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Tag: Ramprakash Kushwaha

ज्ञान के भण्डारी

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— रामप्रकाश कुशवाहा — बुद्धिमान होने और ज्ञानी होने में फर्क है । बुद्धिमान होना प्रकृति-प्रदत्त प्रतिभा पर निर्भर करता है जबकि ज्ञान का आधार...

धूमिल की चमक

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— रामप्रकाश कुशवाहा — राजकमल प्रकाशन से डॉ.रत्नशंकर पाण्डेय के सम्पादन में  तीन खण्डों में प्रकाशित 'धूमिल समग्र ' अब तक अप्रकाशित और अजाने धूमिल को भी...

कवि-कर्म का पुनर्शोध

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— रामप्रकाश कुशवाहा — अपने सम्वेदनाधर्मी शिल्प के कारण निलय उपाध्याय की कविताएं विशिष्टता का अलग प्रतिमान रचती हैं। अपनी छठी कविता-पुस्तक दहन राग संग्रह की कविताओं को  वरिष्ठ कवि...

रचना की सार्थकता और आलोचना के आयाम

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— रामप्रकाश कुशवाहा — साहित्यकार होना एक किस्म की सचेतन स्वप्नदर्शिता है और यह अपनी युवावस्था में देखे जानेवाले दिवास्वप्नों की प्रौढ़ावस्था है। इस तरह...

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