— अजय खरे —
देश भर में हो रहे साइबर अपराध के चलते करोड़ों जमाकर्ताओं का बैंकों में रखा पैसा सुरक्षित नहीं कहा जा सकता है। इस बारे में बैंकों की जवाबदेही हर हाल में तय होनी चाहिए। सरकार को साइबर अपराधों को रोकने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए। अभी हाल में साइबर अपराध को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट की टिप्पणी काफी महत्त्वपूर्ण और बैंकों की जवाबदेही तय करनेवाली है। साइबर ठगी के एक मामले को लेकर आरोपियों की जमानत की अर्जी खारिज करते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि जमाकर्ता के पैसे की सुरक्षा करना बैंक की जिम्मेदारी है। बैंक में पैसा जमा करनेवाले लोग देश के प्रति ज्यादा ईमानदार हैं। उनका पैसा हर हाल में सुरक्षित रहना चाहिए। अदालत ने कहा कि गरीब ईमानदार आदमी अपना पैसा बैंक में रखता है। इससे देश की आर्थिक स्थिति मजबूत होती है।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय की टिप्पणी बैंकों के लिए एक तरह का दिशा-निर्देश है कि लोगों का जमा पैसा किसी भी हालत में डूबने न पाए। लोग बड़े भरोसे के साथ यह सोच कर बैंकों में अपना पैसा जमा करते हैं कि वह उन्हें कभी भी सही सलामत मिल जाएगा। खराब माहौल के चलते लोगों को घर में पैसा रखना सुरक्षित नहीं लगता था, उन्हें बैंकों पर भरोसा था जो अब साइबर ठगी के चलते टूट रहा है। भारत का आम आदमी किस तरह पेट काट कर बचत करता है, यह सभी जानते हैं। यदि बैंक में रखा हुआ पैसा डूबता है तो जमाकर्ता का वर्तमान और भविष्य दोनों चौपट हो जाएगा। सरकार जब तक बैंकों में रखे पैसे को पूरी तरह सुरक्षित होने की गारंटी नहीं लेती है तब तक जमाकर्ताओं को उसे बैंकों मे रखने के लिए कानूनन बाध्य नहीं किया जाना चाहिए।
अभी नियम यह है कि एक निश्चित नगद राशि ही आप अपने घर में रख सकते हैं। इसके चलते अधिक नगद राशि होने पर लोगों को मजबूरी में बैंकों में पैसा रखना पड़ता है। घर में पैसा रखने से चोरी-डकैती का डर है तो दूसरी तरफ बैंक में पैसा रखने पर आए दिन होनेवाले धोखाधड़ी के मामलों से पैसा सुरक्षित नहीं है। यह भारी विडंबना है कि सरकार का इस पर सही नियंत्रण नहीं है, जिससे लोग परेशान हो रहे हैं।
जन धन पर मोदी सरकार की नीयत भी अच्छी नहीं है। इधर मोदी सरकार यह राग अलाप रही है कि बैंक में रखा पैसा यदि ₹500000 तक है, तो वह सुरक्षित है। इसका मतलब तो यह हुआ कि ₹500000 से अधिक रुपए की राशि असुरक्षित है और बैंक डूबने की स्थिति में वापस नहीं लौटाए जाएंगे। बैंक डूबने के लिए जब जमाकर्ता जिम्मेदार नहीं है, तब उसका जमा पैसा न लौटाया जाना अमानत में खयानत है। सूदखोर ब्याज के मकड़जाल में लोगों को फंसा कर उनकी अचल संपत्ति और सोना-चांदी के जेवरात वगैरह हड़प लिया करते हैं।
देखने को मिल रहा है कि बैंक बड़े उद्योगपतियों की अरबों खरबों का बकाया माफ कर रहे हैं, इसके चलते बैंक डूबने के हालात तैयार हो रहे हैं। ऐसी स्थिति में जब कभी बैंक डूबेंगे, लोगों का ₹500000 से अधिक जमा धन खतरे में है। आखिरकार ऐसी स्थिति क्यों बन रही है कि बैंक डूब रहे हैं और उन्हें डूबने से बचाने के बजाय सरकार जमाकर्ताओं को यह गारंटी दे रही है कि बैंक डूबने की स्थिति में जमाकर्ताओं को ₹500000 तक की जमा राशि लौटा दी जाएगी। लोगों ने सुरक्षा और भविष्य की दृष्टि से धन जमा कर रखा है लेकिन ₹500000 से अधिक होने पर उसकी गारंटी नहीं देना सरासर गलत है। बैंकों में जमा पैसा ईमानदार जमाकर्ताओं की कड़ी मेहनत का है। वह पैसा बैंक के किसी भी तरह के घोटाले से सुरक्षित होना चाहिए। सरकार को इस बात की जवाबदेही हर हाल में लेनी चाहिए।