का भ्रम फैला रही है। भाजपा का सत्ता का खेल ज्यादा दिन चलनेवाला नहीं।


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