
— प्रो राजकुमार जैन —
‘आजकल’ चैनल का कैमरा लगातार मेवात की पहाड़ियों पर फोकस कर रहा था। पहाड़ी पर डरे सहमे ग्रामवासी पहाड़ के पत्थरों पर खुले आसमान के नीचे जमीन पर या घर से ले गए फोल्डिंग पलंग पर मुंह ढके हुए लेटे बैठे हुए थे। घर की महिलाएं पानी की बाल्टी और हाथ में खाने के लिए सामान पहुंचा रही थीं।
ये वही मेवात के पुश्तैनी वंशजों की संतान हैं, जिन्होंने अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति से लेकर 1947 में ब्रितानिया हुकूमत के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। हिंदुस्तान पाकिस्तान की तक्सीम के वक्त महात्मा गांधी की बात को मानकर अपने वतन में ही रहने का फैसला किया था। अपने ही वतन, अपने ही घर, अपने ही खेत खलिहान में फसादी जहनियत की खुलेआम कत्लेआम, हल्लाबोल कार्रवाई से बेगाने और लाचार हालत में दिखाई दे रहे हैं।
हिंदू और मुसलमान दोनों मजहबों में दयानत, अमन चैन, भाईचारे खासतौर से ग्रामीण अंचल में माहौल होता है, उसको तबाह बर्बाद करने पर कौन आमादा है? खून हिंदू या मुसलमान किसी का भी बहे वोट के सौदागर को कोई फर्क नहीं पड़ता। अभी मणिपुर के कत्लेआम का खून सूखा भी नहीं है। इससे राहत का एक ही रास्ता बचा है भाजपा हटाओ देश बचाओ।
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