— दीपक ठाकुर नंदवंशी —
“मुख्यमंत्री, रहते हुए भी “पुत्र” को नौकरी देने से किया इनकार, कहा, “मैं मुख्यमंत्री हूं, किसी व्यक्ति का नहीं, बल्कि पूरे बिहार का!
यह किस्सा उनकी ईमानदारी का सबसे बड़ा प्रमाण माना जाता है। जब कर्पूरी ठाकुर जी बिहार के मुख्यमंत्री थे, उनके बेटे को सरकारी नौकरी की तलाश थी। उन्होने जब अपने पिता से नौकरी के लिए सिफारिश करने का अनुरोध किया। इस पर कर्पूरी जी ने साफ मना कर दिया और कहा, “मैं मुख्यमंत्री हूँ, किसी व्यक्ति का नहीं, बल्कि पूरे बिहार का। अगर मैं तुम्हें नौकरी दिला दूँगा तो यह उन हजारों बेरोजगार नौजवानों के साथ अन्याय होगा जो अपनी योग्यता के बल पर नौकरी पाना चाहते हैं। तुम्हें भी दूसरों की तरह परीक्षा देनी होगी।” इसके बाद उनके बेटे को अपनी योग्यता पर ही नौकरी मिली!
2. मुख्यमंत्री बनने के बाद भी साधारण जीवन
जब कर्पूरी ठाकुर पहली बार मुख्यमंत्री बने, तब भी उनका जीवन बिलकुल साधारण था। उनके पास न तो कोई आलीशान घर था और न ही कोई संपत्ति। वे पटना में सरकारी आवास में रहते थे, लेकिन उनका परिवार गाँव में ही रहता था। एक बार, उनका बेटा पटना आ रहा था तो लोगों ने उनसे पूछा कि क्या वह सरकारी गाड़ी से आएगा। कर्पूरी जी ने कहा कि वह बस से ही आएगा, क्योंकि वह भी एक आम नागरिक है!
3. अंतिम समय में भी कोई निजी संपत्ति नहीं
कर्पूरी ठाकुर जी का जीवन इतना सादगीपूर्ण था कि जब उनका निधन हुआ, तब उनके पास कोई निजी संपत्ति नहीं थी। उनके परिवार के पास अंतिम संस्कार के लिए भी पर्याप्त पैसे नहीं थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को इस बात की जानकारी मिली तो उन्होंने सरकारी खर्च पर उनके अंतिम संस्कार की व्यवस्था करवाई। इससे पता चलता है कि उन्होंने अपने पूरे जीवन में पद का इस्तेमाल निजी लाभ के लिए कभी नहीं किया!
4. बहन की सिफारिश ठुकराना
एक बार उनकी बहन ने उनसे अपने दामाद का तबादला करवाने की गुजारिश की। उस समय कर्पूरी ठाकुर जी मुख्यमंत्री थे और तबादला करवाना उनके लिए बहुत आसान था। लेकिन उन्होंने अपनी बहन से कहा, “मैं जनसेवक हूँ, किसी परिवार विशेष का नहीं। अगर मैं तुम्हारे दामाद का तबादला कर दूँगा, तो यह पद का दुरुपयोग होगा और यह उन लोगों के साथ अन्याय होगा जो अपनी जगह पर सालों से ईमानदारी से काम कर रहे हैं।” उनकी बहन को उनका निर्णय स्वीकार करना पड़ा!
ये किस्से दर्शाते हैं कि जननायक कर्पूरी ठाकुर जी ने सिद्धांतों और नैतिकता के लिए पद और परिवार, दोनों को पीछे रखा। यही कारण है कि उन्हें आज भी “जननायक” के रूप में याद किया जाता है!
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