सरकार की बेरुखी से विलुप्ति के कगार पर सरेंजा का कांस्य उद्योग

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14 सितंबर। नागरिक समन्वय समिति के बैनर तले चल रही गंगा तट पंचायत पदयात्रा चौसा प्रखंड के सरेंजा गांव की समस्या से रूबरू होने संयोजिका कुमकुम राज के नेतृत्व में पहुंची। सरेंजा की पहचान एक समय कांस्य उद्योग के गढ़ के रूप में थी। सरेंजा का कांस्य उद्योग आज सरकार की उदासीनता का शिकार हो रहा है। एक समय में सैकड़ों परिवारों का पेट भरने वाला यह उद्योग अब विलुप्ति के कगार पर पहुंच गया है। सरेंजा के बने कांस्य के बर्तन की धूम बिहार ही नहीं, उत्तरप्रदेश और झारखंड के बाजारों में भी रहती थी।

यहां के ढाले गए परात और थाली शादी-ब्याह के साथ ही पूजा-अर्चना की शोभा बढ़ाया करते थे। आपूर्ति मांग को पूरा करने के लिए कुशल कारीगर दिन रात एक किए रहते थे। लेकिन यह अब बीते दिनों की बात है। पहले तकरीबन 20 कारोबारी कांस्य के थाली निर्माण से जुड़े हुए थे; आज के दिन यह संख्या सिमटकर आश्चर्यजनक रूप से 1 हो गई है।

कभी कांस्य बर्तनों की खनखानाहट से गुलजार रहने वाला सरेंजा बाजार अब धीरे धीरे इस उद्योग से दूर जाने को विवश है। यात्रा की संयोजिका कुमकुम राज सरेंजा की पहचान से जुड़े उद्यमियों से मिलने जब सरेंजा पहुंचीं तो बहुत खोजने पर कुछ उद्यमी मिले।

कारोबारी प्रदीप कुमार से संयोजिका श्रीमती राज ने इस उद्योग के इस हालात को समझने की कोशिश की।आखिर क्यों यहां का लघु उद्योग आज बदहाली के आंसू रो रहा है। बकौल प्रदीप कुमार, “तीन पीढ़ी से मेरा परिवार इस उद्योग से जुड़ा रहा, हमारे दादा इस कार्य के निपुण कारीगर थे, बचपन से ही मैंने कांस्य के बर्तन निर्माण की बारीकियों को समझना शुरू कर दिया था।
लेकिन नई पीढ़ी इस उद्योग में रुचि नहीं दिखा रही है। इसकी मुख्य वजह कांस्य के बर्तनों की घटती मांग के साथ, सस्ते स्टील के बर्तनों से बाजार का पट जाना, कांस्य के बर्तन निर्माण के लागत मूल्य की तुलना में विक्रय मूल्य का कम बढ़ना, जीवन शैली में बदलाव, इस काम का बहुत मेहनतकश होना और इन सबसे बढ़कर सरकार की घोर उदासीनता रही। सरकार ने इस उद्योग में फिर से जान फूंकने का कभी ईमानदारी से प्रयास किया ही नहीं।”

संयोजिका कुमकुम राज से अपना दर्द साझा करते हुए कारोबारियों ने बताया कि अब कुशल कारीगर खोजे से भी नहीं मिल रहे; वजह है इस काम में जी तोड़ मेहनत लगना। इस उद्योग में काम करने के लिए शारीरिक रूप से बहुत मजबूती की आवश्यकता होती है, आग के थपेड़े सहने पड़ते हैं, काम करते-करते हाथ की लकीरों का वजूद मिट जाता है। कारीगरों के बच्चे भी इस उद्योग में आने से कतराने लगे है।

संयोजिका श्रीमती राज ने कारोबारियों की इस उद्योग से बेरुखी की अन्य वजहें जानने की भी कोशिश की।बातचीत के क्रम यह छन कर आया कि मुनाफे का मार्जिन का तेजी से घटने के साथ ही सरकार का इस उद्योग को स्थानीय, राष्ट्रीय और वैश्विक बाजार मुहैया न कराना भी इस उद्योग की बदहाली का कारण बना।संयोजिका ने सरकार की बेरुखी को कठघरे में खड़ा किया और कहा कि उद्योग विभाग के साथ ही बिहार सरकार के अन्य विभागों को आगे आकर सरेंजा के विलुप्त होते कांस्य बर्तन उद्योग को पुनर्जीवित करने की हरसंभव कोशिश करनी चाहिए।

बाजार में बढ़ रही प्रतिस्पर्धा के बीच इस उद्योग के बचे हुए कारोबारी अपनी रणनीति बदलने को विवश हैं। थाली और परात की मांग कम होने की आंच से जब सरेंजा का यह लघु उद्योग झुलसने लगा तो कारोबारियों ने कांस्य के बने हुए गिलास, कटोरा और लोटा की ओर ध्यान देना शुरू कर दिया।

हालांकि सभी व्यवसायियों के लिए ऐसा कर पाना संभव नहीं हुआ। चूंकि पहले थाली और परात कारीगर अपने हाथों से ही बना लेते थे लेकिन इन नए बरतनों के निर्माण में आधुनिक मशीनों की जरूरत पड़ती थी। ये मशीन बिजली से चलने वाली महंगी जान पड़ती थीं। अधिकांश कारोबारी पूंजीगत रूप से इतने सक्षम नहीं थे कि बड़ी पूंजी का इंतजाम कर सकें। सरकार से वित्तीय सहयोग के अभाव में इन कारोबारियों ने अब दूसरे व्यवसायों की ओर रुख करने में ही अपनी भलाई समझी। फलस्वरूप आज यह उद्योग विलुप्ति के कगार पर पहुंच गया है।

श्रीमती राज ने इस उद्योग को पुनर्जीवित करने आवश्यकता बताई और कहा कि कांस्य उद्योग में आज भी वो शक्ति है कि ये सैकड़ों परिवारों के जीविकोपार्जन का माध्यम बन सकता है। साथ ही सरकार से कांस्य उद्योग में आई नई तकनीकियों से कारीगरों को लैस करने हेतु एक सेंटर ऑफ एक्सीलेंस के निर्माण की मांग की।कांस्य उद्योग की विभिन्न संभावनाओं की ओर इंगित करते हुए संयोजिका ने जोर देते हुआ कहा कि आज लोग फिर से पुरानी परंपरा और जीवन शैली को अपनाने की तरफ मुड़ रहे है, कांस्य के बर्तनों पर बहुत करीने की हस्तकारीगरी अभी राष्ट्रीय और वैश्विक बाजार की बड़ी मांग है, इस उद्योग से जुड़े हुए सारे पक्षकारों को आगे आकर इस उद्योग की बेहतरी के लिए यथासंभव करने की आवश्यकता है। जनप्रतिनिधियों को भी अपनी चुप्पी तोड़ इस लघु उद्योग को बचाने के लिए आवाज बुलंद करनी चाहिए ताकि इस रोजगार के लोगों को दूसरे प्रदेश में प्रवास करने की नौबत नहीं आए। ग्राम सभा को दी हुई शक्तियां में लघु और कुटीर उद्योग का संरक्षण और उत्थान भी निहित है। एक विशेष ग्राम सभा आयोजित कराकर जीर्ण-शीर्ण दशा से गुजर रहे कांस्य उद्योग के पुनरुत्थान का संकल्प बहुमत से पारित कराकर इस उद्योग को मजबूती प्रदान की जा सकती है।


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