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अनामिका अनु की कविताएँ

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1.लोकतंत्र   खरगोश बाघों को बेचता था फिर अपना पेट भरता था बिके बाघ खरीदारों को खा गये फिर बिकने बाजार में आ गये   2. लड़कियाँ जो दुर्ग होती हैं   जाति को कूट पीस...

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