मोदी पर भरोसा करके बर्बाद हुए में इस दौर के दो बड़े नाम !

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Sonam Wangchuk

प्रोफेसर जीडी अग्रवाल उर्फ मुनी सानंद और थ्री इडियट फेम सोनम वांगचुक

आइए देखते हैं दोनों केस,

पहला केस
गंगा की रक्षा में शहादत: स्वामी सानंद और मोदी सरकार का विवादित अध्याय, एक वैज्ञानिक, जिसने प्रधानमंत्री मोदी पर बेटे जैसा भरोसा किया, उसी सरकार की नीतियों और चुप्पी के कारण अनसुना रह गया।

गंगा सिर्फ एक नदी नहीं बल्कि भारतीय उपमहाद्वीप की सभ्यता और जीवन का प्रतीक है। इसके अस्तित्व और अविरल प्रवाह को बचाने के लिए प्रो. जी.डी. अग्रवाल (स्वामी सानंद) ने 2018 में 111 दिनों का अनशन किया। उनकी अस्वाभाविक और संदिग्ध मौत ने पर्यावरण संरक्षण के आंदोलनों में सरकार पर अंधविश्वास के जवाब में सरकारी संवेदनशीलता पर गंभीर सवाल खड़े किए।

स्वामी सानंद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर व्यक्तिगत रूप से विश्वास करते थे। उन्हें अपने बेटे के रूप में मानते थे। 2014 में मोदी ने गंगा को “माँ” और खुद को “गंगा पुत्र” कहा।

गंगा को बचाने के लिए प्रोफेसर अग्रवाल ने मोदी को कई पत्र लिखे। उनके आख़िरी पत्र में लिखा: “तुम मेरे बेटे हो। मैंने गंगा की रक्षा के लिए अपना जीवन समर्पित किया है। यह सरकार की जिम्मेदारी है कि गंगा की अविरलता और निर्मलता सुनिश्चित करे। अगर तुमने यह नहीं किया, तो मेरा जीवन व्यर्थ चला जाएगा।”

वो अपनी मांगों के लिए अनशन करने पर अडिग थे उन्होंने 22 जून 2018: हरिद्वार में अनशन शुरू किया। उनकी मांगें थीं कि
1. गंगा की मुख्यधारा पर सभी नए बांध और जलविद्युत परियोजनाएं रोकी जाएँ।
2. गंगा को अविरल और निर्मल बनाने के लिए कानून और स्वतंत्र गंगा परिषद बनाए जाएँ।

मुनी जी प्रारंभ में केवल पानी और शहद पर जीवित रहे, बाद में जल ग्रहण भी बंद। मोदी सरकार की ओर से आश्वासन दिए गए, लेकिन ठोस कदम नहीं उठाए गए।

10 अक्टूबर 2018: पुलिस और प्रशासन ने उन्हें हरिद्वार से जबरन AIIMS, ऋषिकेश में भर्ती कराया।

जबकि उन्होंने साफ साफ कहा था कि किसी भी हालत में उनका जबरन इलाज न दिया जाए।

11 अक्टूबर 2018 को अस्पताल प्रशासन ने बताया कि अनशन के 111वें दिन उनकी हृदयगति रुकने (Cardiac Arrest) से मृत्यु हो गई, तब तक उनके अनशन को 111 दिन हो गए थे, यानि की मोदी जी तीन महीने तक प्रोफेसर अग्रवाल को देखते रहे।

इस संदिग्ध हालात में आरोप लगने थे
1. मांगें क्यों नहीं मानी गईं? – गंगा की अविरलता को रोकने के लिए ठोस कदम नहीं उठाए।
2. जबरन इलाज क्यों? – उनकी इच्छा की अनदेखी।
3. मोदी की चुप्पी – प्रधानमंत्री ने सार्वजनिक संवेदना नहीं दिखाई।
4. कॉरपोरेट हित – बांध और परियोजनाओं को प्रभावित करने के लिए उनकी मांगें अनसुनी।

स्वामी सानंद की मौत ने गंगा संरक्षण आंदोलन को भले ही मजबूती दी हो लेकिन यह भी बताया कि संघ की सरकारें भरोसे वाली नहीं होती ख़ासकर मोदी तो बिल्कुल नहीं। उनकी मांगें अधूरी हैं, गंगा पर बांध बन रहे हैं और प्रदूषण जस का तस है। उनकी मौत केवल स्वास्थ्यजनित नहीं, बल्कि समर्थकों के अनुसार सरकारी साज़िश और लापरवाही का परिणाम थी।

सोनम वांगचुक की कहानी भी जीडी अग्रवाल सरीखी बनने की तरफ है हफीज़ क़िदवई Hafeez Kidwai की पोस्ट देखिए;

आज इन्हें एहसास हो रहा होगा कि केंद्र में अब यूपीए सरकार नही है । वह यूपीए हुक़ूमत,जिसने इन सभी को विरोध करने की छूट दी । दिल्ली के दिल में मूंग दरने को बर्दाश्त किया । अब वह हुक़ूमत नही है । अब सोनम वांगचुक को एनडीए का सामना करना है । वह भी ऐसा एनडीए,जिसमें सिर्फ एक आदमी की उंगली के इशारे पर सब कुछ तहस नहस होता है ।

मुझे इनके लिए दुःख है मगर यही थे,जो एक समय इसी एनडीए की आंख का तारा बने हुए थे । उसके हर फैसले पर झूम रहे थे । अब जब लपटें खुद के दरवाज़े आई, तो चीख उठे । इसीलिए कहा जाता है कि दूसरे के दुःख को अपना समझो,वरना वह दुःख एक रोज़ तुम्हारा भी हो जाएगा ।

लद्दाख को लेकर हमदर्दी है । हम लद्दाख के साथ खड़े हैं । सोनम वांगचुक को भी देखना होगा, ज़रा से फायदे के लिए वह किस हुक़ूमत के गुन गा रहे थे । सारा देश देखे की सोनम से ज़रा से विरोध से यह हुक़ूमत कैसे निपटती है । किसको किसको कुचला जाता है । इनपर सख्त पाबंदिया लग रही हैं । इनके विदेशी तारों को खंगाला जा रहा है । इन्हें लगता था कि जब कोई दूसरा परेशान किया जा रहा, तो यह बख़्श दिए जाएंगे मगर एक बात तय है, नम्बर सबका आएगा,क्योंकि उसे विरोध नही पसन्द ।

लद्दाख की अराजकता को हम नकारते है । किसी भी तरह की हिंसा के ख़िलाफ़ हैं मगर अपने लिए शांति-सद्भावना के साथ हक़ को मानना,हम उनका अधिकार भी समझते हैं । जो आज सोनम वांगचुक के दमन पर खामोश हैं, कल उनका भी नम्बर आएगा।

ज़िन्दगी में हर बार एक पल आता है, जब आपको ज़ालिम और मज़लूम चुनना पड़ता है । कल तक सोनम खुद ज़ालिम के साथ खड़े थे । आज हम उनकी मज़लूमियत को देखकर,उनके साथ है । इसपल सोनम और लद्दाख दोनों मज़लूम हैं ।

सुना है वांगचुक की बारीकी से जांच शुरू हो गई है उनकी संस्था का एफसीआरए रद्द कर दिया है इससे पहले उनकी दिल्ली तक की पदयात्रा को फेल करने की पूरी कोशिश की गई तुम।


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