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उमाकांत मालवीय का नवगीत

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आ गये फिर चारणों के दिन आ गए फिर चारणों के दिन, लौट आए चारणों के दिन। सिर धुने चाहे गिरा पछताय फूल क्या, सौगन्ध भी असहाय तीर चुन...

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