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नलिन विलोचन शर्मा की कविता

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गीत   दृष्टि जा पाए जहाँ तक सामने हो भूमि ऐसी सिर्फ बालू, धूल जिसमें दूर-दूर बबूल शूलमय दो-चार दीखें। परम विरही के नयन-सी शुष्कता, हृदय जैसी शून्यता निबिड़; चारों ओर हो रहा उपहास...

अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ की कविता

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हमें नहीं चाहिए   आप रहे कोरा शरीर के बसन रँगावे। घर तज कर के घरबारी से भी बढ़ जावे। इस प्रकार का नहीं चाहिए हम को साधू। मन...

हजारीप्रसाद द्विवेदी की कविता

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मार्ग बहुत सुंदर है। गाड़ियां, घोड़े, पदातिक सभी के उपयुक्त। सुना है उसको पकड़कर चल सके कोई, पहुंचता लक्ष्य तक निर्भ्रान्त।            जानता हूँ,...

जयशंकर प्रसाद की कविता

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आत्‍मकथ्‍य मधुप गुन-गुनाकर कह जाता कौन कहानी अपनी यह, मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज घनी। इस गंभीर अनंत-नीलिमा में असंख्‍य जीवन-इतिहास यह लो, करते ही रहते...

केदारनाथ सिंह की कविता

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एक छोटा-सा अनुरोध   आज की शाम जो बाजार जा रहे हैं उनसे मेरा अनुरोध है एक छोटा-सा अनुरोध क्यों न ऐसा हो कि आज शाम हम अपने थैले और डोलचियां रख...

हरिवंश राय बच्चन की कविता

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सत्य की हत्या आज सत्य असह्य इतना हो गया है कान में सीसा गला ढलवा सकेंगे, सत्य सुनने को नहीं तैयार होंगे; आँख पर पट्टी बँधा लेंगे, निकलवा भी सकेंगे, रहेंगे अंधे...

सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता

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लीक पर वे चलें   लीक पर वे चलें जिनके चरण दुर्बल और हारे हैं, हमें तो जो हमारी यात्रा से बने ऐसे अनिर्मित पन्थ प्यारे हैं।   साक्षी हों राह...

सुमित्रानंदन पंत की कविता

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यह धरती कितना देती है   मैंने छुटपन में छिपकर पैसे बोये थे, सोचा था, पैसों के प्यारे पेड़ उगेंगे, रुपयों की कलदार मधुर फसलें खनकेंगी और फूल-फूलकर मैं मोटा...

क्षमाशंकर पाण्डेय की पांच कविताएं

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1 नये सवाल मिले जब-जब उत्तर चाहा, तब-तब नये सवाल मिले। रोटी-पानी, खेती-बारी, इनके लिए ही मारा-मारी। जानबूझकर जूझ रहे हैं, जाने कैसी है दुश्वारी। एक यही सपना था, सबको रोटी-दाल मिले। सबके अपने-अपने...

शिव कुमार पराग के गीत और दोहे

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  रोशनी के शब्द   सिर उठाती है सलाखों की जकड़बंदी से मेरी चेतना फिर सिर उठाती है।   खुल रहा आकाश दिखलाई पड़ा है, रोशनी के शब्द मुझ तक आ गए। इंद्रधनुषी दिन भले गहरे...

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