यमुना जो कभी दिल्ली में नदी थी, फिर नाला बनी, और अब बर्बादी का सबब !

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— प्रोफेसर राजकुमार जैन —

मैं दिल्ली शहर का बाशिंदा हूं। यमुना नदी के किनारे बसे मेरे शहर में कभी यमुना लालकिले की पिछली दीवार को छूती हुई, कल कल करती हुई बहती थी। परंतु इंसानी भूख और शैतानियत के कारण कोसों दूर उसको धकेल दिया गया। आज वही नदी अपनी पुरानी हद में हर तरह की बंदिशों को तोड़ती, उफनती हुई अपनी पुरानी जगहों पर आ गई है।

बचपन में मोहल्ले की बुजुर्ग महिलाएं हाथ में ठाकुर जी की डलिया लिये, भोर में जमुना जी में स्नान ध्यान करने के लिए निकल पड़ती थीं।

उस जमाने में गिनती के ही रईस साहिबजादे स्विमिंग पूल मैं तैरना सीखते थे, परंतु शहर में कई तैराक संघ थे जो गुरु शिष्य परंपरा में तैरना सिखाते थे। सुबह-सुबह खलीफा गौरीशंकर रोहतगी जो जुगला सिंह तैराक संघ के खलीफा थे, उनकी कड़क आवाज सुनने को मिलती थी, अरे लड़कों जमुना जी चलने का वक्त हो गया है। शहर के सैकड़ों नौजवानों को जमुना नदी में तैराकी सिखाने के लिए एक नायाब तरीका था। जमुना जी के लोहे के पुल से सीखने वालों को जमुना में गिरा दिया जाता था, नीचे खलीफा जी के चार पांच शागिर्द उसकी घेराबंदी कर लेते थे। फिर खलीफा जी की आवाज कड़कती थी, साइकिल चला, हाथ सामने कर पानी को काट, पैरों को ऊपर नीचे कर, इस तरह के जुमले सुनाई देते थे। इस तरह से शहर के नौजवानों को यमुना जी में तैराकी सिखाई जाती थी। साल के आखिर में तैराकी का मेला होता था। नए-नए करतब दिखाये जाते थे। खलीफा गौरीशंकर अपनी एक खास कला का प्रदर्शन करते थे। पानी पर पीठ के बल लेट कर एक हाथ में खुली छतरी को पकड़े रहते थे। जमुना जी के घाट पर कई तैराक संघ के दफ्तर थे। अफसोस, आज जमुना नदी नहीं नाला बन गई।

शहर में किसी की मौत के बाद जो शवयात्रा निकलती थी, उसमें नारा लगता रहता था, ‘राम नाम सत्य है, सत्य बोलो गत है’ “हरि का नाम सत्य है, सत्य बोलो गत है” आवाज सुनकर मोहल्ले के लोग अपना अंगोछा कंधे पर डालकर भागते हुए उसमें शामिल हो जाते थे। मोहलेदारी के साथ-साथ जमुना जी में भी डुबकी लगा लेते थे। शव को चिता पर ले जाने से पहले नदी में स्नान कराकर पवित्र किया जाता था परंतु जब यमुना नदी नाला बन गई। नदी में अंदर जाने से लोग परहेज करते थे। परंतु भला हो दिल्ली के भूतपूर्व मुख्यमंत्री मदनलाल खुराना का, जिन्होंने पूर्वी दिल्ली के गंगा जी के जल की एक लाइन बिछवा कर दिल्ली नगर निगम के श्मशान घाट पर पहुंचाई। तथा साथ ही यमुना के पीने के पानी की भी लाइन उसमें जुड़वा दी। गंगा जमुना के संयुक्त साफ पानी से मुर्दों को नहलाने का बंदोबस्त हो गया। परंतु आज आप जमुना के किनारे बिना रुमाल नाक पर लगाए खड़े नहीं रह सकते। जो आस्था, मनोरंजन का केंद्र था, आज वह गंदगी और बदबू का स्थल बन गया। कुदरत के साथ खिलवाड़ करने वाली इंसान की भूख से पैदा हुई, तबाही का मंजर अब सामने आ रहा है।

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