— ध्रुव शुक्ल —
कई रूप हैं, कई नाम हैं
कई लोग हैं, कई काम हैं
भरे हुए हैं कितने रंग-ढंग
कई पते हैं, कई धाम हैं
कई शब्द हैं, कई अर्थ हैं
कई सार्थक, कई व्यर्थ हैं
बांधें आशा को भाषा में
आशा में कितने अनर्थ हैं
कई धरम हैं ,कई करम हैं
कई मनन हैं, कई मरम हैं
पता नहीं है परम सत्य का
जग में फैले कई भरम हैं
कई जन्म हैं, कई मरण हैं
कई वरण हैं, कई चरण हैं
कैसे ख़ुद को छोड़ बतायें
कहाॅं शरण है, कहाॅं शरण है
कई तरह की हैं कविताएं
कई तरह से उनको गायें
रह जाती हैं रोज़ अकेली
जीवन की सारी उपमाएं