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‘नागरिकता’ – शिवदयाल
अपने इस देश में
मैं एक नागरिक की तरह
नहीं सोच पाता
नहीं, मुझे एक नागरिक की तरह
सोचने-विचारने नहीं दिया जाता
- यह कहना ज्यादा सही होगा
मैं जैसे...
एकला चलो रे.. ताकि पथ नये खुलते रहें
— शिवदयाल —
यह भी एक पुकार ही तो है - ‘यदि तुम्हारी पुकार पर/कोई नहीं आता/अकेले ही चले चलो.....’ सोचकर विस्मय होता है, जिस...
समाजवाद को प्रासंगिक व भविष्योन्मुखी बनाने का गंभीर उपक्रम
— शिवदयाल —
कांग्रेस का समाजवादी धड़ा जो कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी(सी.एस.पी) के रूप में 1934 से ही कांग्रेस के साथ गुँथा रहा, कांग्रेस को समाजवादी...
वह सुंदर वृक्ष
— शिवदयाल —
धरमपाल (1922-2006), यह उनका जन्मशती वर्ष है, चिंतक और अध्येता थे, कोई पेशेवर इतिहासकार नहीं, लेकिन उन्होंने ब्रिटिश-पूर्व भारत में शिक्षा तथा...