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जानकी बल्लभ शास्त्री की कविता

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जीना भी एक कला है इसे बिना जाने ही, मानव बनने कौन चला है? फिसले नहीं, चलें, चट्टानों पर इतनी मनमानी। आँख मूँद तोड़े गुलाब, कुछ चुभे...

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