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Tag: समकालीन हिंदी कविता

मुक्ता की तीन कविताएं

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1. डफली बजाता आदमी डफली बजाता आदमी गाता था झूमकर पहाड़ों, नदियों को वह बुलाता था टेर दे देकर डफली बजाते आदमी के गीतों पर पग धरते...

पंकज चौधरी की पॉंच कविताएं

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1. कोरोना और दिहाड़ी मजदूर यह उमड़ते हुए जनसैलाब जो आप देख रहे हैं यह किसी मेले की तस्‍वीर नहीं है या किसी नेता-अभिनेता का रैला भी...

श्रीविलास सिंह की चार कविताऍं

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1. सड़कें कहीं नहीं जातीं सड़कें कहीं नहीं जातीं वे बस करती हैं दूरियों के बीच सेतु का काम, दो बिंदुओं को जोड़ती रेखाओं की तरह, फिर भी वे पहुँचा देती हैं हमारे...

इस दौर को दर्ज करती कविताएं

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— विमल कुमार — नवें दशक के आरम्भ में जिन कवयित्रियों ने बहुत जल्दी अपनी पहचान बनायी थी उनमें एक निर्मला गर्ग भी हैं, यद्यपि...

प्रियंकर पालीवाल की पांच कविताएं

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1. सबसे बुरा दिन सबसे बुरा दिन वह होगा जब कई प्रकाशवर्ष दूर से सूरज भेज देगा ‘लाइट’ का लंबा-चौड़ा बिल यह अंधेरे और अपरिचय के स्थायी होने का दिन...

एक तलघर से निकली चीख

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— विमल कुमार — यूं तो समाज में आज भी किसी से प्रेम करना बहुत ही जटिल प्रक्रिया है पर प्रेम कविता लिखना तो और...

विलुप्त होती प्रकृति की चिंता

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— विमल कुमार — हाल के वर्षों में हिंदी में कुछ ऐसी कवयित्रियां सामने आयी हैं जिनकी रचनाओं में बंगाल की समृद्ध सांस्कृतिक चेतना परिलक्षित...

शैलेन्द्र चौहान की चार कविताऍं

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1. ईहा सारंगी के तारों से झरता करुण रस हल्का हल्का प्रकाश कानों में घुलने लगते मृदु और दुखभरे गीत शीर्षहीन स्त्री सारंगी तू सुन मद्धम सी धुन अनवरत तलाश एक चेहरे की हाथ,...

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