19 सितंबर। संयुक्त किसान मोर्चा तीन कृषि कानूनों को किसान विरोधी बताता आ रहा है, वहीं सरकार इन कानूनों को किसानों के फायदे में बताते नहीं थकती। जमीनी अनुभव को देखें तो किसान संगठनों का ही अंदेशा सही साबित होता दिख रहा है। सरकार कहती रही है कि नए कानून के फलस्वरूप कृषि उपज मंडी समितियों पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। लेकिन हकीकत यह है कि मंडियों पर असर दिखना शुरू हो गया है। Patrika.com की एक खबर बताती है कि मध्यप्रदेश में 49 मंडियों का आमदनी जीरो पर पहुंच गयी है, वहीं 62 फीसदी मंडियों का हाल यह है कि कार्यरत कर्मचारियों का वेतन भी नहीं निकल पा रहा है। ऐसे में मंडी समितियों ने अनुदान के लिए राज्य सरकार को पत्र लिखा है।
मध्यप्रदेश में कुल 68 मंडियां थीं जिनमें से 9 का बड़ी मंडियों में विलय कर दिया गया है। 67 मंडियों ने पिछले साल की तुलना में 55 से 80 फीसदी आय हासिल की है, जबकि 143 मंडियों की आय 50 फीसदी से कम रही। ग्वालियर संभाग में 9, इंदौर संभाग में 8, जबलपुर संभाग में 6, सागर संभाग में 11 और रीवा संभाग में 13 कृषि उपज मंडियां घाटे में हैं। यह केंद्रीय कृषिमंत्री के गृह-राज्य की तस्वीर है। मंडियों का यही हाल रहा तो वे बंद हो सकती हैं। फिर जिन थोड़े-से किसानों को एमएसपी मिल जाती है उन्हें भी नहीं मिल पाएगी, क्योंकि एमएसपी पर फसल खरीद का नियम कृषि उपज मंडियों पर ही लागू होता है, प्राइवेट व्यापारियों पर नहीं।
Discover more from समता मार्ग
Subscribe to get the latest posts sent to your email.