— डॉ सुनीलम —
भारतीय जनता पार्टी अपने चुनावी विज्ञापनों में लगभग हर क्षेत्र में उत्तर प्रदेश के नंबर एक होने का दावा करती है। लेकिन हकीकत इससे उलट है। हां, कई शर्मनाक मामलों में जरूर योगी राज ने उत्तर प्रदेश को नंबर एक पर पहुंचा दिया है। जैसे हिरासत में मौत, फर्जी मुठभेड़ और महिलाओं तथा दलितों के खिलाफ अपराधों और अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न में उत्तर प्रदेश आज अव्वल है। इस हकीकत की गवाही खुद राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़े देते हैं।
योगी राज में उत्तर प्रदेश की आर्थिक प्रगति को लें। उत्तर प्रदेश का नॉमिनल सकल राज्य घरेलू उत्पाद रु 19,48,000 करोड़ था। जबकि तमिलनाडु में यह रु 21,24,000 करोड़ और महाराष्ट्र में यह 30,79,086 करोड़) पर था।
22.8 करोड़ की जनसंख्या वाले देश के सबसे बड़े सूबे, उत्तर प्रदेश की नॉमिनल जीएसडीपी (GSDP) पिछले एक दशक से तीसरे स्थान पर स्थिर है अर्थात कोई तरक्की नहीं हुई है।
पहले की तरह आज भी उत्तर प्रदेश की गिनती देश के सबसे पिछड़े राज्यों में होती है। प्रदेश की कुल प्रतिव्यक्ति जीएसडीपी सिर्फ 65,431 रुपए है जो बिहार को छोड़ अन्य सभी राज्यों से भी कम है। बाकी सामाजिक व आर्थिक पैमानों पर भी प्रदेश, अंतिम छोर पर खड़े ‘बीमारू राज्य’ बिहार के आसपास ही नजर आता है।
उत्तर प्रदेश ने 2016-17 और 2019-20 के योगी राज के दौरान पूरे देश में सबसे कम आर्थिक वृद्धि दर्ज की है। उ.प्र. 33 में 31वें स्थान पर है।
आरबीआई के आंकड़ों से यह पता चलता है कि भाजपा शासन के पहले तीन वर्षों (2018 से 2020) के दौरान एनजीएसडीपी (NGSDP) केवल 2.99 फीसद की दर से बढ़ी। अगर कोविड महामारी का साल भी इसमें जोड़ दिया जाए तो योगी शासन के चार सालों में यह वृद्धि मात्र 0.1 फीसद ही रह जाती है। इसके विपरीत, 2013-17 के समाजवादी पार्टी के शासनकाल में 5 फीसद प्रतिवर्ष की वृद्धि दर्ज की गयी थी।
उत्तर प्रदेश में अपराध की बात की जाए तो एनसीआरबी की रिपोर्ट से पता चलता है कि उ.प्र. में अपराधों की संख्या लगातार बढ़ रही है। 2018 में 5,85,157 अपराध राज्य में दर्ज किए गए थे। 2019 में ये संख्या बढ़ कर 6,28,578 और 2020 में 6,57,925 हो गयी। राज्य में वर्ष 2020 में हिंसक अपराधों की संख्या 51,983 थी, जोकि देश में सबसे अधिक है। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश पुलिस यदि सभी अपराध दर्ज कर ले तो अपराधों की संख्या और ज्यादा होगी।
योगी राज में दंगों के मामले में भी उत्तर प्रदेश अव्वल रहा है। योगी सरकार आने के बाद 2019 में यह आंकड़ा 5,714 था, जो 2020 में बढ़कर 6,126 हो गया। जब मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश के दंगा-मुक्त राज्य होने का दावा करते हैं तो मन में खयाल आता है कि दंगा उकसाने और सांप्रदायिक घृणा फैलानेवाले जब खुद गद्दी पर विराजमान हों, तो दंगे होने ही नहीं चाहिए।
कुछ लोग इस गलतफहमी में हैं कि योगी की ‘ठोंक दो’ और ‘बुलडोजर चला दो’ वाली नीति ने राज्य को अपराध-मुक्त कर दिया है। इसका मतलब है कि कानून-कायदे को ताक पर रखकर पुलिस और सुरक्षा बलों को खुली छूट दे दी जाए, ताकि वे जिस किसी को चाहे ‘ठोंक दें, ’कूट दें’ या उनके घरों और दुकानों पर बुलडोजर चला दें।
आज उत्तर प्रदेश में योगी का पुलिसिया राज है। खुद मुख्यमंत्री खुलेआम अपने प्रतिद्वंदियों को ‘गर्मी ठंडा कर देने की धमकी दे रहे हैं। जो लोग इस तरह पुलिस कार्रवाई की हिमायत कर रहे हैं उन्हें याद रखना चाहिए कि कल उनकी भी बारी आएगी। जिस दिन उनके घर से उनके प्रियजनों को भ्रष्ट पुलिस उठाकर ले जाएगी, उस दिन कोई बचानेवाला नहीं होगा।
कानून और संविधान का शासन ही नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा की गारंटी दे सकता है। आज जो लोग अल्पसंख्यकों को प्रताड़ित कर खुश हो रहे हैं उन्हें समझना होगा कि देश और धर्म-प्रेम के नाम पर वे नफरत, भेदभाव, भ्रष्टाचार और हिंसा की जिस आग को हवा दे रहे हैं वो पलटकर उन्हें भी झुलसाने में देर नहीं लगाएगी।
सभी आंकड़े बताते हैं कि पुलिसिया राज में दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक, मजदूर और महिलाओं को सर्वाधिक निशाना बनाया जाता है। देश में महिलाओं के खिलाफ अपराध के सबसे ज्यादा 49,761 केस उत्तर प्रदेश में 2020 में दर्ज हुए। उत्तर प्रदेश में दलितों के खिलाफ अपराध में भी लगातार वृद्धि हुई है। 2018 में ये आंकड़ा 11,924 था,2020 में ये संख्या बढ़ कर 12,714 हो गया। इतने केस देश में और कहीं नहीं दर्ज हुए।
सरकारी आंकड़े के अनुसार राज्य में वर्ष 2019 में महिलाओं के खिलाफ अपराध की दर 55.4 फीसद पहुंच गयी थी। यौन उत्पीड़न/सामूहिक बलात्कार, दहेज हत्या, गर्भपात, तेजाब हमला, पति या ससुराल वालों द्वारा क्रूरता और अपहरण के मामलों में राज्य देश में पहले स्थान पर है। यौन हमला करने का प्रयास, महिलाओं के खिलाफ आईपीसी अपराध, पोस्को अपराध (केवल लड़कियों के मामले) में भी उत्तर प्रदेश अव्वल है।
दलितों के खिलाफ अपराधों में भी उत्तर प्रदेश देश में नं. 1 पर है। 2019 में दलित महिलाओं के यौन उत्पीड़न के 3,486 मामले रिपोर्ट किए गए पर पुलिस ने सिर्फ 537 मामले ही दर्ज किए। हाथरस सामूहिक बलात्कार हत्याकांड और हाल में पिंकी लोधी बलात्कार और हत्याकांड और हफ्ते भर पूर्व एटा के अवागढ़ में हुई 5 वर्ष की बालिका के हत्याकांड से साफ नजर आता है कि संघी-भाजपा सरकारें संविधान को ठेंगा दिखाकर किस तरह दलितों-वंचितों और महिलाओं के विरुद्ध अपराधों को संरक्षण दे रही हैं।
योगी राज में मुसलमानों का जीना दूभर हो गया है। उन पर गौहत्या का आरोप लगाकर गिरफ्तार करना आम बात हो गयी है। वर्ष 2020 में हाईकोर्ट में भेजे गए ऐसे 41 मामले फर्जी निकले। अदालतों ने 70 फीसदी गौहत्या के मामलों को खारिज कर दिया और बाकी में जमानत दे दी। नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ हुए आंदोलन के दौरान आंदोलनकारियों पर देशद्रोह और दूसरे मुकदमे थोपे गए, शांतिपूर्ण धरनों पर लाठी और आंसू गैस बरसाए गए। उ.प्र. की जेलों में विचाराधीन कैदियों में मुस्लिम कैदियों का अनुपात लगभग 29 प्रतिशत है और सजायाफ्ता कैदियों में 22 प्रतिशत। जबकि राज्य में मुसलमानों की आबादी 17 प्रतिशत है। 2020 में फर्जी पुलिस एनकाउंटर में मारे गए 37 प्रतिशत लोग मुस्लिम थे।
उप्र पुलिस की बर्बरता यहीं नहीं थमती है। पुलिस हिरासत में बंद 11 और न्यायिक हिरासत में 443 लोगों की मौतें 2020-21 में दर्ज की गयीं। हालांकि यह 2018-19 की पुलिस हिरासत (12) और न्यायिक हिरासत (452) में हुई मौतों से कम है, लेकिन यह आंकड़ा उस वक्त फैली वैश्विक महामारी के दौरान भी पुलिस की क्रूरता की प्रवृत्ति को सामने लाता है। हिरासत में पिटाई करना और यातना देना भारतीय पुलिस का तरीका बन गया है।
बीते तीन वर्षों में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) द्वारा सालाना तौर पर दर्ज किए गए करीब 40 फीसदी मानवाधिकार हनन के मामले अकेले उत्तर प्रदेश से थे। मार्च 2017 और मार्च 2018 के बीच उत्तर प्रदेश में 17 पुलिस एनकाउंटर हुए, जिसमें 18 लोगों की मौत हुई थी।
पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) की उत्तर प्रदेश शाखा ने राजनीतिक पार्टियों से अपील की है कि वे मानवाधिकार हनन और अल्पसंख्यकों, महिलाओं और दलितों के खिलाफ बढ़ते अपराधों को अपने चुनाव घोषणापत्र का मुद्दा बनाएं। पीयूसीएल ने पुलिस के आतंकवाद का शिकार हुए लोगों के लिए मुआवजे की भी मांग भी की है।
2017 में सत्ता में आने के तुरंत बाद योगी आदित्यनाथ ने पुलिस अधिकारियों से ‘अपराधियों’ को “ठोंक देने” का खुलेआम आह्वान किया था। नतीजतन 16 महीनों में 3,200 मुठभेड़ों को अंजाम दिया गया, जिनमें कई ‘संदिग्ध अपराधी’ मारे गए। हद तो तब हो गयी जब 26 जनवरी 2019 को, गणतंत्र दिवस के अवसर पर, मुख्यमंत्री ने एनकाउंटर करनेवाले पुलिसकर्मियों के लिए एक-एक लाख रुपये का इनाम घोषित किया। कुछ दिनों बाद ‘ऑपरेशन लंगड़ा’ शुरू हुआ, जिसमें आरोपी के घुटनों से नीचे गोली मारकर लंगड़ा बना दिया जाता है। एक अनुमान के अनुसार 3,349 संदिग्ध लोगों को पुलिस ने लंगड़ा बना दिया है।
उत्तर प्रदेश दुनिया में पहला राज्य है जिसमें किसी भी व्यक्ति को अपराधी मानकर उसे पैरों में गोली मारकर अपंग किया जा रहा है जबकि कानून के तहत मुकदमा दर्ज कर न्यायालयीन व्यवस्था के तहत अपराधी को सजा दिलाने का प्रावधान है। मारे गए लोगों और जिनके पैर में गोली मारी गयी है उनमें सबसे अधिक संख्या अल्पसंख्यक और वंचित वर्ग की है।
योगी राज में महिलाएं की असुरक्षा बढ़ी है तथा दलितों और अल्पसंख्यकों का जीना दूभर हो गया है। योगी राज में उप्र की दुर्गति के और भी आंकड़े दिये जा सकते हैं। लेकिन सवाल यह है कि इन हालात से छुटकारा कैसे मिले। अगर उप्र की अधोगति और जनसमस्याओं पर उत्तर प्रदेश का चुनाव केन्द्रित रहेगा तो उम्मीद की जानी चाहिए कि भाजपा की शिकस्त होगी और आनेवाली सरकार पर उप्र को इन हालात से बाहर निकालने तथा वास्तविक मुद्दों पर ध्यान देने का दबाव रहेगा।