मोदी विपक्ष मुक्त भारत बनाना चाहते हैं

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— गोपाल राठी —

जिन्होंने अविश्वास प्रस्ताव पर संसद में हुई बहस देखी है उन्हें बहस देखकर सुनकर निराशा हुई। संसद में सरकार को घेरने के लिए विपक्ष की पर्याप्त तैयारी और समन्वय नहीं दिखा। प्रधानमंत्री सहित सत्तापक्ष के सभी वक्ताओं ने मणिपुर में चल रहे गृहयुद्ध जैसे हालात से ध्यान भटकाने के लिए अनर्गल और असंदर्भित बातें कहीं। कुल मिलाकर अविश्वास प्रस्ताव की सारी कवायद व्यर्थ गई। मोदी जी का पूरा भाषण आने वाले चुनावों को ध्यान में रखकर नैरेटिव सेट करने के लिए दिया गया प्रतीत हो रहा था, उसमें विपक्ष के सवालों का कोई उत्तर नहीं बल्कि उनके बहुमत का अहंकार झलक रहा था।

जिन्होंने अविश्वास प्रस्ताव पर हुई पूर्व में हुई बहस सुनी है उन्हें याद होगा कि पक्ष विपक्ष में जार्ज फर्नांडिस, चंद्रशेखर, सुषमा स्वराज, प्रमोद महाजन, नीतीश कुमार, लालू यादव, अटल जी आदि वक्ता जब बोलते थे तब पूरा सदन उनके तर्कों को ध्यान से सुनता था। अभी ऐसा ही एक वीडियो देखने में आया जिसमें अटल सरकार के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर लालू यादव बोलते हुए दिखाई दे रहे हैं। लालू अपने अंदाज में अटल सरकार पर हमले कर रहे हैं कटाक्ष कर रहे हैं। उनके कटाक्ष पर अटल जी समेत पूरा सदन ठहाका लगा रहा है। तमाम विरोधाभास के बावजूद पक्ष विपक्ष में सौजन्य और शिष्टाचार बना हुआ था लेकिन मोदी के आने के बाद सब खत्म हो गया क्योंकि मोदी को विपक्ष पसंद ही नहीं है। वे विपक्ष मुक्त भारत बनाना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि विपक्ष हो तो नवीन पटनायक जैसा हो जो अपने प्रदेश में तो भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ता है लेकिन केंद्र में सरकार का सहयोगी बन जाता है। उस समय के वक्ताओं के स्तरीय भाषण सुनने वालों को अभी हाल ही में हुई बहस निरर्थक और बकवास लगेगी ही।

संसदीय लोकतंत्र में पक्ष विपक्ष एक दूसरे के दुश्मन नहीं बल्कि एक दूसरे के पूरक हैं। विरोध अवरोध हमेशा रहा है लेकिन सत्ता और विपक्ष में दुश्मनी का ऐसा भाव पहले कभी नहीं देखा गया। मोदी जी का पूरा भाषण सदन को विपक्ष मुक्त बनाने के लिए और विपक्ष को बदनाम करने के लिए होता है। प्रचंड बहुमत वाली सरकार को विपक्ष की एकता नागवार लगती है। सत्तापक्ष के मन में विपक्ष और उनके नेताओं के प्रति छिपी घृणा छिपाए नहीं छिप रही थी।

संसद में प्रधानमंत्री का पूरा वक्तव्य सुनकर ऐसा लग रहा था कि अविश्वास प्रस्ताव सरकार के खिलाफ नहीं कांग्रेस के खिलाफ लाया गया है और मोदी जी विपक्ष के नेता की हैसियत से बोल रहे हैं। हम चाहते थे कि प्रधानमंत्री इन बिंदुओं पर अपने विचार रखें जिसके लिए अविश्वास प्रस्ताव लाया गया है। लेकिन उनका वक्तव्य मूल मुद्दे से बहुत दूर था। उन्होंने सब कुछ बताया पर यह नहीं बताया कि मणिपुर में तीन महीने से विकट हिंसा चल रही है। दोनों पक्षों के पास अत्याधुनिक घातक हथियार हैं। मणिपुर में अब तक 160 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं। सैकड़ों मंदिर, चर्च जला दिए गए, नष्ट कर दिए गए। हजारों मकान जला दिए गए, करीब एक लाख लोग राहत शिविरों में रह रहे हैं। तीन महीने तक केंद्र औऱ राज्य सरकारें क्या करती रहीं? दंगाइयों के पास अत्याधुनिक हथियार कैसे पहुंचे?

इतना सब होते हुए प्रधानमंत्री ने एक बार भी न शांति की अपील की और न मृतकों के प्रति संवेदना व्यक्त की। निकम्मी राज्य सरकार को बर्खास्त नहीं किया। प्रधानमंत्री मणिपुर जाने का समय नहीं निकाल पाए जबकि इस बीच उन्होंने अमेरिका, फ्रांस, आस्ट्रेलिया की यात्रा की, इस अवधि में उन्होंने कर्नाटक चुनावों में दर्जनों सभा रैली और रोड शो किए। इस अवधि में ही वे देश के अलग अलग हिस्सों में ट्रेन को हरी झंडी दिखाने गए। लेकिन मणिपुर नहीं गए, आखिर क्यों?

प्रधानमंत्री ने अपने भाषण के अंत में कहा कि देश मणिपुर के साथ है। लेकिन हे भारत भाग्य विधाता आप तीन महीने चुप क्यों रहे? मूक दर्शक बनकर मणिपुर का भयंकर मंजर क्यों देखते रहे? मणिपुर जैसे संवेदनशील मसले पर बोलते हुए प्रधानमंत्री हॅंस हॅंस कर विपक्ष पर प्रहार करते रहे, पूर्व सरकारों को कोसते रहे। प्रचंड बहुमत के नशे में चूर दिखे। प्रधानमंत्री के वक्तव्य और भाव भंगिमा में जो गंभीरता होनी चाहिए थी वो कहीं नहीं दिखी।

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