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नेमिचन्द्र जैन की कविता

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आगे गहन ॲंधेरा है आगे गहन ॲंधेरा है, मन रुक-रुक जाता है एकाकी अब भी है टूटे प्राणों में किस छवि का आकर्षण बाक़ी? चाह रहा है...

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