— रामशरण —
आगामी 30 अगस्त को भागलपुर में शारदा, शोभा और पूनम श्रीवास्तव की संस्था राखी महोत्सव का आयोजन करने जा रही है। इन लोगों की माँ 1974 के आन्दोलन में काफी सक्रिय थीं। शारदा श्रीवास्तव वकालत पास हैं, पर आंखों से लाचार हैं।
करीब 20 वर्ष पूर्व 2003 में संघर्ष वाहिनी से जुड़े रहे जाहिद भाई ने उन्हें सामूहिक रूप से रक्षाबंधन का त्योहार आयोजित करने का सुझाव दिया था। 1989 के भयंकर दंगे के दुष्प्रभाव को कम करने में इस आयोजन ने बहुत मदद की है।
समाज परिवर्तन के तीन मूल्यों “स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व” में सबसे ज्यादा उपेक्षा बंधुत्व की ही की जाती है। जबकि तीनों एक दूसरे के पूरक हैं। इसके बिना स्वतंत्रता या समानता को समाज में सही ढंग से लागू नहीं किया जा सकता। बंधुत्व का स्रोत प्रेम है जो बुद्ध और कबीर से मिलता है। सर्वे भवन्तु सुखिनः भी प्रेम पर आधारित है। प्रेम ही वह ईंधन है जो अच्छाई की प्रेरणा है। हमें समाज परिवर्तन के लिए प्रेरित करता है। इसीलिए संपूर्ण क्रांति के विचार में इसका केंद्रीय महत्त्व है।
रक्षाबंधन का कुछ महिलाओं और प्रगतिशील लोगों द्वारा विरोध किया जाता है। यह जिस घटना पर आधारित बताया जाता है, उसमें महिला कहीं नहीं है न ब्राह्मण। एक ओर अत्यंत शक्तिशाली अनार्य राजा है और दूसरी ओर आर्यों का प्रतिनिधि एक अत्यंत बुद्धिमान वामन (नाटा) व्यक्ति, जो दुनिया की पहली सम्मानजनक सैन्य संधि करवाता है। यह घटना वास्तव में हुई थी या नहीं, कहना कठिन है। संभव है यह कहानी आर्यों के साथ भारत में आयी हो। मेसोपोटामिया की सभ्यता के दौरान मिस्र के महानतम फराओ रामासेस द्वितीय ने हित्तियों से एक समझौता किया था जिसका प्रमाण मिलता है। हित्ती और मित्ती सभ्यताएं वहीं बसती थीं जहाँ से आर्य भारत में आए। संभव है मत्स्यावतार के नूह की नाव की तरह यह कहानी वहीं से आयी हो।
कहानी का महत्त्व यह है कि समाज में संपन्न लोगों को कमजोरों की सुरक्षा का आश्वासन भाई-बहन की तरह प्रेमवश बिना किसी लालच के देना चाहिए। जाहिद भाई के मन में यह विचार इसलिए उपजा कि हिंदू लड़कियों को दंगाग्रस्त रहे क्षेत्र से होकर विश्वविद्यालय परिसर में जाना पड़ता था। आज तो महिलाएं हर जगह असुरक्षित महसूस करती हैं। प्रमाण देने के बावजूद कार्रवाई नहीं होती है। ऐसी घटनाएं तभी कम होंगी जब पुरुष वर्ग अपनी जिम्मेदारी समझेगा।
समाज में जो भी वर्ग कमजोर है उसे संपन्न वर्ग से बिना किसी लालच के प्रेमवश सुरक्षा मिलनी चाहिए। तभी बंधुत्व के मूल्य की स्थापना संभव है। हर जगह कानून काम नहीं आ सकता। इसीलिए भागलपुर के रक्षाबंधन त्योहार में महिला पुरुष ही नहीं, दलित और सवर्ण, अमीर और गरीब, हिन्दू और मुसलमान सभी एक दूसरे को राखी बांधते हैं। हम लोग चाहते हैं कि यह परंपरा देश के अन्य हिस्सों में भी फैले।