— शिवानन्द तिवारी —
जाहे विधि राखे राम ताहि विधि रहिए। बिहार के दस-बारह करोड़ में से अगर पाँच करोड़ लोग ही अपने-अपने घर के बाहर धर्म का ध्वज फहराएं और माथे पर तिलक लगा लें, तो हमारा रामराज का उद्देश्य पूरा हो जाएगा। हाथ उठाओ कौन कौन घर के बाहर धर्म का ध्वज फहराएगा और माथे पर तिलक लगाएगा। बाबा के इतना कहते ही लाखों हाथ उठ गए। बाबा ने कहा कि हमारा संकल्प पूरा हो गया। यह वचन धीरेंद्र शास्त्री उर्फ़ बागेश्वर धाम के बाबा का है।
बिहार में अपना दिव्य दरबार लगाने और पर्ची निकालने का मकसद क्या है, बागेश्वर धाम के सताईस वर्षीय युवा बाबा ने जाहिर कर दिया। लालू यादव और नीतीश कुमार भले ही संविधान बचाओ का शोर उठाते रहें लेकिन धीरेन्द्र शास्त्री ने पाँच करोड़ लोगों को अपने खेमे में बहाल कर लिया। पाँच करोड़ लोगों ने हाथ उठाकर कहा कि अब वे भी अपने माथे पर तिलक लगाया करेंगे। अपने अपने घरों पर भगवा ध्वज भी फहराएँगे। कल्पना कीजिए ! पाँच करोड़ नहीं तो करोड़-पचास लाख भी नये लोगों ने अपने माथे पर तिलक लगाना और घरों पर भगवा ध्वज फहराना शुरू कर दिया तो बिहार कैसा दिखाई देने लगेगा! इस युवा बाबा के सामने हाथ जोड़े भाजपा के नेताओं की जो कतार लगी है, उसके पीछे की वजह यही है। यह भी खबर है कि अगले महीने धीरेंद्र शास्त्री अपना दिव्य दरबार गया में लगाएँगे और वहाँ भी पर्ची निकालेंगे। यानी भाजपा धीरेंद्र शास्त्री को आगे रखकर बिहार को फतह करने की दिशा में पूरी तैयारी के साथ उतर चुकी है।
हमारे समाज की बनावट विचित्र है। जाति व्यवस्था ने बहुत बड़ी आबादी को उपेक्षित, हेय और अछूत बना कर रखा है। दूसरी ओर इन उपेक्षितों में सुषुप्त अभिलाषा रहती है कि हम भी समाज में श्रेष्ठ माने जाने वाले द्विजों जैसा बन जाएं। हमें भी तिलक और जनेऊ धारण का अधिकार मिल जाए ताकि अपमान भरे जीवन से हमें छुटकारा मिल जाए।
समाज में एक दौर आया था जब उपेक्षितों ने समाज में श्रेष्ठ माने जाने वालों के जीवन का अनुकरण करना शुरू किया। दारू शराब छोड़ दिया। मांसाहार छोड़ कर शाकाहारी बनने लगे। बड़े लोगों की तरह अपने समाज में विधवाओं के पुनर्विवाह को बंद करने लगे। टीका और जनेऊ धारण करने लगे। उसके बाद तो जो हुआ उस पर आज यकीन करना कठिन होगा।
डा. लोहिया ने कहा है कि ‘जाति’ हमारे देश की सबसे बड़ी सच्चाई है।
लगभग सौ वर्ष पहले 1925 में लखीसराय के लाखोचक गाँव में जनेऊ धारण करने के सवाल पर भयंकर संघर्ष हुआ था। जनेऊ धारण करने वाली पिछड़ी जाति और उसका विरोध करने वाली अगड़ी जाति के बीच सैकड़ों राउंड गोली चली थी। कई लोग मारे गये थे। प्रसन्न चौधरी और श्रीकांत की किताब में वह घटना दर्ज है।
उमाशंकर शुक्ल चंपारण के रहने वाले थे। मार्क्सिस्ट कोऑर्डिनेशन कमिटी (एमसीसी) के नेता और विधान परिषद के सदस्य थे। उन्होंने एक किस्सा सुनाया था चंपारण का। उस इलाके में बड़े बड़े जमींदार थे। उनको स्टेट कहा जाता था। उन्हीं में से किसी स्टेट की घटना है। जमींदार को मालूम हुआ कि सोलखन लोग यानी पिछड़ी जाति के लोग का मन बढ़ गया है। ये लोग जनेऊ पहनकर द्विज बनने की गुस्ताखी कर रहे हैं। जमींदार ने उन लोगों को अपने हाता में बुलवाया। उसके बाद हाता का गेट बंद कर गर्म लोहे से दाग कर उनके शरीर पर जनेऊ बना दिया गया।
लेखक प्रेम कुमार मणि ने भी कभी एक किस्सा सुनाया था। याद नहीं है कि वह उनकी आपबीती थी या किसी अन्य की घटना उन्होंने सुनाई थी। माथे पर तिलक लगाने के जुर्म में गिट्टी से रगड़ कर माथे का तिलक मिटाया गया था।
आज धीरेंद्र शास्त्री उर्फ बागेश्वर धाम के बाबा माथे पर तिलक और घर पर भगवा ध्वज फहराने के लिए हाथ उठवाने का संकल्प करवा रहे हैं। देश को हिंदू देश बनाने का संकल्प घोषित कर रहे हैं। क्या हिंदू समाज में जातिगत विषमता समाप्त हो गई है ! छुआ-छूत और ऊँच-नीच का भेद समाप्त हो गया है ! बागेश्वर धाम के तथाकथित बाबा के मंच पर कौन लोग हैं! उनकी गाड़ी में उनके साथ कौन लोग बैठते हैं ! उनके मंच पर उनके साथ आरती में कौन लोग शामिल थे। रामकृपाल को छोड़कर, दलित को कौन कहे एक भी पिछड़ा नहीं था। रामकृपाल का मंच पर रहना उनकी चुनावी मजबूरी थी। आयोजन उनके चुनावी क्षेत्र में था।
हमारे देश के द्विज समाज का हाल क्या है ! जाति के सवाल पर क्या उसमें उदारता के लक्षण दिखाई दे रहे हैं? तथ्य तो बिलकुल उलट है।
पिछले 11 अप्रैल को डीएमके के सांसद तिरुची शिवा के एक सवाल के जवाब में केंद्रीय शिक्षा राज्यमंत्री ने राज्यसभा में बताया कि वर्ष 2018 तथा 2023 के बीच 6,901 अन्य पिछड़ा वर्ग, 3,596 अनुसूचित जाति और 3,949 अनुसूचित जनजाति के छात्र केंद्रीय विश्वविद्यालयों से ड्रॉप आउट हो गए थे। इसी तरह 2,544 ओबीसी, 1,362 एससी और 538 एसटी छात्र आईआईटी से बाहर हो गए। इसके अलावा 133 ओबीसी, 143 एससी और 90 एसटी छात्रों ने आईआईएम की पढ़ाई छोड़ दी।
वंचित तबके के छात्रों द्वारा ऐसे प्रतिष्ठित संस्थानों को छोड़ने के पीछे भेदभाव, कठिन पाठ्यक्रम और कठिन प्रतिस्पर्धा प्रमुख कारण बताया गया है। हाल ही आईआईटी मुम्बई के एक छात्र ने आत्महत्या कर ली। जाति के आधार पर की जा रही मानसिक यंत्रणा को वह बर्दाश्त नहीं कर पाया और उसने आत्महत्या कर ली। उन संस्थानों के शिक्षक भी उन श्रेणियों के विद्यार्थियों को नम्बर देने में जानबूझकर अनुदारता बरतते हैं। इन शिक्षण संस्थाओं में आरक्षित श्रेणी के शिक्षकों की नियुक्ति जल्दी नहीं होती। उनके स्थान रिक्त रह जाते हैं। ऐसी हालत में वंचित तबके के छात्रों को मानसिक सपोर्ट या सहारा पाने की गुंजाइश भी नहीं रहती है।
देश आजादी का अमृतकाल मना रहा है। देश में संवैधानिक शासन कायम है। इसके बावजूद वंचित तबके के छात्र उपेक्षा, अपमान और मानसिक यंत्रणा नहीं झेल पाने की वजह से आत्महत्या करने को मजबूर हैं। हिंदू समाज की जाति व्यवस्था कहाँ कहाँ और किस किस स्तर पर अपना खेल खेल रही है इसकी व्यापक पड़ताल हो तो उसके आश्चर्यजनक परिणाम आएंगे।
बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्री जिस भूमि पर अपना दिव्य दरबार लगा रहे थे वह भूमि स्वामी सहजानन्द सरस्वती की कर्मभूमि है। स्वामी जी अपने समय में देश में किसानों के सबसे बड़े नेता थे। जोतदारों के हक में जमींदारों के खिलाफ उन्होंने संघर्ष किया था। अपनी ही जाति के जमींदारों के विरुद्ध संघर्ष में उन्होंने रंचमात्र भी परहेज नहीं किया। वे किसानों की हालत को बदलना चाहते थे। इसके लिए वे उनके साथ संघर्ष के मैदान में थे। उन्हीं स्वामी जी की जमीन पर धीरेंद्र शास्त्री गरीबों को संदेश दे रहे थे “जाही विधि राखे राम, ताही विधि रहिए”। ज्यादा बेचैनी मत दिखाइए। यह विडंबना नहीं तो क्या है !
धीरेंद्र शास्त्री और मंच पर उनके साथ आरती करते हुए सभी माननीय देश को हिंदू राष्ट्र में परिवर्तित करना चाहते हैं। आज जब देश में संविधान है। हमारा संविधान नागरिकों के बीच किसी प्रकार के भेदभाव की इजाजत नहीं देता है। इसके बावजूद हर क्षेत्र में भेदभाव है। भेदभाव के कई प्रकार हैं। अगर संविधान को मिटाकर देश को हिंदू राष्ट्र में रूपांतरित कर दिया गया तो वंचित समाज के लोगों की स्थिति गुलामों से भी बदतर होगी।